शिक्षा किसी भी देश और समुदाय के विकास के लिए सबसे जरूरी तत्व है। शिक्षा से ही सामाजिक और आर्थिक विकास संभव है। आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ना और उन्हें शिक्षित करना नीति निर्माताओं के लिए हमेशा से बड़ी चुनौती रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 10.02 करोड़ से अधिक आबादी यानी देश की जनसंख्या का 8.6 फीसदी अनुसूचित जनजाति है। लेकिन साक्षरता की दृष्टि से यह तबका देश की प्रगति के साथ कदमताल नहीं मिला पा रहा है। आजादी के 70 साल बाद भी देश में शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए उठाए गए कारगर कदमों के बावजूद सामान्य आबादी की तुलना में सामाजिक रूप से वंचित जनजातीय समुदायों के बीच शिक्षा के स्तर में बहुत अधिक अंतर बना हुआ है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति का साक्षरता प्रतिशत 47.10 था,जो वर्ष 2011 की जनगणना में बढकर 58.96 हो गया। इस बढोतरी के बावजूद यह देश की औसत साक्षरता दर 72.99 प्रतिशत से काफी पीछे है। सरकार, शिक्षा और विभिन्न प्रयासों के माध्यम से इस अंतर को पाटने का प्रयास कर रही हैं। अनुसूचित जनजाति के छात्रों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार की योजना एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय (ईएमआर स्कूल) एक मिसाल बन गई है। इन वि़द्यालयों से पढ़े छात्र और छात्राएं न केवल प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण कर रहे हैं, बल्कि छात्राएं अभिजात्य मानी जाने वाली सौंदर्य प्रतियोगिताएं भी जीत रही हैं।
अनुसूचित जनजाति के बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया कराने के लिए ईएमआर स्कूलों के दिशा निर्देश 1997-98 में जारी किये गए थे और पहला स्कूल वर्ष 2000 में महाराष्ट्र में खुला था। विगत 17 वर्षों में कुल 259 स्कूलों की स्वीक़ति जारी हुई है, जिसमें से 72 स्कूल विगत तीन सालों में स्वीकृत किये गए हैं। विद्यालयों की स्वीकृति के बावजूद भी जमीन आवंटन, भवन निर्माण व अन्य कार्यों के लम्बित चलने से से इन विघालयों में पढाई शुरू नहीं हो पा रही थी। लेकिन वर्तमान सरकार ने सक्रियता दिखाते हुए महज तीन सालों में 50 से अधिक विद्यालयों में अध्ययन शुरू करवाया है। वर्ष 2013 14 में क्रियाशील ईएमआर की संख्या 110 थी, जो अब बढकर 161 हो गई है। इन विद्यालयों में लगभग 52 हजार बच्चों का नामांकन कराया गया था। यानी प्रत्येक स्कूल में लगभग 322 बच्चे। महज तीन वर्षों में ईएमआर स्कूलों को क्रियाशील करने की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा जा रहा है। यही नहीं, इन स्कूलों के परीक्षा परिणाम भी राज्यों में चल रहे दूसरे सरकारी स्कूलों की तुलना में अच्छे आए हैं। इन स्कूलों से पास होने वाले विद्यार्थियों की संख्या 90 फीसदी से अधिक रही है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार ने साक्षरता तथा शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए हैं। उनमें कुछ में तो काफी प्रगति भी देखी गई है लेकिन वंचित समुदाय और जनजातीय समुदायों की शिक्षा में अपेक्षित प्रगति नहीं होना देश के विकास में बाधा बनी हुई है। ऐसे में, केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय योजना वंचित समुदाय के विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में अहम भूमिका निभा रही है। खेलकूद से लेकर इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा तक में इन विद्यालयों के विद्यार्थी अव्वल होते देखे जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल रायपुर में फरवरी 2017 को घोषित हाई स्कूल सर्टिफिकेट परीक्षा परिणाम में एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय (पार्रीनाला) राजनांदगांव के विद्यार्थियों का परिणाम शत प्रतिशत रहा। छत्तीसगढ़ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में गिना जाता है और यहां शिक्षा का स्तर काफी पीछे है। जनजातीय इलाकों में विद्यालयों की दूरी, घर में सुविधाओं एवं पैसों का अभाव जैसे कई कारणों के चलते बच्चे या तो विद्यालय नहीं जाते या फिर प्राथमिक शिक्षा के बाद पढाई छोड देते हैं। ऐसी परिस्थितियों में लक्षित समूह तक शिक्षा को पहुंचाने के लिए एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय योजना वरदान साबित हो रही है
एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय योजना ने बालिकाओं की शिक्षा के लिए भी नए आयाम खोले हैं। पिछले दिनों एक आदिवासी युवती रिंकी चक्मा, एफबीबी कलर्स फेमिना मिस इंडिया त्रिपुरा 2017 चुनी गयीं। रिंकी एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय की छात्रा रही हैं। फिलहाल रिंकी इग्नू से समाजशास्त्र में स्नातक पाठयक्रम कर रही हैं। गैंगटोक के एक ईएमआरएस स्कूल से बास्केटबॉल खेलने वाली लड़कियों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी धमक जमाकर पूरे देश को चौंका दिया है। ये सभी लड़कियां दिहाड़ी मजदूरों की बेटियां हैं। वर्ष 2010 और 2013 में इन लडकियों ने राष्ट्रीय स्तर के दो टूर्नामेंट भी जीते हैं। इन लड़कियों ने कहा कि अगर हमारा भाग्य हमें ईएमआरएस नहीं लाता तो हम या तो कहीं दिहाड़ी मजदूर होते या फिर हमारी जल्दी शादी कर दी गई होती।
सरकार आदिवासी विद्यार्थियों को बेहतरीन शिक्षा देने के लिए वचनबद्ध है। इसी के तहत सरकार ने अनुच्छेद 275(1) के तहत इन विद्यार्थियों के लिए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय योजना शुरू की। इएमआरएस के लिए जारी किये गए दिशा निर्देशों के अनुसार कम से कम एक इएमआरएस इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवेल्पमेंट एजेंसी और इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवेल्पमेंट प्रोजेक्ट के अंतर्गत सह विद्यालय खोला जाना आवश्यक कर दिया गया है। यानी जिस क्षेत्र की कम से कम 50 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति हो, उस क्षेत्र में यह स्कूल खोलना अनिवार्य कर दिया गया है। 15 एकड़ भूमि में विकसित होने वाले इन विद्यालयों के भवन से लेकर, छात्रावास और स्टाफ क्वार्टर तक बनाने का खर्च लगभग 12करोड़ आंका गया है। जबकि यह राशि दूरदराज के क्षेत्रों के लिए लगभग 16 करोड़ रूपए रखी गयी है। पहले साल में प्रति विद्यार्थी खर्च 42 हजार रूपए आंका गया है, जबकि दूसरे साल से महंगाई दर को ध्यान में रखकर इसे 10 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से बढाने का प्रावधान रखा गया है। सभी बच्चों पर शिक्षक बराबर ध्यान रख सकें इसलिए यह नियम बनाया गया है कि हर सेक्शन में सिर्फ 30 बच्चे ही रखे जाएं। कक्षा छह से नौ तक प्रत्येक कक्षा में दो सेक्शन होंगे। वहीं 10 से 12 वीं तक की कक्षाओं को तीन सेक्शनों में विभाजित किया जाएगा। इन विघालयों में शिक्षकों और कर्मचारियों की बहाली राज्य सरकार द्वारा किये जाने का प्रावधान है।
इन विद्यालयों में स्कूल भवन के साथ छात्रावास, स्टाफ क्वार्टर, बच्चों के खेलने के लिए मैदान समेत हर आधुनिक सुख सुविधा मुहैया कराए जाने का प्रावधान है। इस पूरी योजना का मुख्य उददेश्य छात्रों को उनकी रूचि का वातावरण उपलब्ध कराना है। इन स्कूलों में विद्यार्थियों की शिक्षा, खान पान के साथ साथ कंप्यूटर की शिक्षा भी मुफ्त प्रदान की जाती है।
देश के आदिवासी बच्चों तक बेहतरीन शिक्षा पहुचाने के लिए आने वाले पांच सालों में सरकार की ऐसे सभी 672 उपखंडों में ईएमआरएस की सुविधा उपलब्ध कराने की योजना है, जहां अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 50 फीसदी से अधिक है। अभी भी 585 नए ईएमआरएस की जरूरत है। हालांकि जिस गति से केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय राज्य सरकार को ईएमआरएस खोलने की स्वीकृति जारी कर रहा है, उस गति से राज्य सरकारें उन विद्यालयों को जल्द से जल्द क्रियाशील बनाने में सक्रियता नहीं दिखा रही है। इसी कारण, आंध्रप्रदेश में 14 विद्यालयों की स्वीक़ति के बावजूद केवल चार विघालय क्रियाशील हैं। इसी प्रकार छत्तीसगढ में 25 के मुकाबले 13, झारखंड में 19 के मुकाबले केवल चार और उड़़ीसा में 27 के मुकाबले महज 13 विद्यालय क्रियाशील हैं। दूसरी ओर, कुछ राज्यों की प्रगति बेहतरीन है। महाराष्ट्र में सभी 16 स्वीकृत विद्यालय क्रियाशील हैं। मध्य प्रदेश में 29 में से 25 और राजस्थान में 17 में से 15 विद्यालय क्रियाशील है।
सरकार की योजना है कि आने वाले दो वर्षों में इन विद्यालयों को क्रियाशील करने में आ रही समस्त बाधाओं को दूर कर सभी स्वीकृत विद्यालयों को क्रियाशील बनाया जाए और साथ ही अगले पांच साल के 672 ईएमआरएस के लक्ष्य को समय पर पूरा किया जाये। इसके लिए केन्द्र का जनजाति मामलों का मंत्रालय राज्यों के साथ निरन्तर मंथन एवं चिंतन कर रहा है, ताकि नए विद्यालायों को धरातल पर उतारने में कोई विलंब न हो और जनजाति क्षेत्रों के बच्चों को बेहतरीन शिक्षा का विकल्प अपने निकटतम स्थल पर मिल सके।