हिन्दू-महाविद्यालय में ‘ भारतीय दर्शन ’ पर राष्ट्रिय संगोष्ठी आयोजित

उत्तरी दिल्ली – हिन्दू-महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत-विभाग द्वारा गत शुक्रवार को भारतीय दर्शन के प्रकरण-ग्रन्थों की अध्ययन-अध्यायपन की पद्धति पर एकदिवसीय राष्ट्रिय संगोष्ठी आयोजित की गयी। संगोष्ठी की संयोजिका डॉ० अनीता राजपाल ने बतलाया कि ऋर्षि-मुनियों ने अपनी दिव्य दृष्टि से जीव, जगत् और जगत् रचयिता को जैसा देखा वैसे ही अपने ग्रन्थों में निबद्ध किया। छः आस्तिक दर्शन माने जाते है। प्रत्येक दर्शन की व्याख्या पद्धति भिन्न-भिन्न है परन्तु सभी का लक्ष्य आत्मसाक्षात्कार है। उनकी अध्यात्म साधना के विभिन्न मार्गों से सामान्य जन भी परिचित हो सके। इस उद्देश्य की प्राप्ति में यह आयोजन सफल रहा।
लाल बहादुर शास्त्री विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विष्णुपद महापात्रा ने नव्य-न्याय की शैली में भारतीय दर्शन में अनुमान के शास्त्रीय स्वरूप के साथ-साथ उसकी व्यवहारिकता पर भी प्रकाश डाला। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के डॉ० सत्यमूर्त्ति ने व्यापक परिदृश्य में भारतीय दर्शन के स्वरूप को स्पष्ट किया। निगम (वेदाधारित दर्शन), आगम ( वैष्णव, शैव, शाक्त ) और श्रमण ( जैन, बौद्धादि ) इन तीन प्रमुख रूपों में भारतीय दर्शन विभाजित है। सर्वप्रथम इनकी मौलिक अवधारणा को समझना होगा। इनके सिद्धान्त और पद्धतियों में भिन्नता है परन्तु ये भिन्न होते हुए भी अभिन्न है। डॉ० वेदप्रकाश डिन्डोरिया ने ‘ योगश्चित्तवृत्तिनिरोध ‘ सू़त्र को स्पष्ट करते हुए कहा कि आत्मा के बन्धन का कारण उसका चित्त के माध्यम से विषयों के साथ सम्पर्क में आना और आसक्त हो जाना है। विषयों से चित्त का निरोध ही योग है। जीवात्मा का परमात्मा से जुड जाना ही योग है।
समापन-सत्र की अध्यक्षता दिल्ली-विश्वविद्यालय के संस्कृत-विभाग के प्रोफेसर रमेश भारद्वाज ने की ।  अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. भारद्वाज  ने कहा कि बिना गुरू की शरण में गये शास्त्र समझ में नहीं आते। संगोष्ठी के सह संयोजक डॉ० जगमोहन ने बताया कि सभी दर्शनों  – सांख्य-योग, न्याय-वैशेषिक, मीमांसा-वेदान्त पर लगभग 25 शोध पत्र विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शोध-छात्रों तथा शिक्षकों ने पढे। दौलतराम कॉलेज की शशी शर्मा ने भगवद्गीता पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। डॉ० पंकज मिश्र का पाठ्यक्रम में निर्धारित  पुस्तकों की शिक्षण पद्धति पर  विशिष्ट व्याख्यान हुआ। सेंट स्टीफन कॉलेज  के डॉ० आशुतोष माथुर ने उद्घाटन सत्र के अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में इस शास्त्र चर्चा को छात्रों, शोधार्थी और शिक्षकों के लिए उपयोगी बताया । इस प्रकार की संगोष्ठियो से हमें अपने ज्ञान को परिमार्जित और परिष्कृत करने का अवसर मिलता है।
संगोष्ठी के सहसंयोजक डॉ जगमोहन ने बताया कि संगोष्ठी में सौ से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया । संगोष्ठी की संयोजिका डॉ अनीता राजपाल ने  संगोष्ठी के  सफलता पूर्वक समापन पर पर सभी प्रतिभागियों , संस्कृत विद्वानों का उनकी उपस्थिति के लिए आभार व्यक्त किया l उन्होंने कहा कि हम सबके लिए प्रसन्नता का विषय है कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ अंजू श्रीवास्तव इस प्रकार की संगोष्ठियो के लिए प्रोत्साहित करती है , उन्ही के प्रोत्साहन का ही परिणाम है यह कार्यक्रम बेहद सफल रहा । डॉ अनीता ने बताया  कि संस्कृत वाडयम् के विभिन्न विषयों पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी करने की योजना है।