सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग को लेकर विपक्ष में गहरी दरार नजर आ रही है. तृणमूल कांग्रेस (TMC) और डीएमके ने किनारा कर लिया है. वहीं, अब राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू पर भी सब की नजर लगी हुई है. महाभियोग के प्रस्ताव पर कोई फैसला लेने में नायडू की भूमिका अहम है.
सूत्रों के मुताबिक इन विपक्षी दलों ने राजनीतिक कारणों के चलते मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव से दूरी बना ली है. पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव को देखते हुए टीएमसी अपनी छवि बेहतर बनाने में जुटी हुई है. टीएमसी पंचायत चुनाव के अपने उम्मीदवारों को शपथ दिला रही है कि अगर वे ग्राम पंचायत और पंचायत समिति में निर्वाचित होते हैं, तो पार्टी की अनुमति के बिना (सरकारी) योजनाओं, कृषि उपकरण का लाभ न खुद उठाएंगे और न उनके परिवार के लोग. इसके साथ ही ठेकेदारी, टोल बूथ और खनन जैसे कारोबार में भी वे शामिल नहीं होंगे. इतना ही नहीं, वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल गलत कामों के लिए भी नहीं करेंगे.
इससे पहले तृणमूल कांग्रेस ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने का विरोध नहीं किया था. टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने खुद कहा था कि महाभियोग प्रस्ताव पर उनकी पार्टी दूसरे विपक्षी दलों का साथ देगी. हालांकि चुनावी फायदे को देखते हुए पार्टी ने अपना रुख बदल दिया है. इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया कि TMC में महाभियोग के कई पहलुओं पर चर्चा हुई. इस पर भी विचार किया गया कि महाभियोग की प्रक्रिया लंबी चलेगी और अक्टूबर में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा का कार्यकाल खत्म हो जाएगा. इसके अलावा कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रहे सौमित्र सेन की तरह दीपक मिश्रा के खिलाफ स्पष्ट सबूत नहीं हैं. इस वजह से TMC ने मामले पर सुरक्षित रास्ता अपनाना बेहतर समझा.
वहीं, टीएमसी की तरह डीएमके भी महाभियोग प्रस्ताव पर कांग्रेस के साथ होती नजर नहीं आ रही है. हालांकि डीएमके के सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन बाद में पीछे हट रहे हैं. डीएमके नेता कनिमोझी ने कहा कि जब संसद में मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ प्रस्ताव आएगा, तो वो उनकी पार्टी इसका समर्थन करेगी.
मालूम हो कि शुक्रवार को कांग्रेस की अगुवाई में सात विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू से मुलाकात कर उन्हें मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने का प्रस्ताव सौंपा था. विपक्षी पार्टियों की कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद की अगुवाई में बैठक हुई थी, जिसके बाद विपक्षी दलों के नेता उपराष्ट्रपति को प्रस्ताव सौंपने पहुंचे थे. अब नजर वेंकैया नायडू पर टिकी हुई हैं कि वो इस मसले पर क्या और कब तक फैसला लेते हैं. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि हम लोग ये प्रस्ताव एक हफ्ते पहले ही पेश करना चाहते थे, लेकिन उपराष्ट्रपति के पास समय नहीं था. हमने राज्यसभा की सात राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर राज्यसभा के सभापति को महाभियोग का प्रस्ताव सौंप दिया है. उन्होंने कहा कि 71 सांसदों के हस्ताक्षरों के साथ ये प्रस्ताव सौंपा गया है. इनमें सात रिटायर हो चुके हैं. हालांकि फिर भी यह जरूरी संख्या से अधिक है. उन्होंने कहा कि ये प्रस्ताव पांच बिंदुओं के आधार पर पेश किया गया है. महाभियोग पर कांग्रेस के अंदर ही दो धड़े बन चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस का दांव मुश्किल में नजर आ रहा है.