महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (23 जुलाई, 2017) संसद के केंद्रीय कक्ष में अपने विदाई समारोह में भाग लिया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि 37 वर्षों तक उन्होंने लोकसभा और राज्य सभा के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की। संसद में सत्ता पक्ष या विपक्ष में बैठकर घंटों और दिनों तक कद्दावर नेताओं के भाषण सुनते हुए उन्होंने स्वयं को इस जीवंत संस्था की आत्मा के साथ एकाकार होते महसूस किया। उन्होंने बहस, चर्चा और असहमति के मूल्य को समझा। उन्होंने महसूस किया कि कैसे कार्यवाही में बाधा पहुंचने से सरकार की बजाय विपक्ष को ज्यादा नुकसान होता है, क्योंकि इस तरह वह जनता के सरोकारों को उठाने से वंचित रह जाता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विधायी कार्यों के लिए नियत संसदीय समय घटता जा रहा है। प्रशासन की जटिलता बहुत अधिक हो जाने के कारण, विधायिका को अवश्य ही जांच और उचित विचार-विमर्श से आगे बढ़ना चाहिए। समितियों में होने वाली जांच सदन में खुली चर्चा का विकल्प नहीं है। जब संसद कानून बनाने की अपनी भूमिका को पूरा करने में विफल रहती है या बिना चर्चा के कानूनों को मूर्त रूप दिया जाता है, तो वह इस महान देश की जनता द्वारा उस पर व्यक्त किए गए विश्वास का उल्लंघन होता है। उन्होंने कहा कि हाल ही में वस्तु एवं सेवा कर को पारित किया जाना तथा 1 जुलाई, 2017 को इसका प्रारंभ होना, सहकारी संघवाद का देदीप्यमान उदाहरण है और यह भारतीय संसद की परिपक्वता को बयां करता है।
महामहिम राष्ट्रपति ने कहा कि जुलाई 2012 में उनकी लोकसभा सदस्यता उस समय समाप्त हो गई थी, जब उन्हें गणराज्य का 13वां राष्ट्रपति घोषित किया गया था। वैसे तो संसद में उनके जीवन के 37 वर्षों का उसी दिन समापन हो गया था, लेकिन इस संस्था के साथ उनके संबंध अटल रहे, दरअसल संविधान के अनुसार, वह इस गणराज्य के राष्ट्रपति होने के नाते इसका अविभाज्य अंग बन गए। इन पांच वर्षों में उनका प्रमुख उत्तरदायित्व संविधान के संरक्षण का था। जैसा कि उन्होंने शपथ ग्रहण के समय कहा था कि वह हमारे संविधान की केवल शब्दों से ही नहीं, बल्कि आत्मा से भी सरपरस्ती, सुरक्षा और रक्षा करेंगे। इस कार्य को पूर्ण करने में उन्हें हर कदम पर प्रधानमंत्री मोदी के परामर्श और सहयोग का अपार लाभ प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि वह बहुत जोश और ऊर्जा के साथ देश में महत्वपूर्ण बदलाव ला रहे हैं। उनसे अपने संबंध और उनके सौहार्दपूर्ण और सौम्य व्यवहार की प्रिय यादें वह अपने साथ ले जाएंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि अब, जबकि वे इस गणराज्य के राष्ट्रपति पद से सेवा निवृत्त हो रहे हैं, संसद के साथ उनका संबंध भी समाप्त हो रहा है। वह अब भारतीय संसद का भाग नहीं रहेंगे। उन्होंने कहा कि इस संस्था के माध्यम से इस महान देश की जनता की सेवा- उनके विनम्र सेवक के रूप में कर पाने की पूर्णता और खुशी के एहसास के साथ वह यहां से जा रहे हैं।