Shashidhar Shukla
भारत में प्रेम विवाह का बढ़ता चलन: कारण एवं प्रभाव*
*डॉ मनोज कुमार तिवारी*
वरिष्ठ परामर्शदाता
ए आर टी सेंटर, आई एम एस, बीएचयू वाराणसी
प्रेम के बारे में मानव सभ्यता के विकास के समय से ही चर्चा होती आ रही है। अलग-अलग क्षेत्र के लोग इसकी व्याख्या अलग-अलग ढंग से करते आ रहे हैं। प्रेम शब्द का मायने एवं महत्त्व दोनों ही अनंत है। प्रेम का अस्तित्व जितना पुराना है शायद प्रेम विवाह का चलन भी उतना ही पुराना है। बस इसके स्वरूप में समय-समय पर परिवर्तन होता रहा है। भारतवर्ष में वैदिक काल से ही प्रेम विवाह का प्रसंग मिलता है, कुरान में भी इसका प्रसंग है। पहले इसके उदाहरण कम मिलते थे किंतु आधुनिक समय में प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है
प्रेम एक धनात्मक संवेग है जो सभी व्यक्तियों में कम या अधिक पाया जाता है, किंतु इसकी अभिव्यक्ति का तरीका एवं अर्थ अलग-अलग परिपेक्ष में एवं अलग-अलग व्यक्तियों के साथ अलग-अलग होता है । माता पिता के संदर्भ में प्रेम अलग मायने रखता है जबकि यह मित्र या जीवनसाथी के संदर्भ में अलग अभिप्राय रखता है भाई-बहन के संदर्भ में प्रेम एक अलग अर्थ अभिव्यक्त करता है।
पूरी दुनिया में लगभग 50% लोग प्रेम विवाह करते हैं किंतु भारत में विवाह को दो व्यक्तियों के बीच का संबंध नहीं माना जाता बल्कि दो परिवार एवं दो समाज के रीति- रिवाज, परंपराओं एवं व्यवहार मानको का मिलन माना जाता है। यूनिसेफ (2018) की रिपोर्ट में एक सर्वे के हवाले से यह कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में 3% लोग भारत में प्रेम विवाह करते हैं।भारतवर्ष में 5% लोग प्रेम विवाह करते हैं तथा 2% लोग प्रेम एवं अरेंज मैरिज करते हैं ऐसा अनुमान आईएचडीएस ( भारतीय मानव विकास सर्वे) का है। भारत में 13% महिलाएं शादी से पूर्व अपनी पत्तियों से परिचित होती हैं । लगभग 18% लोगों के मन में प्रेम विवाह की इच्छा होती है । यह देखा गया है कि कम उम्र के किशोर किशोरी भावनाओं के बस मे इसका निर्णय करते हैं जो आगे चलकर उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करने के लिए विवश करता है । भारतवर्ष में प्रेम विवाह की अपेक्षा अरेंज मैरिज का स्थायित्व कई गुना अधिक है। यद्यपि के भारतवर्ष में तलाक का दर पूरी दुनिया की अपेक्षा बहुत कम 1.1% है किंतु प्रेम विवाह में अरेंज मैरिज की अपेक्षा तलाक की दर अधिक पाई गई।
हिंदू समाज की अपेक्षा मुस्लिमों व ईसाई समाज में प्रेम विवाह का प्रचलन अपेक्षाकृत अधिक पाया गया है। भारतवर्ष में आसाम, केरल, गोवा व जम्मू कश्मीर में अन्य राज्यों की अपेक्षा प्रेम विवाह के दर अधिक है । आंकड़ों का विश्लेषण करने से यह संकेत मिलता है कि 5% प्रतिशत लोग अंतर जाति प्रेम विवाह करते हैं जबकि 5% लोग हैं अंतर धार्मिक प्रेम विवाह करते हैं।
प्रत्येक मुद्दे की तरह ही प्रेम के भी अच्छे एवं बुरे दोनों पक्ष हैं और इसके चलन के बढ़ने के पीछे अनेकों कारण हैं
*कारण* :
शिक्षा के अवसरों में वृद्धि लिंग असमानता में कमी
विवाह में देरी
सामाजिकरण के तरीकों में परिवर्तन
सामाजिक बंधनों में शिथिलता
जाति व धर्म के बंधनों का कमजोर होना
मीडिया का प्रेम विवाह को प्रोत्साहित करना
समाज में प्रेम विवाह की स्वीकार्यता का बढ़ना
महिला/ पुरुष का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना
स्वयं से निर्णय लेने के अवसरों का बढ़ना
एकांकी सोच एवं विचारधारा का बढ़ना
अभिभावकों का बच्चों के प्रति तिरस्कृत व्यवहार
माता-पिता का आपस में अच्छा संबंध ना होना
परवरिश का अनुचित तरीका माता
पिता का बच्चों को गुणवत्तापूर्ण समय ना देना
फिल्मों में प्रेम विवाह को ही जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य दिखाना
किसी व्यक्ति विशेष द्वारा प्रेम विवाह के लिए तैयार होने एवं करने के पीछे उपर्युक्त वर्णित कारणों में से एक या एक से अधिक कारक भी एक साथ जिम्मेदार हो सकते हैं । प्रेम विवाह के अच्छे एवं खराब दोनों तरह के प्रभाव देखने को मिलता है जिनका बिंदुवार परिचय निम्नलिखित है
*अच्छा प्रभाव*:
