नोएडा – जेपी हाॅस्पिटल किर्गिस्तान से आए हेपेटिक एल्वियाॅलर एकिनोकोकोसिस के मरीज़ का सफल इलाज किया गया। डाॅं. अभिदीप चौधरी , सीनियर कन्सलटेन्ट, लिवर ट्रांसप्लान्ट डिपार्टमेन्ट, जेपी हाॅस्पिटल ने अपनी टीम के सहयोग से इस मरीज़ की सफल लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट सर्जरी की।
19 वर्षीय तालाईबेक अलीएबेक सिर, कमर और टांगों के दर्द से बेहद परेशान था, पिछले दिनों उनका वज़न 10 किलो कम हो गया था। अपनी बिगड़ती स्थिति को देखते हुए वे किर्गिस्तान में स्थानीय डाॅक्टरों से मिले। पिछले साल अप्रैल में उनमें एल्वियाॅलर एकिनोकोकोसिस का निदान किया गया। यह टेपवर्म से होने वाला संक्रमण है जो लिवर में मेलिग्नेन्ट ट्यूमर की तरह फैल जाता है। दवाओं से तालाईबेक का इलाज शुरू किया गया, लेकिन फिर भी उनकी हालत बिगड़ती गई, आखिरकार उन्हें लिवर ट्रांसप्लान्ट कराने की सलाह दी गई।
किर्गिस्तान में कई डाॅक्टरों से मिलने के बाद वे इलाज के लिए नोएडा के जेेपी हाॅस्पिटल आए जहाँ डाॅ. अभिदीप चौधरी ने उनकी जांच करने के बाद आईवीसी रिप्लेसमेन्ट के साथ लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट सर्जरी करने का फैसला लिया। लिवर डोनेट करने वाले उनके 21 वर्षीय भाई अलाईबेक अज़ीज़बेक की जांच भी की गई।
बीमारी के बारे में बात करते हुए डाॅ अभिदीप चैधरी, सीनियर कन्सलटेन्ट, लिवर ट्रांसप्लान्ट डिपार्टमेन्ट, जेपी हाॅस्पिटल ने कहा, ‘‘तलाईबेक एल्वियाॅलर एकिनोकोकोसिस से पीड़ित था, जो एक क्रोनिक पैरासिटिक संक्रमण है, इस तरह का संक्रमण कई बार जानलेवा भी हो सकता है। यह एकिनोकोकस मल्टीलोक्युलेरिस (ईएम) के कारण होता है। जांच करने के बाद हमने आईवीसी के साथ लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट की सलाह दी, क्योंकि उनकी आईवीसी पर भी पैरासाईट का असर हो चुका था। इस मामले में सर्जरी का क्युरेटिव विकल्प संभव नहीं था; लिवर ट्रांसप्लान्ट से ही उनका सही इलाज हो सकता था।’’
‘‘मरीज़ में लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट सर्जरी की गई, उनके भाई इस मामले में डोनर थे। सर्जरी बहुत जटिल थी; हमने पहले लिवर के साथ रेट्रो-हेपेटिक वेना कावा को निकाला, इसके बाद इसे कैडावेरिक एर्योटिक ग्राफ्ट से रिप्लेस किया। डोनर को सर्जरी के एक सप्ताह बाद ही छुट्टी दे दी गई। अभी तलाईबेक को इम्युनोसप्रेसेन्ट एवं अन्य दवाओं पर रखा गया है। उसका लिवर फंक्शन ठीक हैं और टीटी ट्राईफेसिक एब्डाॅमन भी सामान्य है। अब मरीज़ स्वस्थ है और अपने देश लौट सकता है।’’ डाॅ. अभिदीप बताया कि अगर मरीज़ में पहले से सर्जरी हो चुकी हो तो इस तरह के आॅपरेशन मुश्किल हो जाते हैं। इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि ट्रांसप्लान्ट से पहले अगर ज़रूरत न हो तो अनावश्यक सर्जरी न की जाए। हेपेटिक एल्वियाॅलर एकिनोकोकोसिस के मामले में लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट बहुत मुश्किल होता है। अब तक दुनिया भर में आईवीसी रिप्लेसमेन्ट के साथ लिवर ट्रांसप्लान्ट के सिर्फ 20 मामले दर्ज किए गए हैं, इनमें से भारत में हाल ही में एक ही सर्जरी हुई है।