केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि सरकार, भारतीय अर्थव्यवस्था के सतत् विकास के लिए प्रतिबद्ध एवं क्रियाशील है। कृषि जगत से संबंधित उद्यमों का विकास कर, जिसमें उत्पादों का भण्डारण तथा उसका प्रसंस्करण कर बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों को लाकर भारत को दुनिया के प्रमुख आर्थिक शक्तियों वाले देश में शामिल कर सकते हैं। कृषि मंत्री ने यह बात श्रीनगर में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही।
श्री सिंह ने कहा कि प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी भी, कृषि की अहम भूमिका और इसके अर्थव्यवस्था में योगदान से भलीभांति परिचित हैं। अत: उन्होंने किसानों की भलाई हेतु बहुत सारी योजनाओं का सृजन एवं शुभारम्भ किया है। पिछले 03 वर्षों में जिन नई योजनाओं की शुरूआत की गई उसमें, स्वॉयल हेल्थ कार्ड, सिंचाई सुविधाओं में विस्तार, जैविक खेती, राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम), बागवानी विकास, कृषि वानिकी, मधुमक्खी पालन, दूध, मछली और अंडा उत्पादन के साथ-साथ कृषि शिक्षा आदि क्षेत्रों को प्राथमिकता के आधार पर शामिल किया गया है।
श्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री, श्री नरेन्द्र मोदी जी ने फरवरी 2016 में बरेली में वर्ष 2022 तक किसान की आय को दोगुना करने का सपना देखा था। जिसके लिए उन्होंने नई योजनाओं का न केवल सूत्रपात किया बल्कि , आवश्यक धन भी उपलब्ध कराया। सरकार ने पिछले 3 वर्षों में कारगर रणनीतियों को अपनाकर कृषि उपज एवं किसानों की आय बढ़ाने के लिए 5 प्रमुख विषयों पर कार्य किया जो कि निम्नलिखित हैं:
- नीम कोटेड यूरिया का उत्पालदन करना,
- जैविक खेती को बढ़ावा देकर कृषि उत्पादन लागत को कम किया है। सरकार ने डीएपी की 2,500 रुपये और एमओपी की 5,000 रुपये प्रति टन मूल्य घटा दिया है। 3 दिन पहले ही, दिनांक 01 जुलाई, 2017 को उर्वरकों पर जीएसटी को 12% से घटाकर 5% कर दिया गया जिससे इनके मूल्यों में भारी गिरावट आएगी।
- उत्पादन बढ़ाने हेतु मृदा स्वास्थ्य कार्ड, प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत हर खेत को पानी और परम्परगत कृषि विकास योजनाओं को लागू कर उत्पादन लागत को कम करना है।
- किसानों को देशव्यापी एवं पारदर्शी बाजार उपलब्ध कराने हेतु सरकार ने ई-नाम की शुरूआत कर दी है।
- इसी तरह पशुपालन, दुग्ध उत्पादन, बागवानी, कृषि वानिकी, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन, ‘हर मेड़ पर पेड़’ पर सरकार ने कई सारे कार्यक्रमों की शुरूआत की।
श्री सिंह ने कहा कि वैसे तो जम्मू एवं कश्मीर में खाद्य उत्पादन आवश्यकता से कम होता है जिससे राज्य को हर वर्ष लगभग 7 लाख मीट्रिक टन अनाज आयात करना पड़ता है। मुख्य रूप से भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के कारण ऐसा होता है क्योंकि, अधिकांश क्षेत्रों में केवल एक फसल ही उगाई जाती है। इसका एक अन्य कारण यहाँ के छोटे-छोटे खेत हैं। अत: उत्पादन एवं मांग के अंतर को कम करने के लिए राज्य सरकार खाद्य एवं अन्य फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए मजबूत प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राज्य, केंद्र द्वारा वित्त पोषित कई योजनाओं को सार्थकपूर्वक लागू कर रहा है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान जम्मू एवं कश्मीर ने धान, मक्का, सब्जियों और केसर जैसे कुछ महत्वपूर्ण फसलों के उत्पादन स्तर को बढ़ाने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
केन्द्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि भारत सरकार ने 7 नवंबर, 2015 को जम्मू और कश्मीर के क्षतिग्रस्त बागवानी क्षेत्रों के पुनर्वास और विकास के लिए 500 करोड़ रुपये का विशेष पैकेज घोषित किया था, जिसके लिए जम्मू-कश्मीर सरकार ने 2016-19 के लिए अपनी योजना पेश कर दी है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड को 24.55 करोड़ रुपये की कुल लागत पर पंपोर, पुलवामा में केसर पार्क स्थापित करने का कार्य सौंपा गया है। पार्क में गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला, निर्यात संवर्धन गतिविधि और ई-नीलामी केंद्र की सुविधा होगी। पार्क नवंबर, 2017 तक शुरू होने की संभावना है। पिछले दो वर्षों (2015-16 और 2016-17) के दौरान, माननीय मुख्यमंत्री की पहल और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के समर्थन से राज्य ने कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की है।