70 साल पहले नियति से मिलन का वादा करने के बाद भारत के बारे में कहा जाता है कि वह अंतत: उस दौर में पहुंच गया है जहां से वह अपनी जनता के स्वप्नों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उड़ान भरने को तैयार है। देश की उत्साह और विश्वास से भरी युवा शक्ति में जोश का उफान दिखाई देता है।
यहां यह कहना अप्रासंगिक न होगा कि केन्द्र की मौजूदा सरकार को लोगों ने जबरदस्त जनादेश से जिताकर सत्ता सौंपी और इस चुनाव में वोट डालने वालों में पहली बार मतदान युवाओं का वर्चस्व था।
आजादी हासिल करने के बाद से भारत ने लंबा रास्ता पार कर लिया है। स्वतंत्रता के बाद कई चुनावी कार्यकालों तक देश की भाग्यविधाता रही केन्द्र की सत्तारूढ़ पार्टी के नेतृत्व का रुझान जाहिर तौर पर समाजवाद की तरफ रहा था। अत: उसने मिश्रित अर्थव्यवस्था के रास्ते पर चलते हुए नियोजित विकास का ऐसा मॉडल अपनाया जिसमें बड़े विशाल पैमाने पर सरकारी क्षेत्र से निवेश होता था,लेकिन सरकार की मशीनरी न तो पूरी तरह सुसज्जित थी और न इस बड़ी जिम्मेदारी को उठाने को ही तैयार थी।
राज्य की ओर से हस्तक्षेप करने की जरूरत थी और शुरुआत में इसके अच्छे नतीजे भी सामने आये क्योंकि न तो हम इसके बिना रह सकते थे और न ही निजी क्षेत्र की ओर से बड़े निवेश संभव थे।
स्वतंत्र भारत का पहला दशक ऐतिहासिक कारणों से ठहराव के दौर से गुजर रही देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव की आशाओं और आकांक्षाओं से भरा था। नये गणराज्य के नागरिकों में इस बात को लेकर जोरदार उत्साह और विश्वास था कि वे अपनी नियति को बदल कर रहेंगे, लेकिन इसके बाद के दशक मोहभंग का दौर साबित हुए। देश में शताब्दी के अंत तक सामाजिक-आर्थिक बदलाव के लिए बड़े पैमाने पर सरकारी खजाना खाली किए जाने के बावजूद जन आकांक्षाएं चकनाचूर होती रहीं क्योंकि व्यवस्था की सड़ी-गली हालत दिखनी शुरू हो गयी थी।
राज्य द्वारा प्रायोजित अर्थव्यवस्था ने लंबे अर्से तक बाजार आधारित अर्थव्यवस्था को उभरने से रोके रखा, लेकिन पिछले बीते कई सालों बाद पिछले चुनाव में जनता के जोरदार जनादेश से एक पार्टी को देश के शासन की बागडोर मिलने के बाद हमें पुराने रास्ते में बदलाव होता दिखाई दे रहा है।
अपनी पूर्ववर्ती पार्टियों से अलग एनडीए सरकार की पुराने ही रास्ते पर आगे बढ़ने की कोई मजबूरी नहीं है और उछाल मारती बाजार अर्थव्यवस्था का फायदा आम आदमी, खास तौर पर समाज के सबसे गरीब व्यक्तियों के जीवन स्तर उठाने में कर रही है।
केन्द्र में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार निर्णय लेने और उन पर अमल करने में अपना पूरा जोश और संकल्प प्रदर्शित कर रही है और इसका ताजा उदाहरण है—जीएसटी।
आज् सब्सिडी का समूचा मॉडल बदल दिया गया है और वित्तीय सहायता को सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजा जा रहा है।
नीतिगत पहल के रूप में ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन’ के आह्वान के साथ नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने आप को काम करने वाली सरकार के रूप में साबित कर दिया है।
सरकार की तमाम नीतिगत पहलों में से वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) सबसे परिवर्तनकारी और प्रभावी कदम रहा है जिसका उद्देश्य समूचे भारत को करों की एकसमान दर वाला संयुक्त बाजार बनाना है।
कल्याण कार्यों में खर्च किये जाने वाले धन की बरबादी को रोकने के लिए कदम उठाए गये हैं और अक्षम प्रणाली की जगह नकदी अंतरण पर आधारित मॉडल अपनाया गया है जिसमें फायदों को सीधे लाभार्थी के बैंक खातों तक नकदी के रूप में पहुंचा दिया जाता है। इस प्रणाली की बुनियाद जनधन, आधार और मोबाइल (जेएएम) पर रखी गयी है।
यह पहल महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम का स्वाभावित परिणाम है जिसका उद्देश्य देश को दुनिया में विनिर्माण गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बनाना है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत बहुराष्ट्रीय और घरेलू कंपनियों को अपने उत्पाद भारत में ही बनाने को प्रोत्साहित किया जाता है। पारदर्शी और कुशल कर संग्रह प्रणाली से इस लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी।
इसी तरह ‘स्किल इंडिया’ में भारत को कौशल संपन्न देश बनाने का लक्ष्य रखा गया है जिसके तहत 2022 तक 50 करोड़ से अधिक युवाओं के कौशल के विकास के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
इसी से जुड़े एक और प्रमुख कार्यक्रम ‘डिजिटल इंडिया’ के जरिए देश को डिजिटली एम्पावर्ड यानी सूचना टेक्नोलाजी की जानकारी देकर सशक्त बनाने और ज्ञान पर आधारित समाज के निर्माण की शुरुआत पहले ही हो चुकी है। इसके लिए डिजिटल बुनियादी ढांचा तैयार किया जा रहा है, लोगों को डिजिटल तकनीक से अधिकार संपन्न बनाया जा रहा है और डिजिटल तरीके से सेवाएं उपलब्ध कराने के साथ-साथ प्रशासन का संचालन भी इसी के जरिए किया जा रहा है। इससे प्रशासन में पारदर्शिता और कुशलता आयी है।
‘स्टार्ट अप’ और ‘स्टैंड अप’ कार्यक्रमों के जरिए युवा उद्यमियों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। इस कार्यक्रम की शुरुआत उद्यमिता को जोरदार तरीके से बढ़ावा देने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए की गयी थी। इस संबंध में नीतिगत पहल के तहत स्टार्ट अप उद्यमों के लिए बैंकों के जरिए धन उपलब्ध कराने की पहल की गयी है।
प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी पूरी तरह से उचित है कि लोग जिस तरह से डिजिटल टेक्नोलाजी को अपना रहे हैं उसमें उम्र, शिक्षा, भाषा और आमदनी जैसी बाधाएं महत्वहीन हो गयी हैं।
पहली बार न सिर्फ सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ बल्कि राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध भी अनवरत और कारगर कदम उठाए गये हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी गयी इस मुहीम से विरासत में मिली जर्जर प्रणाली की सफाई शुरू हो गयी है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया है कि भ्रष्टाचार को व्यवस्था से निकाल बाहर करने के लिए दृढ़ता के साथ-साथ साहसिक दृष्टिकोण अपनाने की भी आवश्यकता है ताकि बरबादी के संदेशवाहकों को पस्त किया जा सके। वर्तमान सरकार ने इस बारे में जड़ता को तोड़ा है और उसके कामकाज में पर्याप्त दृढ़ता दिखाई दे रही है।
चुनाव से प्रेरित और अफसरशाही के कठोर ढांचे में लिपटी विकास योजनाओ का स्थान अब धीरे-धीरे, मगर निर्णायक रूप से जनता की भागीदारी वाली योजनाएं लेती जा रही हैं।