मोदी सरकार का महत्वपूर्ण मिशन, ‘मेक इन इंडिया’ इस मूल अवधारणा को निर्दिष्ट करता है कि यह घरेलू विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देगा तथा बड़ी संख्या में लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करेगा। इसलिए हल्के विनिर्माण उपक्षेत्रों जैसे चमड़ा उद्योग और वस्त्र उद्योग को अधिक प्रमुखता दी गई है, ताकि उत्पादन और निर्यात में बढ़ोतरी हो सके।
वैश्विक व्यापार संधि के रूप में वस्त्र पर प्रतिबंधात्मक बहु-फाइबर व्यवस्था (एमएफए)1972 से लागू थी, जिसकी समाप्ति 2004 में हुई। यह संधि विकासशील देशों को विकसित देशों को सूत (यार्न), कपड़ा और तैयार वस्त्र निर्यात करने में कोटा के माध्यम से प्रतिबंधित करती थी। इस संधि की समाप्ति से भारत, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे प्रतियोगी निर्यातकों को बड़े स्तर पर सुअवसर प्राप्त हुआ। इस कोटा व्यवस्था को समाप्त हुए एक दशक बीत चुका है,लेकिन भारत इस सुअवसर का लाभ उठाने में असमर्थ रहा है, जबकि अन्य देश प्रतिस्पर्धी कीमत और समयबद्ध माल-अदायगी से लाभ कमा रहे हैं।
हालांकि पिछले कुछ वर्षों से स्थिति में परिवर्तन देखने को मिल रहा है, जो आशान्वित करता है। वस्त्र मंत्रालय विभिन्न सुविधाओं को जोड़ने में व्यस्त है, ताकि वस्त्र उद्योग को घरेलू खपत और निर्यात में बढ़ोतरी मिल सके।
वस्त्र उद्योग में प्रत्यक्ष रूप से 45 मिलियन लोग कार्यरत हैं और लगभग इतने ही लोग अप्रत्यक्ष रूप से वस्त्र उद्योग में मूल्य संवर्धन प्रक्रिया से जुड़े हैं। इस क्षेत्र में भारत तुलनात्मक रूप से अनुकूल तथा फायदेमंद स्थिति में है। पारम्परिक रूप से भारत वस्त्र निर्यात में विश्व बाजार, विशेषकर अमरीका और 27 सदस्य देशों वाले यूरोपीय संघ में अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। सूत निर्यातक के रूप में भारत को चीन और बांग्लादेश जैसे अपने प्रतियोगी देशों से इस अर्थ में श्रेष्ठता प्राप्त है कि वह वस्त्र तैयार होने से पहले की स्थिति में मूल्यवर्धन प्रक्रिया को मजबूती प्रदान कर सकता है।
घरेलू खपत और निर्यात में वृद्ध के लिए वस्त्र मंत्रालय ने जून 2016 में वस्त्र उद्योग को 6000 करोड़ रुपये का एक प्रोत्साहन पैकेज दिया। इसके साथ ही दिसंबर, 2016 में तैयार वस्त्रों के लिए नई नीतियां बनाई गईं। पैकेज का निर्माण रोजगार के अवसर पैदा करने, निवेश बढ़ाने तथा वस्त्र निर्यात बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया था। इन नीतियों में श्रम कानून, कार्यावधि, वेतन और भत्तों में सुधार शामिल थे। इसके अंतर्गत नियत अवधि तक रोजगार देने की व्यवस्था की गई, ताकि अल्पकालिक श्रमिक भी पूर्णकालिक कामगारों के समान सुविधा प्राप्त करें और वे वस्त्र उद्योग में अपने योगदान देने से भयभीत न हों।
संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (एटीयूएफएस) के अंतर्गत उत्पादन और रोजगार योजना को वस्त्र उद्योग की इकाइयों (एसपीईएलएसजीयू) से जोड़ दिया गया। इस योजना को 10 जनवरी, 2017 से तैयार वस्त्रों के लिए भी लागू कर दिया गया। संशोधित टीयूएफ के तहत वस्त्र और तैयार वस्त्रों की इकाइयों के लिए सब्सिडी 15 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दी गई। इससे रोजगार सृजन में सहायता मिली। ऊपरी सीमा को भी बढ़ाकर 50 करोड़ रुपये कर दिया गया। इस संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सब्सिडी उत्पादन केंद्रित है और इसका भुगतान वैसी स्थिति में ही किया जाएगा, जब तीन वर्षों के दौरान रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित किये गए हों। इसके साथ ही, आयकर अधिनियम की धारा 80 जेजेएए के तहत 240 दिनों के प्रावधान को घटाकर वस्त्र उद्योग के लिए 150 दिन कर दिया गया। मौसमी प्रकृति को देखते हुए यह प्रावधान किया गया है। यह प्रावधान 1 अप्रैल, 2017 से लागू हुआ है।
निर्यातकों को प्रोत्साहन देते हुए राज्य लेवी टैक्स छूट योजना (आरओएसएल) को 12 अगस्त, 2016 से लागू किया गया। यह योजना इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए लागू की गई कि वैश्विक नियमों के मुताबिक करों का निर्यात नहीं किया जा सकता।
वस्त्र मंत्रालय की अन्य महत्वपूर्ण योजनाएं हैं- पावरलूम कलस्टर निर्माण के लिए योजनाएं, रेशम उद्योग के विकास के लिए समेकित योजना (आईएसडीएसआई), व्यापक हैंडलूम कलस्टर विकास योजना (सीएचसीडीएस),राष्ट्रीय हस्तकला विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) और उत्तर पूर्व क्षेत्रीय वस्त्र विकास योजना (एनईआरटीपीएस)। इसके अतिरिक्त, कुछ वर्ष पूर्व समेकित वस्त्र पार्क (एसआईटीपीएस) का शुभारंभ किया गया, जो तेजी से प्रगति कर रहा है। एसआईटीपी का प्राथमिक उद्देश्य है विकास संभावित केन्द्रों पर विश्वस्तरीय अवसंरचना को मूल्य संवर्धन प्रणाली से एकीकृत करना। इससे वस्त्र उद्योग अपनी पूर्ण क्षमता का इस्तेमाल कर सकेगा। इसका लक्ष्य केन्द्र आधारित अवसंरचना की बाधा को समाप्त करना, अतिरिक्त निवेश की व्यवस्था करना तथा रोजगार सृजन करना है। इस योजना में उद्योग जगत की भूमिका महत्वपूर्ण है तथा सरकार की भूमिका कोष की व्यवस्था करने तथा सुविधा प्रदान करने तक सीमित है। राज्य सरकारों को भी इन पार्कों के चयन और मंजूरी देने की प्रक्रिया में शामिल किया गया है। वस्त्र मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों में वस्त्र पार्क के निर्माण के लिए 152 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
उत्पादन-परिणाम की कार्य योजना के तहत वस्त्र मंत्रालय ने उद्योग को गति प्रदान करने के लिए 3094 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की है ताकि निर्यात के माध्यम से विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सके और लाखों लोगों को रोजगार मिल सके।