योगी की चुनौतियां बड़ी , CM मोदी के इन 10 फैसलों से

एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दावा किया कि यदि राज्य में भी उसी पार्टी की सरकार बने जिसकी केन्द्र में सत्ता हो तो राज्य का तेज आर्थिक विकास किया जा सकता है. मोदी ने 2001 में जब गुजरात की कमान संभाली उस वक्त केन्द्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार थी और इस दावे के आधार पर उनके पहले तीन साल के कार्यकाल के दौरान 2004 तक केन्द्र में बीजेपी सरकार रही. इस दावे पर उत्तर प्रदेश की जनता 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को पूर्ण बहुमत दिया जिसके बाद उम्मीद लगाई गई कि उत्तर प्रदेश में आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार में बड़ा इजाफा देखने को मिलगा. लेकिन क्या आर्थिक ग्रोथ में इजाफे की इस उम्मीद पर केन्द्र सरकार के फैसलों और कार्यक्रमों का विपरीत असर राज्य सरकार के खजाने पर देखने को मिलेगा?

जानें बीते एक साल के दौरान केन्द्र सरकार के किन फैसलों का उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है नकारात्मक असर और जिनसे बढ़ गई है योगी सरकार की चुनौतियां.

1. नोटबंदी

दिसंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान कर केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों के सामने कड़ी चुनौती रख दी थी. एक झटके में लिए गए इस फैसले से उत्तर प्रदेश में भी औद्योगिक गति ठप्प पड़ गई. छोटे और मझोले कारोबार कैश की किल्लत में आ गए जिससे उत्पादन सीधे तौर पर प्रभावित हुआ. वहीं कैश कारोबार पर लगी लगाम के चलते रियल एस्टेट सेक्टर सुस्त पड़ा और दोनों ही कारणों से राज्य सरकार के खजाने पर विपरीत असर पड़ा.

2. जीएसटी

जुलाई 2017 में केन्द्र सरकार ने पूरे देश में एकीकृत टैक्स व्यवस्था जीएसटी लागू की. इस टैक्स सुधार का दबाव भी सीधे तौर पर राज्यों की कमाई पर पड़ा. जहां जीएसटी लागू करने के बाद शुरुआती महीनों में उत्पादन गिरने से टैक्स कलेक्शन के आंकड़े कमजोर रहे वहीं जीएसटी ने केन्द्र और राज्यों के बीच कर विभाजन की प्रक्रिया को भी नए सिरे से शुरू किया. इसके अलावा इस आर्थिक सुधार का विपरीत असर से देश समेत राज्यों की जीडीपी में कमजोरी देखने को मिली.

3. रेरा

केन्द्र सरकार ने संसद में रेरा कानून पास कर देश के सभी राज्यों को रिएल एस्टेट सेक्टर में सुधार करने के लिए अपना-अपना कानून तैयार करने का फरमान सुनाया. पूर्व की समाजवादी पार्टी सरकार के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में रेरा कानून बनाने की कवायद शुरू हुई हालांकि योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद एक बार फिर नए सिरे से रेरा की कवायद शुरू हुई. नतीजा यह कि योगी सरकार के एक साल के कार्यकाल के बाद भी यह प्रक्रिया चल रही है. वहीं दोनों नोटबंदी और जीएसटी से दबाव में आए रिएल एस्टेट सेक्टर के अब रेरा से होने वाले सुधारों तक बाजार में सुस्ती की उम्मीद है.

4. स्वच्छ भारत अभियान

स्वच्छ भारत अभियान केन्द्र सरकार की फ्लैगशिप योजना है. इस अभियान के तहत 2 अक्टूबर 2019 तक “स्वच्छ भारत” की परिकल्पना को साकार करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. गौरतलब है कि मोदी सरकार ने केन्द्र की सत्ता संभालने के बाद केन्द्रीय योजनाओं में राज्य सरकारों की भागीदारी में इजाफा किया है. जहां पहले केन्द्रीय योजना में केन्द्र और राज्य में 75:25 फीसदी के आधार पर फंड एकत्र करने का प्रावधान था अब ज्यादातर योजनाओं में 60:40 फीसदी के आधार पर केन्द्र और राज्य फंड लगाते हैं. इसका सीधा असर राज्य सरकारों की खर्च करने की छमता पर पड़ा.

