फ़िलिपींस की अगाथा क्रिस्टी को महात्मा सुशील कुमार माँ विजया प्रोत्साहन पुरस्कार

binod takiawala

अन्तर्राष्ट्रीय इस्सयोग समाज के तत्त्वावधान में आयोजितसूक्ष्म आध्यात्मिक साधना पद्धतिइस्सयोग‘ के प्रवर्त्तक और अन्तर्राष्ट्रीय इस्सयोग समाज के संस्थापक ब्रह्मलीन सद्ग़ुरु महात्मा सुशील कुमार का दो दिवसीय १७वाँ महानिर्वाण महोत्सव,बुधवार की संध्या कंकड़बाग स्थित गुरुधाममेंसंस्था की अध्यक्ष और ब्रह्मनिष्ठ सद्ग़ुरुमाता माँ विजया जी की दिव्य उपस्थिति मेंजगत कल्याण के लिए की गई ब्रह्मांडसाधनाके साथ संपन्न हो गया। इसके पूर्व गत संध्या से जारी अखंड साधना और संकीर्तन का समापन सद्ग़ुरुगुरुमाँ की आरती के साथ संपन्न हुआ। इस अवसर पर प्रत्येक वर्ष,विशेष उपलब्धि के लिए दिया जाने वाला महात्मा सुशील कुमार माँ विजया प्रोत्साहन पुरस्कार‘ फ़िलिपींस की साधिका अग़ाथा क्रिस्टी तथा उसके भारतीय पति संतोष कुमार गुप्ता को संयुक्त रूप से दिया गया। पुरस्कार प्राप्त करने वालों में मुंबई से प्रणव गुप्ताजापान के मुकेश रंजन तथा सिंगापुर के गिरिजा शंकर के नाम भी शामिल है।

इस अवसर पर प्रतिवर्ष होनेवालाहवनयज्ञसंस्था के गोला रोड स्थित एम एस एम बी भवन में संपन्न हुआजिसमें संस्था की अध्यक्ष एवं ब्रह्मनिष्ठ सद्ग़ुरुमाता माँ विजया के साथ बड़े भैय्या श्रीश्री संजय कुमारसंगीता झानीना दूबे संदीप गुप्ताशिवम् झा,दिव्या झालक्ष्मी प्रसाद साहूके एस वर्माडा अनिल सुलभ,उमेश कुमारसरोज गुटगुटियाअनंत साहू तथा माया साहू समेत गुरुपरिवार और साधकगण सम्मिलित हुए। बड़े भैय्या द्वारामहात्मा जी द्वारा प्रयोग में लाई गई वस्तुओं की प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया। 

इस अवसर पर अपने आशीर्वचन में माताजी ने कहा किहमारे भीतर भी एक इंद्री होती है,जिसे छठी इंद्री‘ कहा जाता है। यह हमें मार्गदर्शन करती हैपर हम उसकी भाषा नहीं समझते। इसके लिए हमें स्वयं के भीतर उतरना होगा। जिस तरह सागर से मोती पाने के लिएजल में गहरे उतरना पड़ता हैउसी तरह मन का मोती पाने के लिए,स्वयं के अंतर में उतरना होगा। इस्सयोगस्वयं के भीतर उतरने का मार्ग प्रदान करता है,जो हमें सदगुरुदेव ने प्रदान किया है। माताजी ने कहा किमन हमें भटकाता है। यह उसका स्वभाव है। पर हम आंतरिक साधना सेमन‘ को अपने अधिकार में ले सकते हैं।

इसके पूर्व संस्था के उपाध्यक्ष बड़े भैय्या श्रीश्री संजय कुमार ने कहा किआंतरिक साधना से अत्यंत प्रभावकारी स्पंदन उत्पन्न होता है,जो पर्यावरण को दिव्य बनाता है। साधनापूर्णता को तब प्राप्त होती हैजब उसमें श्रद्धाभाव हो। इससे संकल्प को शक्ति मिलती है। संकल्प फल प्रदान करते हैं। हम जब सामूहिक साधना करते हैं तो उससे वातावरण में दिव्यता का स्पंदन होता है। पर्यावरण शुद्ध होता है। सद्ग़ुरुदेव ने हमें चमत्कारिक साधनापद्धति दी हैजिससे हम अपने सभी दुखों से मुक्ति पा सकते हैं। हमें शुद्ध मन से सेवा करनी चाहिए। इससे अहंकार नष्ट होता है और साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है।

इस अवसर पर विभिन्न स्थानों से आए इस्सयोगियों ने सद्ग़ुरु के चरणों में अपने भावोदगार व्यक्त किएजिनमें मीता अग्रवालसंजय कुमारसंतोष कुमार,मनोज राजविनय कुमाररणधीर कुमार सिंह राणागीता देवी तथा सुदामा राय के नाम शामिल है। 

इस महोत्सव मेंभारत,अमेरिकाइंगलैड,आस्ट्रेलिया,फ़िलिपींस समेत दुनिया भर से पाँच हज़ार से अधिक इस्सयोगी साधक और साधिकाओं की भागीदारी हुईजिनमें डा गोविंद सोलंकीश्रीप्रकाश सिंहदीनानाथ शात्रीयुगल किशोर प्रसादशरदचंद्र सखुजा के नाम सम्मिलित है। आयोजन का समापनगायकसाधक बीरेन्द्र राय द्वारा गुरूगाथा के गायन के साथ हुआ।