पिछले कुछ वर्षों में विश्व व्यापार की विकास दर के कमजोर रहने से विश्व अर्थव्यवस्था में लगातार कमजोरी दिखाई दे रही है, जैसा कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्युटीओ) ने भी अप्रैल 2017 के अपने अध्ययन में पाया है. मगर विदेश व्यापार के मामले में भारत का कार्यनिष्पादन, तिजारती माल और सेवा दोनों ही क्षेत्रों में लगातार सकारात्मक रुझान प्रदर्शित कर रहा है.
खास तौर पर ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत के निर्यात प्रयासों में जबरदस्त योगदान करने वाले सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों (एमएसएमई) का योगदान और भी बढ़ रहा है जिससे अनगिनत कुशल और अर्धकुशल कर्मियों को रोजगार के अवसर मिलते हैं. इसके अलावा उनके उत्पाद-पोर्टफोलियो में भी और अधिक विविधता आई हैं. देश के निवल निर्यात व्यापार में एमएसएमईज का योगदान 2013-14 में 42.42 प्रतिशत से बढ़कर 2014-15 में 44.76 प्रतिशत हो गया और 2015-16 में यह 49.86 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया है.
भला हो सरकार की सक्रिय सहयोग की नीति का जिनकी वजह से संरक्षणवादी प्रतिबंधों और सदा बदलते रहने वाले मानकों के रूप में गैर-शुल्क बाधाओं तथा अन्य मानव स्वास्थ्य व पादप स्वास्थ्य संबंधी अड़ंगों की वजह से व्यापार के मोर्चे की चुनौतियों के बावजूद भारत का निर्यात सराहनीय रहा है. इसकी पुष्टि इस बात से भी हो जाती है कि देश के निर्यात में पिछले नौ महीनों में सकारात्मक वृद्धि दिखाई दे रही है. सितंबर 2016 से निर्यात में हो रही वृद्धि के अनुरूप जून 2017 के दौरान इसमें डालर के लिहाज से 4.39 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई दी है जिसकी कुल लागत 23562.62 मिलियन अमेरिकी डालर आंकी गयी है जबकि जून 2016 में निर्यात 22572.30 मिलियन डालर रहा था.
जून 2017 के दौरान निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के जिन प्रमुख समूहों के निर्यात में पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले बेहतर बढ़ोतरी दर्ज की गयी उनमें शामिल हैं: इंजीनियरी वस्तुएं (14.78 प्रतिशत), पेट्रोलियम उत्पाद (3.60 प्रतिशत), कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन (13.20 प्रतिशत), चावल (27.29 प्रतिशत) और समुद्री उत्पाद (24.27 प्रतिशत).
अप्रैल-जून 2017-18 की अवधि में निर्यात व्यापार की संचयी लागत 72212.33 मिलियन डालर (465472.04 करोड़ रुपये) रही जबकि पिछले साल की इसी अवधि में यह 65311.77 मिलियन अमेरिकी डालर (436960.98 करोड़ रुपये) रही थी. यानी डालर के हिसाब से निर्यात में 10.57 प्रतिशत की और रुपये में 6.52 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
जून 2017 में आयात की लागत 36522.48 मिलियन डालर (235361.85 करोड़ रुपये) आंकी गयी जबकि जून 2016 में यह 30688.54 मिलियन डालर (206524.39 करोड़ रुपये) रही थी. यानी डालर के लिहाज से इसमें 19.01 प्रतिशत और रुपये के लिहाज से 13.96 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. अप्रैल-जून 2017-18 के दौरान आयात की संचयी लागत 112263.10 मिलियन डालर (723631.11 करोड़ रुपये) रही जबकि पिछले साल की इसी अवधि में 84545.78 मिलियन डालर (565754.20 करोड़ रुपये) रही थी. यानी डालर के लिहाज से इसमें 32.78 प्रतिशत और रुपये के लिहाज से 27.91 प्रतिशत की सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गयी.
आयात किये जाने वाल माल के जिन प्रमुख वस्तु-समूहों के आयात में जून 2017 में पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले विकास दर ऊंची रही वे हैं: प्रट्रोलियम, क्रूड और इनके उत्पाद (12.04 प्रतिशत), इलेक्ट्रोनक सामान (24.22 प्रतिशत), मोती, बहुमूल्य और कम मूल्यवान रत्न (86.31 प्रतिशत), मशीनरी बिजली वाली और गैर-बिजली वाली (7.02 प्रतिशत) और सोना (102.99 प्रतिशत).