5. मेक इन इंडिया

मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत जहां केन्द्र सरकार ने देश में उत्पादन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए विदेशी कंपनियों को भारत में लाने की पहल की वहीं राज्यों को भी इसी नीति पर चलने के लिए विवश होना पड़ा. उत्पादन क्षेत्र में अग्रणी राज्यों के लिए तो यह चुनौती नहीं साबित हुआ लेकिन पिछड़े राज्यों के लिए यह परेशानी का सबब बना. विदेशी कंपनियों को लुभाने के लिए पर्याप्त संगठनात्मक ढांचा तैयार करने ऐसे राज्यों की प्राथमिकता बनी और उत्तर प्रदेश उनमें से एक है.

6. किसान कर्जमाफी

राज्य में बीजेपी सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का किसान कर्ज माफी का वादा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के लिए बड़ी चुनौती साबित हुई. एक तरफ चुनावी वादे को पूरा करना था तो दूसरी तरफ इसका आर्थिक दबाव सीधे तौर पर राज्य के सरकारी खजाने पर पड़ना था. वहीं इस फैसले से राज्य में बैंकों के लिए नए कर्ज देने का वातावरण भी खराब हुआ.

7. नमामि गंगे

केन्द्र सरकार के एक और फ्लैगशिप योजना नमामि गंगे का भी नकारात्मक असर उत्तर प्रदेश के खजाने पर पड़ा. इस केन्द्रीय योजना में उत्तर प्रदेश अहम है क्योंकि इसी राज्य में गंगा और उसकी ट्रिब्यूटरी नदियां का सबसे बड़ा जाल है. वहीं योजना में केन्द्र और राज्य सरकार के खर्च का अनुपात 70:30 होने के चलते इसे संचालित करने का बोझ भी राज्य सरकार के खजाने पर अहम रहा.

8. सातवां वेतन आयोग

मोदी सरकार ने अगस्त 2016 में लगभग 50 लाख केन्द्रीय कर्मचारियों के वेतन और भत्ते में इजाफा करने के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया. इस फैसले के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश को भी अपने लाखों कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए उसी अनुपात में वेतन, भत्ते और पेंशन में वृद्धि करनी पड़ी. लिहाजा, 2017 के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व से एक बड़ा हिस्सा वेतन आयोग द्वारा बढ़ी हुई सैलरी और पेंशन के नाम रहा.

9. किसानों की आमदनी दोगुना करना

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशभर में किसानों की आमदनी को दोगुना करने का ऐलान किया. इस ऐलान को पूरा करने के लिए केन्द्र सरकार ने एग्री उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में डेढ़ गुना बढ़ोत्तरी करने का फॉर्मूला रखा. इस फॉर्मूले के चलते उत्तर प्रदेश में किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लिए राज्य सरकार को भी गन्ना समेत गेंहू, चावल समेत अन्य उत्पादों के समर्थन मूल्य में इजाफा करने की चुनौती है. राज्य सरकार को एमएसपी में यह इजाफा भी राज्य के खजाने से करना होगा.

10. हेल्थ इंश्योरेंस

केन्द्र सरकार ने मौजूदा वर्ष के अपने बजट में हेल्थ इंश्योरेंस की फ्लैगशिप योजना का ऐलान किया है. इस योजना के चलते अलग-अलग राज्यों में हेल्थ सेक्टर की चल रही तमाम योजनाओं का एक तरफ केन्द्रीय योजना में समायोजन करने की चुनौती है वहीं इस बड़ी योजना के लिए राज्य सरकार के सामने अपने हिस्से का योगदान भी राज्य के खजाने से करना है.