बिना साधना के विकास अर्थात् विनाश- स्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज

(सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन का हुआ समापन)
राष्ट्र एवं हिन्दू धर्म पर हो रहे विविध आघातों पर व्यापक विचार-विमर्श!
बिना साधना के विकास अर्थात् विनाश- स्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज
(विवेक मित्तल) रामनाथी (गोवा)- हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन सम्पन्न हुआ। 4 जून से 7 जून की अवधि में हुए इस अधिवेशन में भारत सहित पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि देशों में हिन्दुओं पर हो रहे अन्याय-अत्याचारों की विस्तृत रूप से चर्चा हुई। समापन अवसर पर श्रीलालेश्वर महादेव मन्दिर के अधिष्ठाता धर्मगुरु स्वामी सोमगिरिजी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘अपना हृदय मूलतः प्रेम और सद्भावना का सागर है; परन्तु ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा, आध्यात्मिक दृष्टि न होने से अधिकांश व्यक्ति उसका अनुभव नहीं करत सकते हैं। ईश्वर के विषय में हमारी अवधारणा सुस्पष्ट होनी चाहिए, तब ही धर्मकार्य करना सुलभ हो जाता है। हम विकास के विरोध में नहीं हैं; परन्तु साधना के बिना विकास, अर्थात विनाश की ओर मार्गक्रमण करने समान है।’ स्वामी ने कहा कि ‘‘हमने भगवद्गीता केवल पूजा तक ही मर्यादित रखी है। गीता का आचरण हम नहीं करते हैं। इसलिए सभी समस्याएं निर्माण हुई हैं। ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ के विषय में निर्णय देते समय न्यायाधीश पवित्र राधा-कृष्ण के सम्बन्ध का उदाहरण देते हैं और सम्पूर्ण हिन्दू समाज मौन रहता है। हिन्दुओं में धर्माभिमान न होने का यह लक्षण है। घर-घर में ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित किए बिना देश में वह स्थापित नहीं होगा। प्रत्येक में महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज प्रकट होने चाहिए। हिन्दू राष्ट्र के यज्ञकुंड में अर्पित होने की इच्छा पूर्ण विश्व में फैले, ऐसी प्रार्थना है। हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे ने अधिवेशन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि समापन सत्र से पूर्व के सत्र में ‘पूर्व भारत तथा बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका एवं पाकिस्तान के हिन्दुओं की रक्षा: वर्तमान स्थिति एवं उपाय’, ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु प्रसार माध्यम एवं विचारकों का कार्य: प्रयास एवं उपलब्धियां’, ‘विद्यमान लोकतंत्र के कारण फैली दुष्प्रवृत्तियों का प्रतिकार तथा धर्मरक्षा हेतु न्यायालयीन संग्राम’, ‘ज्ञाती संस्था एवं संप्रदायों के माध्यम से धर्म एवं संस्कृति रक्षण’, ‘हिन्दू धर्मरक्षा का कार्य’, ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापना की आवश्यकता’, ‘हिन्दुओं का बलपूर्वक हो रहा धर्मांतरण’ आदि विविध विषयों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ। इस अधिवेशन में देशभर से आए 175 छोटे-बडे हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के 375 प्रतिनिधियों ने चर्चा