फोर्टिस हाॅस्पिटल वसंत कुंज ने पार्किंसन रोगियों और उनके परिवारों के लिए की अनूठी शुरुआत

नई दिल्ली – फोर्टिस हाॅस्पिटल फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल, वसंतकुंज ने मरीजों और उनके देखभाल करने वालों को एकसाथ लाने के उद्देश्य से एक सहायता समूह ( सपोर्ट ग्रुप ) लॉन्च किया है। कार्यक्रम में 35 से ज्यादा पार्किंसन मरीजों और उनके परिवारों ने उत्साहपूर्वक प्रतिभागिता की। न्यूरोडिजेनरेटिव डिस्आॅर्डर, पार्किंसन की बीमारी धीरे-धीरे विकसित होती है और इसके लक्षण समय के साथ प्रकट होते हैं। तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी होने से व्यक्ति की गतिशीलता कौशल प्रभावित होता है। कंपन, अकड़न, चलने या हिलने-डुलने में कठिनाई महसूस होना पर्किंसंस रोग का शुरूआती संकेत हो सकता है। यह बीमारी मुख्य रूप से डोपामिन पैदा करने वाले न्यूराॅन पर शुरूआती असर डालते हैं, वहीं पार्किंसंस रोग मानसिक अवसाद जैसे डिप्रेशन चिंता और घबराहट से भी जुड़ा हुआ है।

इस पेशकश के तहत शिक्षण  गतिविधियों का उद्देश्य  गतिशीलता समन्वयक के महत्व और इसकी अनुपस्थिति से व्यक्ति के जीवन में किस तरह का विनाशकारी असर पड़ सकता है, उसे बताना है। इसमें पार्किंसंस को समझने तथा उसका प्रबंधन करने के बारे में डाॅ. माधुरी बेहारी  सीनियर कंसल्टैंट – न्यूरोलाॅजी, फोर्टिस हाॅस्पिटल, वसंत कुंज द्वारा एक सूचनाप्रद सत्र भी शामिल था।  इस तथ्य पर जोर दिया गया कि पार्किंसंस असाध्य रोग है लेकिन डाॅक्टर के मार्गदर्शन में इसका प्रभावी ढंग सेे मैनेज  किया जा सकता है। हालांकि इसके लिए परिवार के सदस्यों को ‘वास्तविक ज्ञान’ ( हैंड्स -आॅन अप्रोच ) अपनाने और मरीज के जीवन के विभिन्न पहलुओं – सपोर्ट ग्रुप सर्विसेस, सामान्य कल्याण का ध्यान रखना, व्यायाम और पोषण  का ध्यान रखना सुनिश्चित करने की जरूरत है। पार्किंसंस मरीजों की देखभाल करना पूूर्णकालिक जिम्मेदारी है जिसमें धैर्य और सहानुभूति की जरूरत होती है।

डाॅ. बेहारी ने कहा, डाॅक्टर के तौर पर चालीस वर्षों तक काम करने के दौरान, मैंने कई ऐसे उदाहरण देखे है , जहां मरीज के साथ उनके परिवार वाले भी  तनावग्रस्त हो जाते हैं। इस तरह के मरीजों में अंगों, हाथों और उंगलियों में समस्या होती है। इनमें मांसपेशियों में अकड़न, पोस्चर बिगड़ना, बोलने – लिखने में समस्या तथा गतिशीलता पर नियंत्रण नहीं होने की समस्या होती है। अपनी गतिशीलता पर नियंत्रण रखने में अक्षम मरीजों की देखभाल कराना काफी कठिन हो जाता है। इसीलिए सपोर्ट ग्रुप की स्थापना करने के पीछे परिवार तथा मरीजों के बीच भावनात्मक बंधन को बढ़ावा देने का विचार था, जिससे मरीज एक-दूसरे से संवाद कर सुनिश्चित कर सकें, जिससे उन्हें यह अहसास हो कि वे अपने संघर्ष  में अकेले नहीं हैं और उन्हें प्रेरित करना तथा सकारात्मक बनाना भी इसका उद्देशय है।