कुश्ती गुरु चन्दगीराम की 8वीं पूण्यतिथि पर श्रधांजलि सभा व गोष्ठी

दिल्ली –   सिविल लाइन मास्टर  चन्दगीराम अखाड़े  में देश के विख्यात पहलवान रहे पद्मश्री मास्टर चन्दगीराम की 8वीं पुण्यतिथि पर सामूहिक प्रार्थना, श्रद्धांजलि सभा, हवन-पूजन के साथ ही एक गोष्ठी का भी आयोजन किया गया । श्रद्धांजलि सभा व गोष्ठी की अध्यक्षता चन्दगीराम स्पोर्ट्स वेलफेयर चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रताप सिंह ने की । सर्वप्रथम  राजेन्द्र प्रताप सिंह और गुरूजी के वरिष्ठ शिष्य रहे विजय शर्मा मेरठ वालो ने स्वर्गीय चन्दगीराम जी के चित्र पर माल्यार्पण करके अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये । इस दौरान वहीं देश के विभिन्न भागों से आए उस्ताद खलीफा और पहलवानों ने स्वर्गीय चन्दगीराम को श्रद्धासुमन अर्पित किया जहाँ पर चन्दगीराम जी की धर्मपत्नी माता फूलवती पुत्र भारत केसरी पहलवान जगदीश कालीरामण पुत्रवधु पूनम कालीरामण के साथ ही चन्दगीराम जी के पोता-पोती अंशुमन कालीरामण और चिरागसी कालीरामण भी मौजूद थे | श्रद्धासुमन अर्पण और हवन पूजा समारोह के बाद भंडारा भी आयोजित किया गया था ।

गोष्ठी को संबोधित करते हुए चन्दगीराम स्पोर्ट्स वेलफेयर चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि चंदगी राम भारत के प्रसिद्ध पहलवान थे उन्होंने कहा हरियाणा के जिला हिसार के सिसाई गांव में 9 नवम्बर 1937 में जन्मे चंदगीराम शुरू में कुछ समय के लिए भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट में सिपाही रहे और बाद में स्कूल टीचर होने के कारण उनको ‘मास्टर चंदगीराम’ भी कहा जाने लगा था। सत्तर के दशक के सर्वश्रेष्ठ पहलवान मास्टर जी को 1969 में अर्जुन पुरस्कार और 1971 में पदमश्री अवार्ड से नवाजा गया ।

गुरु जी के शिष्य रहे मेरठ से आये 90 वर्षीय  विजय शर्मा  ने उनके जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किए है, गुरूजी के हाथ की पकड़ बहुत मजबूत दुनिया का कोई थी प्रतिद्वंद्वी पहलवान उनकी पकड में आ जाता था, तो उसे वह चीं बुलाकर ही दम लेते थे । उन्होंने कहा बीस साल की उम्र के बाद कुश्ती में हाथ आजमाना शुरू करने वाले मास्टर जी ने 1961 में राष्ट्रीय चैम्पियन बनने के बाद से देश का ऐसा कोई कुश्ती का खिताब नहीं रहा जो उन्होंने नहीं जीता हो । इसमें राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के अलावा हिंद केसरी, भारत केसरी, भारत भीम और रूस्तम-ए-हिंद आदि भी खिताब शामिल हैं । ईरान के विश्व चैम्पियन अबुफजी को हराकर बैंकाक एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतना उनका सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन माना जाता है । उन्होंने 1972 म्युनिख ओलम्पिक में देश का नेतृत्व किया और दो फिल्मों ‘वीर घटोत्कच’ और ‘टारजन’ में काम किया व साथ ही कुश्ती खेल पर पुस्तकें भी लिखी ।

इस अवसर पर जगरूप सिंह राठी (अर्जुन अवार्डी), सत्यवान कादयान (अर्जुन अवार्डी), ओमवीर सिंह, भारत केसरी सुरेश कादयान, रहमान, राजकुमार यादव, सुमेर, रंगा पहलवान, गुरु अशोक विशिष्ठ, श्री साहिल सर्राफ जी (शिव जेम्स प्रा. लि.), अशोक कोच रेलवे, चौधरी आर्यन खत्री बहादुरगड, सुरेन्द्र कालीरमण एडवोकेट, विजय पहलवान, भूप सिंह सुल्तानपुर डबास, कोच सहदेव बाल्यान, कोच देवेन्द्र सहरावत, कोच क्रिशन पहलवान, खलीफा सर्वेश दीक्षित, खलीफा लेखराम सहित भारी मात्रा में गुरूजी के शिष्यों ने आकर अपने गुरु को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए याद किया |