बीएसपी सुप्रीमो मायावती फिलहाल राज्यसभा वापस नहीं जाना चाहतीं. पिछले साल सहारनपुर में दलित अत्याचार पर सदन में न बोलने देने का आरोप लगाते हुए उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता छोड़ दी थी. अब वो अपनी पार्टी के विधायकों के बूते राज्यसभा पहुंच नहीं सकतीं.लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने आरजेडी के कोटे से उन्हें राज्यसभा सीट ऑफर की, लेकिन मायावती ने ये प्रस्ताव भी ठुकरा दिया. बकौल तेजस्वी मायावती बीजेपी के केंद्र की सत्ता पर रहने तक राज्यसभा नहीं जाना चाहतीं. मायावती के इस रुख को उनका एक बड़ा राजनीतिक दांव माना जा रहा है.
दरअसल मायावती जानती हैं कि संख्याबल में कम होने के कारण वे संसद के अंदर सरकार के लिए कोई मुश्किल खड़ी करने की स्थिति में नहीं हैं. लोकसभा में तो उनका कोई सांसद ही नहीं है जबकि राज्यसभा में भी महज तीन बीएसपी सांसद हैं. ऐसे में वे अगर दोबारा राज्यसभा में चली भी जाती हैं तो उन्हें अहम मसलों पर बोलने का बहुत ज्यादा मौका मिले, इसकी कोई गारंटी नहीं है.
दूसरी ओर राज्यसभा से बाहर रहकर माया अपने कोर वोटर को बड़ा संदेश दे सकती हैं. माया के राज्यसभा की सीट छोड़ने से ये संदेश तो गया ही है कि बीएसपी सुप्रीमो को दलितों की परवाह है और उनके हक में आवाज उठाने से वह पीछे नहीं हटेंगी. साथ ही उसके लिए कोई भी कुर्बानी दे देंगी. माया का ये संदेश उन्हें अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में फायदा दिला सकता है.
इसके अलावा मायावती राज्यसभा में न जाकर विक्टिम कार्ड भी खेल सकेंगी. वो सत्ता में रहने के दौरान विपक्ष की ओर से
उठने वाले हर वार का सामना खुद को दलित की बेटी बताकर कराकर आई थीं. अब वे ये संदेश दे सकती हैं कि दलित की बेटी को परेशान किया जा रहा है. उसे राज्यसभा में बोलने नहीं दिया जाता और अब ये जनता के हाथ में है कि वो उन्हें लोकसभा भेजेगी या नहीं.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह लगातार दलित वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं. दूसरी ओर बीएसपी 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार घटती जा रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी जीरो पर सिमट गई. इसके बाद 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी 87 सीटों से घटकर 19 पर आ गई. पार्टी के कई दिग्गज नेता या तो बाहर चले गए या बाहर कर दिए गए.
मायावती पहले जितनी आक्रामक नेता हुआ करती थीं, अब वह वैसा तेवर नहीं दिखा पा रही हैं. यूपी में ऊंची जातियों और मध्य जातियों के जिस संघर्ष की वजह से बीएसपी का उभार हुआ था. ये संघर्ष कम हुआ तो मायावती भी सियासी तौर पर कमजोर होती गईं. हालांकि योगी सरकार के आने के बाद सहारनपुर में दलित और राजपूतों के बीच हुए हिंसा और दलित अत्याचार के कई मामले सामने आए हैं. मायावती इन घटनाओं को अपने लिए संजीवनी की तरह देख रही हैं.
मायावती दलित समाज से आती हैं. सूबे के युवा दलित मतदाताओं को मायावती की मध्यमार्गीय दलित राजनीति पसंद नहीं है. एग्रेसिव दलित एजेंडा लेकर भीम आर्मी आगे बढ़ी. सहारनपुर घटना के मामले में भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर रावण जेल में बंद हैं.
गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी उनके हक की आवाज उग्र तेवर में उठा रहे हैं. ऐसे में मायावती का अपने वोट बैंक को संभालकर रख पाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है. मायावती फिलहाल राज्यसभा सीट के चक्कर में फंसकर खुद का सियासी वजूद खत्म होते नहीं देखना चाहतीं. यही वजह है कि उन्होंने वापस राज्यसभा जाने का ऑफर ठुकरा दिया है.