दुनिया की सबसे मशहूर सोशल साइट फेसबुक ने भारत में पिछले कुछ सालों में तेजी से कदम बढ़ाए हैं. यहां इसकी लोकप्रियता में इतनी रफ्तार से इजाफा हुआ है कि दुनिया में सबसे ज्यादा फेसबुक यूजर्स आज भारत में हैं. वहीं, दूसरी तरफ 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से व्यवस्थाओं का भी डिजीटलीकरण हुआ है. लेकिन ऑनलाइन सुरक्षा के नाम पर देश में आज भी वही कानून है, जो 18 साल पहले बना था.
सपेरों का देश कहे जाने वाले भारत में आज करीब 250 मिलियन लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं. 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 36 करोड़ से ज्यादा लोग इंटरनेट यूज करने लगे हैं. यानी हर 100 लोगों में 28 लोगों की पहुंच इंटरनेट तक है. आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद के मुताबिक मौजूदा वक्त में देश की 120 करोड़ जनता के आधार कार्ड हैं. इससे भी आगे अब भारतीय इकोनॉमी डिजिटल हो रही है. 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देश में चल रहे 500 और 1000 के नोट पर बैन लगाया तो सरकार ने देशवासियों से ऑनलाइन बैंकिंग, डिजिटल बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग पर आने का आह्वान किया. सरकार के फरमान और कैश की कमी ने लोगों को कैशलेस बनने को मजबूर कर दिया.
मगर, हाल में जब फेसबुक के जरिए लोगों की निजी जानकारी लीक होने का खुलासा हुआ तो पूरे देश में हंगामा मच गया. एक विदेशी कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका पर फेसबुक से डाटा लेकर भारत में चुनावों को प्रभावित करने के आरोप लगे. इसके बाद देश के दोनों मुख्य दल सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस के बीच जनता का डेटा एक्सपोर्ट करने के आरोप-प्रत्यारोप होने लगे. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आरोप लगा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी ऐप के जरिए जनता का डेटा अमेरिका भेजा गया तो बीजेपी ने पलटवार करते हुए कहा है कि कांग्रेस अपने ऐप से लोगों की निजी जानकारी सिंगापुर भेज रही है.
करीब एक हफ्ते से चल रहे इस एपिसोड के बीच अब तक इस खुलासे में कार्रवाई के नाम पर कैंब्रिज एनालिटिका को नोटिस भेजा गया है. सरकार ने कैंब्रिज एनालिटिका से 31 मार्च तक जवाब मांगा है कि क्या वह भारतीयों के डेटा का दुरुपयोग कर उनके मतदान करने के तरीके को प्रभावित करने में शामिल थी.
नोटिस में कंपनी से यह भी पूछा गया है कि किन इकाइयों ने उसकी सेवाएं ली हैं, वह किस तरीके से आंकड़े रखती है और क्या यूजर्स की सहमति लेती है. वहीं, दूसरी तरफ फेसबुक को इस गुनाह के लिए सिर्फ चेतावनी दी गई है. फेसबुक से कहा गया है कि अगर उसने आंकड़ों की चोरी के जरिए चुनावों को प्रभावित करने का प्रयास किया तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
अब कानून पर आते हैं. मौजूदा वक्त में देश के पास आईटी एक्ट के रूप में एक कानून है, जो इस तरीके के मामलों में इस्तेमाल किया जाता है. डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहे भारत में ये कानून साल 2000 में लाया गया था, जिसके बाद इसमें 2008 में संशोधन हुआ. समय-समय पर विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि यह कानून मौजूदा परिस्थिति के लिहाज के नाकाफी है और खासकर डेटा चोरी के संबंध में और भी कमजोर. ऐसे में सूचना तकनीक मंत्रालय ने इस दिशा में आगे बढ़ते हुए ‘डाटा प्रोटेक्शन कानून’ लाने का कदम उठाया.
इसके लिए 31 जुलाई 2017 को मंत्रालय ने जस्टिस बीएन कृष्णा की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन किया. इस कमेटी में जस्टिस कृष्णा के अलावा 9 और सदस्य हैं, जिनमें साइबर एक्सपर्ट, इंजीनियर और मंत्रालयों के अधिकारियों समेत कानूनी जानकारी भी शामिल हैं.
इस कमेटी की जिम्मेदारी डेटा चोरी से जुड़ी समस्याओं का पता लगाकर उन्हें दूर कैसे किया जाए, इस पर काम करना है. तमाम पहलुओं पर काम करने के बाद कमेटी ‘डाटा प्रोटेक्शन बिल’ का मसौदा तैयार करेगी, जिसके आधार पर कानून लाया जाएगा. हालांकि, यह कब तक हो पाएगा इसे लेकर अभी स्पष्ट जानकारी नहीं है.
इस संबंध में इंडिया टुडे से खास बातचीत में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि मौजूदा वक्त में सरकार के पास आईटी एक्ट है और इस समस्या को एड्रेस करने के लिए सरकार एक बेहतर डाटा प्रोटेक्शन कानून लाने जा रही है. यानी अभी कानून आएगा.
ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जो देश में कंप्यूटर क्रांति लाने का क्रेडिट लेती है और कार्यकर्ताओं के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़े पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी अब तक डिजिटल भारत को सुरक्षित बनाने के लिए कोई बड़ा कदम क्यों नहीं उठा पाई?