आपका प्यार आज भी हम सभी के दिल मे है
सुरत तो चली गई रोशनी अभी भी इस गुल में है
पूज्य पिताजी स्व0 डॉ बाबूलाल वत्स जी की 78 वी जयंती पर आज अचानक लेखनी चल पड़ी ।
डॉ कविता रायजादा
आगरा
होती है जब यादे ताज़ा
बैचेनी, तड़पन, हताशा,
उदासीनता ले आती है
पता नही कितनी जिज्ञासा
कितने प्रश्न छोड़ जाती है
कुछ ऐसे पलों की
याद दिलाती है
जो तिरते नही
सतह पर समय की
बहते नही जो धारा में
ठहर जाते है
अमर हो जाते है
बस यादे यादे बन रह जाते है