आधुनिक युग में एलोपेथी चिकित्साप्रणाली आम आदमी की पहुच से दूर होती जारही ह एलोपेथी चिकित्सा प्रणाली मुख्य रूप से पेथोलॉजिकल टैस्ट पर निर्भर ह पैथोलॉजी मुख्य रूप से ग्रीक शब्द पैथोस + लोगस का ही रूप ह जिसका शाब्दिक अर्थ ह रोग निदान
जब मरीज डॉ के पास जाता ह तो डॉ सर्वप्रथम उसे विभिन्न प्रकार के पॅथॉलॉजिकल टैस्ट करवाने को कहता ह जिसमे मरीज के हज़ारो रुपये खर्च हो जाते ह रिपोर्ट देखने के बाद ही डॉ तय करता ह आखिर बीमारी क्या ह
इसके बाद शुरू होता ह महंगी दवाइयों का सिलसिला |इसके बाद भी गारन्टी नही की रोग कितने दिनों मे ठीक होगा |
दवाई का असर ना होने पर डॉ फिर वही टैस्ट करवाते ह |आजकल डॉ आनन् फानन में शल्यचिकित्सा की सलह दे देते ह इससे मरीज पर मानसिक दबाव बढ़ जाता ह |हर आदमी ऑपरेशन का खर्च वहन करने में समर्थ नही होता|
शल्य चिकित्सा के बाद भी डॉ की तरफ से कोई गारन्टी नही होती की मरीज पूर्णतः स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर पायेगा|
इसके विपरीत सुजोक चिकित्सा पद्दति विश्व के अलग अलग भागों में विभिन्न रूप में विकसित हो रही ह| जैसे जर्मनी में इलेक्टरोपञ्चर तथा कोरिया और रूस में सुजोक एकपञ्चर के नाम से विख्यात ह |
इस पद्दति के तहत रोगों का उपचार विभिन्न प्रकार के बीजो पत्थर के टुकड़ो विभिन्न प्रकार के मैग्नेट रंगो तथा सुइयों से सभव ह
कोरियन भाषा में सु का मतलब हाथो और जोक का मतलब पैर से ह | इस पद्दति में हाथ और पैर से सम्पूर्ण शरीर का इलाज़ किया जाता ह|
सुजोक से विभिन्न प्रकार के असाध्य रोगों का इलाज़ भी किया जाता ह
सुजोक स्पेशलिस्ट डॉ दीपाली अग्रवाल के अनुसार इस पद्दति से इलाज़ करवाने के लिए रोगी को किसी प्रकार की कोई जाँच नही करवानी पड़ती | चिकित्सक रोगी के लक्षण देखकर और रोगी से बात करके रोग की पहचान करते ह
डॉ दीपाली के अनुसार उन्होंने कई पक्षाघात के रोगियों को इस पद्दति से ठीक किया ह
उन्होंने कुछ ऐसे रोगियों को भी ठीक किया ह जो शल्य चिकित्सा के बाद कुछ सालो से अपने सुनने की शक्ति खो बैठे थे
इस पद्दति से कुछ ही दिनों में उनके सुनने की शक्ति लौट आई|
सुजोक के द्वारा अस्थमा लिवर किडनी एलर्जी माइग्रेन आदि रोगों का सफलतापूर्वक इलाज़ होता ह
डॉ दीपाली का कहना ह की सुजोक में रंग चिकित्सा का बड़ा महत्व ह
पूर्व काल में हमारे ऋषिमुनियों को रंगों का बहुत ज्ञान था
देखने वाली बात ह की भारतीय कलेंडर का प्रारम्भ बसन्त ऋतू के आगमन पर श्रवण माह निर्धारित किया गया ह | होली पर भारतवासी विभिन्न प्राकृतिक रंगो जैसे टेसू लाल हरा अबीर रंगो से सारे शरीर को संचित करते थे | जिसका प्रभाव हमारे शरीर के प्रतिरोधक तंत्रो पर पड़ता था व् पूरे वर्ष भर मौसम परिवर्तन व् अन्य कारणों से शरीर में रोगों के कीटाणु व् जीवाणु से लड़ने की क्षमता उत्त्पन्न होती थी | पर बदलते परिवेश में हम ये सब भूलते जारहे ह जिसके फलस्वरूप् पहले की अपेक्षा ज़्यादा रोगग्रस्त रहने लगे ह
प्राचीन काल में ऋषिमुनि अपने शरीर के सातों चक्रों पर नियंत्रण कर खुद को रोग मुक्त रखते थे
सुजोक में भी रंग पद्दति द्वारा शरीर के चक्रों को सक्रीय किया जाता | रंग चिकित्सा द्वारा शरीर की अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियों को भी सक्रिय किया जाता ह
डॉ दीपाली ने बताया की सुजोक के साथ ही हमारी प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा भी जटिल व् असाध्य रोगों का इलाज किया जाता ह | इससे भी रोगी पूर्ण रूप से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते ह
सुजोक व् प्राकृतिक चिकित्सा दोनों ही औषधि रहित चिकित्सा पद्दति है तथा पूर्ण रूप से विपरीत असर रोधी है|
प्राकृतिक चिकित्सा समय द्वारा प्रमाणित वैज्ञानिक परिणामकारक सुरक्षित और सस्ती पद्दति ह
भारत के भौगोलिक सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक आधार पर प्राकृतिक चिकित्सा पूर्ण रूप से उत्तम चिकित्सा प्रणाली ह
इस चिकित्सा में खान पान में सुधार करके रोगी को स्वस्थ किया जाता ह
इसमें कुंजन नेती पंचकर्म के द्वारा रोगी के शरीर से सारे विषाक्त पदार्थो को बहार निकाल दिया जाता ह
अतः ऋतू के अनुसार खान पान और आचरण करने पर मनुष्य कभी रोगग्रस्त नही होता