​​स्टे फ्री और यूनिसेफ ने ‘ ​​पहेली की सहेली ’ के प्रति ​प्रतिबद्धता ​को सुदढ़ किया

नई दिल्ली – जानॅसन व जाॅनसन के प्रमुख सेनेटिरी नेपकिन ब्रांड ‘स्टे फ्री’ और यूनिसेफ ने आज किशोर लड़कियों के बीच मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य और स्वच्छता प्रबंधन में सुधार लाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर फिर से बल दिया। इस छह साल पुरानी भागीदारी का फोकस लड़कियों को मासिक धर्म स्वच्छता बावत शिक्षित करने के लिए अभिनव संचार उपकरण बनाने पर रहा है।

‘ पहेली की सहेली ’ किशोर लड़कियों,मांओं और अध्यापकों के लिए एक प्रभावशाली उपकरण है। यह महज एक कहानी आधारित सचित्र फ्लिपबुक नहीं है, लेकिन इसमें पांच लघु फिल्में,( पांच मिनट की हर फिल्म),पहेलियां,गतिविधि आधारित खेल भी हैं। संक्षेप में यह मनोरंजन व शिक्षा से भरपूर एक ऐसा पैकेज है जो विस्तार से यह बताता है कि मासिक धर्म क्या है।

भागीदारी का ध्यान मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन संबंधी रूकावटों को समझने पर केंद्रित रहा। इससे यह पता चला कि कैसे विभिन्न सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन हस्तक्षेप जैसे कि पारस्परिक संचार,सामाजिक लामबंदी और हितधारकों के बीच मीडिया आधारित गतिविधियां ज्ञान को बढ़ाती हैं,नजरिए को बदलती हैं और व्यक्तिगत,परिवार व सामुदायिक स्तर पर सकारात्मक व्यवहार को प्रोत्साहित करती हैं।

​सम्बंधित क्षेत्र में की गई शोध के परिणाम बताते हैं कि 93 प्रतिशत लड़कियों ने औसतन कम से कम एक या दो दिन स्कूल मिस किया और इसका कारण पीरियड के दौरान होने वाली असुविधा थी। लेकिन सेनेटिरी नेपकिन तक ​पहुँच, मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता बावत जानकारी और ज्ञान का तात्कालिक प्रभाव स्कूल हाजिरी पर दिखाई दिया जैसे कि 97 प्रतिशत ने मासिक धर्म के दौरान स्कूल अटेंड करने को स्वीकृति दी। सामुदायिक सदस्यों,किशोर लड़कियों,मांओं, ​ फ्रंटलाइन ​कार्यकर्ताओं और अध्यापकों के बीच परिणाम बहुत ही शानदार रहे हैं। उन जिलों में जहां पहेली की सहेली को लागू किया गया,  मासिक धर्म- स्वच्छता से जुड़ी आदतों में उल्लेखनीय बदलाव आया और लिहाजा किशोर लड़कियों के बीच विश्वास में सुधार देखा गया। बिहार में 74 प्रतिशत और झारखंड में 76 प्रतिशत लड़कियों ने पैड और कपड़ों का प्रयोग किया जबकि 2013 में यह आंकड़ा बिहार में 50 प्रतिशत और झारखंड में 46 प्रतिशत था। किशोर लड़कियों ने निपटान की बेहतर आदतों को अपनाया और उन्हें इतना सशक्त बना दिया कि वे बेहतर स्वास्थ्य और स्वच्छता बावत खुलकर बोल सकें , जबकि मांओं और अध्यापकों ने भी इस मुददे पर खुलकर बात की।

अनुमानों से पता चलता है कि भारत में करीब 110 मिलियन किशोर लड़कियों में मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता और निपटान वाली आदतों के ज्ञान की कमी है,और ये उनकी शिक्षा व स्वास्थ्य को प्रतिकूल प्रभावित करते हैं। इंडियन कांसिल फाॅर मेडिकल रिसर्च की 2011-12 रिपोर्ट कहती है कि भारत में मासिक धर्म वाली केवल 38 प्रतिशत लड़कियों ने ही अपनी मांओं से मासिक धर्म के बारे में बात की थी। शिक्षा मंत्रालय के एक सर्वे से पता चला कि गांवों के 63 प्रतिशत स्कूलों में अध्यापकों ने मासिक धर्म के बारे में और इससे कैसे स्वच्छ तरीके से निपटा जाए, के बारे में कभी भी चर्चा नहीं की । इस साझेदारी की कोशिश है कि ‘ पहेली की सहेली ’ प्रभावकारी संचार किट का प्रसार व्यापक दर्शकों तक किया जाए, जिनकी जिंदगीं एक अर्थपूर्ण मासिक धर्म शिक्षा के साथ सुधर सकती है। ‘ पहेली की सहेली ’ राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम में शमिल है,यह 10-19 आयुवर्ग वाले किशारों को लक्षित करने वाला राष्ट्रीय कार्यक्रम है। यह एक खुला स्त्रोत है और पब्लिक डोमेन में है।

जाॅनसन व जाॅनसन इंडिया के मार्काटिंग वाइस प्रेजीडेंट डिंपल सिद्वर ने कहा ‘  हम स्टे फ्री में मानते हैं कि प्रत्येक लड़की जैसा भविष्य चाहती है,उसे बनाने के लिए मौकों को पाने की हकदार है। परंतु बिना शिक्षा के, यह स्वप्न से अधिक कुछ नहीं है। शोध से पता चलता है कि मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता और सेनिटेशन सुविधाओं की कमी की वजह से अधिक लड़कियां बीच ही में स्कूल छोड़ देती हैं। हम स्टे फ्री में किशोर लड़कियों के व्यवहार में परिवर्तन लाने वाले विषय पर लगातार काम कर रहे हैं। और इस वास्तविकता को एड्रस करने के लिए, युवा लड़कियों को शिक्षित करने के जरिए हमारी भागीदारी यूनिसेफ के साथ निरंतर रहेगी।

यूनिसेफ भारत प्रतिनिधि डा. यासमिन अली हक ने कहा, ‘यह कहना सिर्फ सही नहीं है कि किशोर लड़कियां मासिक धर्म से जुड़े दर्द या दाग के कारण स्कूल मिस करने की जरूरत महसूस करती हैं।