कट्टरता की लड़ाई में बाबा साहेब का संविधान गुम हो गया

(विवेक मित्तल) 2 अप्रैल, 2018। डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान की रक्षा के लियेे, उनके द्वारा बनाये गये नियमों और कानूनों को खूले आम तोड़ा गया है दलित भारत बन्द के दौरान। यह कैसा भारत बन्द है? जिनको अपना मानते हो उन्हीं के संविधान का उल्लंघन कर हक मांगने का यह कैसा रास्ता अपनाया इन दलित आन्दोलनकारियों ने? जो डॉ. भीमराव अम्बेडकर में, उनके द्वारा बनाये गये संविधान और कानून में विश्वास रखते हैं वे इसका सरेआम माखौल नहीं उड़ाते। आज का आन्दोलन ऐसे लोगों के हाथों में चला गया जिन्होंने कभी बाबा साहेब को पढ़ा ही नहीं। तभी तो दलित भारत बन्द में शामिल युवकों ने पूरे देश में अनेक स्थानों पर सरेआम गुण्डागर्दी की, उत्पात मचाया, लूटपाट की, देवी-देवताओं का अपमान किया गया, आगजनी की, पत्थरबाजी की, निर्दोष लोगों के साथ मारपीट की। ऐसी घटनाओं का सभ्य समाज में कतई स्थान नहीं है। यह बन्द मुख्य कार्यकर्ताओं के हाथों से निकल कर उपद्रवियों और अराजकतत्वों के हाथों में चला गया या फिर जो कुछ भी घटित हुआ वो पूर्णतया नियोजित था। शान्त माने जाने वाले शहर बीकानेर में भी पत्थारबाजी की घटना हुई, बेकसुर दुकानदारों और बार परिसर में वकीलों से मारपीट की गई, कई वकीलों को गम्भीर चोटें आई हैं। इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए ऐसे लोगों को चिन्हित करना होगा जिन्होंने बीकानेर के सौहार्दपूर्ण वातावरण को बिगाड़ने के लिए आग में घी डालकर पर्दे के पीछे से तमाशा देखा हैं। हमारे संविधान में किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव करने की आज्ञा नहीं है। लगता है कट्टरता की लड़ाई में बाबा साहेब का संविधान कहीं गुम हो गया है। निजी राजनैतिक स्वार्थ के लिए, चन्द वोटों को लिए समाज में वैमन्सय की खाई को चौड़ा करने वाली मौकापरस्त ताकतों से सावधान रहने का आवश्यकता है, तभी हमारी, समाज की, राज्य की और देश की भलाई है।