सत्ता-शक्ति-रुतबा

वर्तमान में सत्ता सुख भोगने वाले दल का हर छोटा-बड़ा कार्यकर्ता, नेता, प्रवक्ता सभी जगह चाहे वो पाटा चर्चा हो, चाय पर चर्चा हो, टी.वी. चैनल्स पर बहस हो सभी एक सुर में राग अलाप रहे हैं कि पूर्व में कांग्रेस ने ऐसा किया तो अब हम क्यों ना करें। अब सवाल यह उठता है कि क्या अतीत में अगर कुछ गलत हुआ है तो वर्तमान सरकार भी उसका अनुसरण करेगी? पूर्ववर्ती सरकारों ने चोरी की है तो क्या ये भी चोरी करेंगे? या पूर्व की रही खामियों को दूर करके मिसाल कायम करेंगे। जिस परिवर्तन की उम्मीद से सत्ता परिवर्तन हुआ, गुजरते वक्त के साथ खरी नहीं उतर पा रही है वर्तमान सरकार। कांग्रेस और भाजपा की चाल-चरित्र और चेहरे में फर्क कहाँ? सत्ता पाने के लिए पूर्व में भी साम-दाम-दण्ड भेद से युक्त हथकण्डे अपनाते रहे हैं ये दल और आज भी यह परम्परा सतत् रूप से जारी है तो फिर कैसे होगा राजनैतिक शुद्धिकरण?
लोकतन्त्र में सत्ता में भागीदारी द्वारा ही शक्ति प्राप्ति की जा सकती है। सत्ता है तो शक्ति है, शक्ति है तो हस्ती है, रूतबा है। इस रूतबे को पाने का एकमात्र जरिया है चुनाव। चुनाव में मतदाता यानि देश के नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करके अपने प्रतिनिधि चुनते हैं और सरकारें बनती है। लेकिन देश में जब-जब खण्डित जनादेश मिला है तब-तब सभी राजनैतिक दलों ने नैतिकता को तार-तार करके सत्ता हथियाने का काम किया है, ऐसे में इन दलों से राजनैतिक शुचिता की उम्मीद रखना बेमानी है। हमारे मत का मोल सदैव बना रहना चाहिए, चुनाव के बाद मतदाता क्यों गौण बन जाता है? सत्ता के संघर्ष में घिरे सभी राजनैतिक दल वोटर को उपयोग की वस्तु मान बैठे है, पाँच साल में एक बार उपयोग करो और फिर भूल जाओ (यूज एण्ड थ्रो)। सेवाभावना सत्ता की गुलाम बन बैठी है और सत्ता धन-बल की। सत्ता और शक्ति पर आधिपत्य के लिए हर युग में संघर्ष होता आया है, वर्तमान में भी हो रहा है और आगे भी जारी रहेगा। आप और मैं तमाशबीन बन तमाशा देखते रहेंगे।
ख्वाहिश तो मेरी भी है कि मैं नेता बन जाऊँ।
पर साम-दाम वाले हथकण्डे कहाँ से लाऊँ।।