सेवाओं का व्यापार, जिसमें विश्व व्यापार संगठन की ताजा रैंकिंग के अनुसार भारत प्रमुख निर्यातक के रूप में आठवें स्थान पर है, 2016 में 161 अरब अमेरिकी डालर का रहा और विश्व के कुल व्यापार में भारत का हिस्सा 3.4 प्रतिशत का रहा. सेवाओं के आयात के लिहाज से भी भारत प्रमुख आयातक है और उसका दुनिया में 10वां स्थान है. 2016 में भारत ने 133 अरब डालर लागत की सेवाओं का आयात कर सेवाओं के वैश्विक आयात में 2.9 प्रतिशत की हिस्सेदारी निभाई. इस तरह सेवाओं के आयात में भारत के पास 28 अरब डालर का व्यापार अधिशेष है. यह भी एक तथ्य है कि पिछले तीन साल में सकल मूल्य संवर्धन में सेवाओं का हिस्सा 2014-15 में 51.8 प्रतिशत से 2016-17 में 53.7 प्रतिशत के स्तर पर कायम रहा है. इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि भारत ने विश्व व्यापार संगठन में ‘सेवाओं में व्यापार सुविधा के लिए पहल के बारे में अवधारणा-पत्र’ प्रस्तुत किया ताकि डब्ल्युटीओ के सदस्य देशों में इस मुद्दे पर बहस शुरू हो और सेवाओं के निर्यातक के रूप में भारत प्रतिस्पर्धात्मक रूप से लाभ की जिस स्थिति में है उसका सकारात्मक फायदा उठाया जा सके.
सेवाओं के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बहु आयामी और समग्र रणनीति अपनायी है. इसके अंतर्गत बहुपक्षीय, बहुआयामी और द्विपक्षीय व्यापार सौदों के जरिए सार्थक बाजार पहुंच के बारे में बातचीत, वैश्विक मेलों/प्रदर्शनियों में भागीदारी के जरिए व्यापार संवर्धन तथा विशिष्ट बाजारों व क्षेत्रों के लिए सुनिश्चित रणनीतियों को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है. इसके अलावा भारत से सेवाओं के निर्यात की योजना (एसईआईएस) के तहत वित्तीय फायदे और प्रोत्साहन भी दिये जा रहे हैं. कुल मिलाकर माल और सेवाओं, दोनों ही के मामले में देश ने हाल के महीनों में व्यापारिक संरक्षणवाद और सेवाओं के निर्यात में धनी देशों द्वारा खड़ी की गयी बाधाओं और माल व सेवा दोनों की वैश्विक विकास दर में मंदी जैसी प्रतिकूल बाहरी परिदृश्य के बावजूद अपनी रफ्तार बनाए रखी है.
यह बात गौर करने की है कि एनडीए सरकार द्वारा 1 अप्रैल, 2015 को शुरू की गयी नयी विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) में विनिर्माण और सेवा दोनों ही क्षेत्रों के निर्यात को बढ़ावा देने और इनके व्यापार को सुगम बनाने पर जोर दिया गया है. एफटीपी 2015 की मुख्य विशेषताओं में अन्य बातों के अलावा शामिल हैं: भारत से सामान के निर्यात की योजना, भारत से सेवाओं के निर्यात की योजना, सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर की अदायगी के लिए शुल्क साखपत्रों को नि:शुल्क परिवर्तनीय बनाया जाना, आदि.
सरकार ने डब्ल्युटीओ के व्यापार सुविधा समझौते (टीएफए) का अनुमोदन कर दिया है ताकि समय के साथ-साथ भारत के साथ विदेश व्यापार करना आसान और बाधामुक्त हो जाए. मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता में व्यापार सुविधा के बारे में एक राष्ट्रीय समिति गठित की गयी है जो सीमा प्रबंधन को आसान बनाने की प्रक्रिया तय करने और पारदर्शिता के नये उपायों को अपनाने की दिशा में कदम उठाएगी. इस तरह के तमाम कदमों से आयात-निर्यात संबंधी लेन-देन की लागत में कमी आएगी और देश की सीमाओं के आर-पार माल का सुचारु रूप से आवागमन संभव हो सकेगा. कुल मिलाकर भारत का विदेश व्यापार बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है और अभी उठाए जा रहे महत्वपूर्ण कदमों के बहुत जल्द अच्छे नतीजे आने पर एक स्पष्ट तस्वीर उभर कर सामने आएगी