#मनपसंद जीवनसाथी चुनने का अवसर
#दहेज प्रथा में कमी
#जात पात की भावना में कमी #प्रेम विवाह में विवाहित जोड़ा एक दूसरे से पूर्व परिचित होता है जिससे उसमें बेहतर सामंजस्य होता है
#शादी में होने वाले अनावश्यक खर्चे में कमी
#खुशहाल जीवन की आधारशिला
#पारिवारिक जीवन प्रारंभ करने में कम कठिनाइयां
#आपसी समझ के अच्छे होने से विवाह पश्चात के होने वाले विवादों में कमी
#स्वयं के निर्णय होने के कारण विवाहित जीवन की चुनौतियों का मिलकर सामना करते हैं ।
*दुष्प्रभाव* :
#लड़की के साथ धोखा होने का उच्च जोखिम
#भावनाओं में लिया गया निर्णय कभी-कभी वास्तविकता के धरातल पर सही साबित नहीं हो पाते
#परिवार के सहमति के बिना प्रेम विवाह करने पर कोई दुर्घटना होने पर परिवार का सहयोग नहीं मिल पाता है
#कभी-कभी लड़की अपने परिवार के प्रभाव में आकर लड़के के प्रति पुलिस केस दर्ज करा देती है जिससे उसका जीवन बर्बाद हो जाता है
#कभी-कभी प्रेम विवाह करके लोग लड़की को अवैध धंधे में धकेल देते हैं
#प्रेम विवाह का भरोसा देकर लड़के लड़कियों का शारीरिक शोषण करते हैं और फिर लड़की को अवैध संबंधों के लिए बाध्य करते हैं साथ ही साथ उनका अन्य तरह से भी शोषण का प्रयास करते हैं
#प्रेम स्वप्न सरीखा होता है किंतु विवाह के बाद जब वास्तविक रूप से जिम्मेदारियों का सामना करना होता है तो प्रेम विवाह के टूटने का खतरा बहुत अधिक होता है
#अत्यधिक लगाव के कारण कभी-कभी प्रेमी एक-दूसरे को अपने से बांध कर रखना चाहते हैं जिससे उनका जीवन अत्यंत दुर्गम हो जाता है।
यह स्पष्ट है कि समाज में प्रेम विवाह के चलन में वृद्धि होने के अनेकों कारण है तथा इसके साथ अनेक अच्छाई के साथ ही साथ अनेक बुराइयां भी जुड़ी हैं अपने बच्चों को ऐसी परवरिश दें कि वे अपनी हर बात बेझिझकअपने माता-पिता से साझा कर सकें। अपने बच्चों को यह समझाएं कि शादी कोई खेल नहीं है यह जीवन की स्थिति को बदल देता है। प्रेम विवाह जीवन को स्वर्ग बना सकता है तो इसमें जरा सी चूक आपके जीवन को नर्क भी बनाने के लिए काफी होता है यदि आपको कोई पसंद है तो यह कुछ गलत नहीं है किंतु शादी केवल दो व्यक्तियों का ही नहीं होता अपितु यह दो परिवार तथा हमारे समाज का भी एकीकरण है । आप अपनी पसंद माता-पिता को बताएं वह आपसे अधिक अनुभवी हैं वह जांच परख कर आपके लिए सर्वोत्तम निर्णय लेंगे।
प्रेम विवाह की स्थिति में विवाह पूर्व परामर्श की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि प्रेम विवाह का निर्णय सांबेगिक स्थिति में लिया गया निर्णय होता है ऐसी स्थिति में परामर्श के दौरान उन्हें अनेक जानकारियां एवं अनुभव प्राप्त होते हैं जो उन्हें जीवन की वास्तविकता से अवगत कराते हैं । यह काम पहले भारतीय समाज में संयुक्त परिवारों में बड़ी बहन /भाई, बुआ, चाचा – चाची, दादा – दादी मामा – मामी, भाभी किया करती थी किंतु वर्तमान समाज में बढ़ते एकांकी परिवार के चलन तथा व्यक्तिवादी सोच के कारण अब यह भूमिका प्रशिक्षित परामर्शदाताओं द्वारा निभाई जा रही है। बेहतर होगा कि प्रेम विवाह के बारे में सोच रहे नव जोड़े इसके बारे में अपने माता-पिता से बात करें तथा विवाह पूर्व परामर्श ले ताकि भविष्य में उन्हें किसी असहज स्थिति का सामना ना करना पड़े ।
अतः यह कहा जा सकता है कि प्रेम एक अत्यंत पवित्र भावना है तथा प्रेम विवाह एक आदर्श व्यवहार है किंतु आधुनिक भौतिकवादी युग में इसमें भी अनेक दुश्वारियां एवं कदम कदम पर धोखेबाजी की स्थिति है। बेहतर होगा कि इस रास्ते पर भी अब दिल के साथ-साथ थोड़ा दिमाग का भी प्रयोग किया जाए अन्यथा स्वप्नलोक जैसी प्यारी जिंदगी कब नर्क में पहुंच जाती है पता नहीं चलता और जब पता चलता है तब तक काफी देर हो चुका होता है जिसमें पूर्ण रूप से सुधार किया जाना बहुत ही मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव होता है । इस संबंध में जिगर मुरादाबादी का एक रचना बिल्कुल फिट बैठता है :
*यह इश्क नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे । इश्क आग का दरिया है और डूब के जाना है*
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