दिल्ली – फोर्टिस गुड़गांव के डाॅक्टरों के सामने काश्मीर के मास्टर मौहम्मद असीम का एक अत्यधिक जटिल और अनोखा मामला सामने आया जो एक अनोखी परिस्थिति का सामना कर रहा था- बच्चे के हृदय में एक बड़ा छेद था और उसकी महाधमनी एवं श्वास नली गलत चैंबर से बाहर आ रहे थे। इस जटिलता को और बढ़ाते हुए खून की मुख्य नलियों में से एक वाॅल्व के नीचे ब्लाॅक हो गई थी जिसके परिणामस्वरूप 100 फीसदी की जगह महज 52 फीसदी आॅक्सीजन संकेद्रण की वजह से बच्चा नीला पड़ गया था। डाॅ. विजय अग्रवाल, निदेशक एवं विभाग प्रमुख, पेडियाट्रिक सर्जरी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के नेतृत्व में डाॅक्टरों ने मरीज की कंडीशन को समझा और डबल रुट ट्रांसलोकेशन (डीआरटी) सर्जरी कर सफलतापूर्वक आॅपरेशन किया।
मास्टर मौहम्मद असीम को जन्म से कठिन जीवन का सामना करना पड़ा। बच्चा जन्म के समय नीला पड़ा हुआ था और आसानी से थक जाने के साथ ही नीला (साइनाॅसिस) पड़ता गया। हाइपाॅक्सिया के कारण उसका हीमोग्लोबिन 20 के खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। प्रवेश के समय एक ईको और सीटी मूल्यांकन किया गया जिसके बाद एक जटिल सर्जरी करने का निर्णय किया गया, इसके लिए परिवार के साथ परामर्श की गई जिन्हें जोखिमों के बारे में बताया गया। डीआरटी रिपेयर में वाॅल्व हृदय की मांसपेशियों और कोरोनरी आर्टरी जैसे ढांचों की फैशनिंग, कटिंग, सिलाई, डाइसेक्टिंग करने और योजना बनाने के लिए कुछ जटिल चरणों को पूरा करने की जरूरत होती है।
डाॅ. विजय अग्रवाल ने कहा, 8 घंटे तक चला आॅपरेशन और आॅपरेशन के बाद मरीज में सुधार की प्रक्रिया बहुत ही अच्छी तरह पूरी हुई। आईसीयू से बाहर लाने के सिर्फ 5 घंटे के बाद उससे वेंटिलेटर हटा लिया गया। अगले दिन आॅक्सीजन काॅन्सेंट्रेशन की मात्रा 100 फीसदी तक पहुंच गई। उन्हें लिक्विड और सेमी-साॅलिड भोजन दिया और आॅपरेशन के ठीक 7 दिन बाद डिस्चार्ज कर दिया गया। डीआरटी रिपेयर के आंकड़े भारत में उपलब्ध नहीं है लेकिन अनुमान है कि 1-2 सर्जनों द्वारा ऐसे सिर्फ 5-6 आॅपरेशन किए गए।
डाॅ. सिमरदीप गिल, जोनल निदेशक, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने कहा, ’’भले ही जोखिम भरा हो, सफल होने पर डीआरटी रिपेयर लंबी अवधि के अच्छे परिणाम देता है।