दिल्ली को स्वच्छ भारत अभियान के तहत मिले फंड का अब तक आधा हिस्सा ही खर्च किया जा सका है. यह हाल तब है जब दिल्ली के तीनों एमसीडी में उसी बीजेपी की सत्ता है, जिसके मुखिया पीएम मोदी ने ही यह महत्वाकांक्षी अभियान शुरू किया है. दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग द्वारा जारी आंकड़ों से यह खुलासा हुआ है. यही नहीं, दिल्ली की केजरीवाल सरकार की एजेंसियों का प्रदर्शन भी इस मामले में कोई बेहतर नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार दिल्ली के तीनों एमसीडी को स्वच्छ भारत अभियान के तहत 149.86 करोड़ रुपए का फंड जारी हुआ था, लेकिन 31 दिसंबर, 2017 तक वे इस मद से महज 74.87 करोड़ रुपये खर्च कर पाए. आवंटित बजट बची हुए रकम में करीब 78 फीसदी हिस्सा नॉर्थ एमसीडी का है.
विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए निर्धारित बजट का 62 फीसदी हिस्सा (84.64 करोड़ में से 52.68 करोड़ रुपये) खर्च नहीं हो पाया है. क्षमता निर्माण के लिए जारी फंड का 60 फीसदी हिस्सा (24.48 लाख में से 14.89 लाख रुपये) खर्च नहीं हुआ है.
सामुदायिक टॉयलेट बनाने के लिए मिले फंड का 46 फीसदी हिस्सा (21.53 करोड़ में से 9.99 करोड़ रुपये) खर्च नहीं हो पाया है. इसी प्रकार सूचना, शिक्षा और संचार के लिए आवंटित बजट का 33 फीसदी (12.67 करोड़ में से 4.24 करोड़ रुपये) और लोगों के घरों में टॉयलेट बनाने के लिए आवंटित फंड का 25 फीसदी (30.78 करोड़ में से 7.80 करोड़ रुपये) हिस्सा खर्च नहीं हुआ.
तीनों एमसीडी में से सबसे कम खर्च नॉर्थ एमसीडी ने किया है. नॉर्थ एमसीडी के पास आवंटित फंड में से 35.93 करोड़ रुपये बचे हुए हैं जो कुल बजट का 48 फीसदी है. इसके बाद ईस्ट एमसीडी के पास आवंटित फंड में से 19.75 करोड़ रुपये बचे हुए हैं जो कुल आवंटन का 47 फीसदी है. इनकी तुलना में साउथ एमसीडी का प्रदर्शन बेहतर रहा है. साउथ एमसीडी के पास आवंटित फंड में से 1.01 करोड़ रुपये बचे हुए हैं जो कुल बजट का महज 3 फीसदी है.
सबसे बेहतर प्रदर्शन एनडीएमसी का रहा, जिसने आवंटित फंड की पाई-पाई खर्च कर दी है. NDMC को सिर्फ 2.02 करोड़ रुपये का फंड जारी किया गया था. दिल्ली कैंट बोर्ड स्वच्छ भारत अभियान के लिए जारी फंड में से 2.34 करोड़ रुपया नहीं खर्च कर पाया है, जो कि कुल आवंटित राशि का 53 फीसदी है.
नॉर्थ एमसीडी के एक अधिकारी ने फंड खर्च न कर पाने के बारे में सफाई देते हुए कहा कि कई प्रोजेक्ट में पैसा खर्च करने की रिपोर्ट दो महीने बाद दी जाती है. जैसे यदि रेडियो आदि पर कोई प्रचार कैम्पेन चल रहा हो तो इसके खत्म होने के बाद ही पैसा खर्च होने की रिपोर्ट दी जाती है. इसके अलावा एक वजह यह है कि फंड जरूरत से कम होता है. इस फंड के भीतर काम करवा पाना एक चुनौती है.
बात सिर्फ नगर निगमों की नहीं है. दिल्ली सरकार की एजेंसी दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) को सामुदायिक टॉयलट बनाने के लिए 18.86 करोड़ रुपये मिले थे, लेकिन इसमें से 11.53 करोड़ रुपये इस्तेमाल नहीं हो पाया.