आदरणीय सभापति जी और सम्मानीय गृह, आपके माध्यम से इस 250वें सत्र के निमित्त मैं यहां मौजूद सभी सासंदों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, लेकिन इस 250 सत्रों के दरम्यान ये जो यात्रा चली है, अब तक जिन-जिन ने योगदान दिया है, वे सभी अभिनंदन के अधिकारी हैं, मैं उनका भी आदरपूर्वक स्मरण करता हूं।
सभापति जी, आप जब बहुत ही articulate way में दो अलग-अलग घटनाओं को जोड़ करके अभी प्रस्तुत कर रहे थे, मुझे जरूर लगता है कि देश में जो लोग लेखन के शौकीन हैं, वे जरूर इस पर अब गौर करेंगे, लिखेंगे कि 250 सत्र, यह अपने-आप में समय व्यतीत हुआ ऐसा नहीं है; एक विचार यात्रा भी रही है। जैसा आपने कहा कि कभी एक बिल ऐसा आया था तो जाते-जाते उसी के बिल्कुलअलग सा नया बिलइस प्रकार से आया। समय बदलता गया, परिस्थितियां बदलती गईं और इस सदन ने बदली हुई परिस्थितियों को आत्मसात करते हुए अपने को ढालने का प्रयास किया। मैं समझता हूं यह बहुत बड़ी चीज है और इसके लिए सदन के सभी सदस्य जिन्होंने तब तक काम किया, बधाई के पात्र हैं, वरना किसी को लग सकता है भई 20 साल पहले मैंने तो ये stand लिया था अब मैं stand कैसे बदल सकता हूं। लेकिन आपने जिस प्रकार से articulate करके इस बात को प्रस्तुत किया, वह हमारी विचार यात्रा का प्रतिबिम्ब है, भारत की विकास यात्रा का प्रतिबिम्ब है और वैश्विक परिवेश में भारत किस प्रकार से नई-नई बातों को लीड करने का सामर्थ्य रखता है, उसका उसमें प्रतिबिम्ब है। और ये काम इस सदन से हुआ है, इसलिए सदन अपने-आप में गौरव अनुभव करता है।
मेरे लिए सौभाग्य का विषय है कि आज इस महत्वपूर्ण अवसर का साक्षी बनने का और इसमें शरीक होने का मुझे अवसर मिला है। ये साफ कह सकते हम कि कभी चर्चा चल रही थी संविधान निर्माताओं के बीच में कि सदन एक हो या दो हों, लेकिन अनुभव कहता है कि संविधान निर्माताओं ने जो व्यवस्था दी, वो कितनी उपयुक्त रही है और कितना बढ़िया contribution किया है। अगर निचला सदन जमीन से जुड़ा हुआ है तो ऊपरी सदन दूर तक देख सकता है। और इस प्रकार से भारत की विकास यात्रा में निचले सदन से जमीन से जुड़ी हुई तत्कालीन चीजों का अगर प्रतिबिम्ब व्यक्त होता है तो यहां बैठे हुए महानुभावों से क्योंकि ऊपर है, ऊपर वाला जरा दूर का देख सकता है, तो दूर की दृष्टि का भी अनुभव, इन दोनों का combination इन हमारे दोनों सदनों से हमको देखने को मिलता है।
इस सदन ने कई ऐतिहासिक पल देखे हैं। इतिहास बनाया भी है और बनते हुए इतिहास को देखा भी है और जरूरत पड़ने पर उस इतिहास को मोड़ने में भी इस सदन ने बहुत बड़ी सफलता पाई है। उसी प्रकार से इस देश के गणमान्य दिग्गज महापुरुषों ने इस सदन का नेतृत्व किया है, इस सदन में सहभागिता की है और इसके कारण हमारे देश की इस विकास यात्रा को और आजादी के बाद की बहुत सी चीजें गढ़नी थीं। अब तो 50-60 साल के बाद बहुत सी चीजों ने शेप ले ली है, लेकिन वो शुरूआत काल में fear of unknown से हमें गुजरना पड़ता था। उस समय जिस maturity के साथ सबने नेतृत्व किया है, दिया है; ये अपने-आप में बहुत बड़ी बात है।
आदरणीय सभापति जी ये सदन की बड़ी विशेषता है और दो पहलू खास हैं- एक तो उसका स्थायित्व permanent कहें या eternal कहें, और दूसरा है विविधता diversity. स्थायित्व इसलिए है, eternal इसलिएहै कि लोकसभा तो भंग होती है, इसका जन्म हुआ न अब तक कभी भंग हुई है न भंग होना है, यानी ये eternal है। लोग आएंगे, जाएंगे लेकिन ये व्यवस्था eternal रहती है। ये अपनी उसकी एक विशेषता है। और दूसरा है विविधता- क्योंकि यहां राज्यों का प्रतिनिधित्व प्राथमिकता है। एक प्रकार से भारत के फेडरल स्ट्रक्चर की आत्मा यहां पर हर पल हमें प्रेरित करती है। भारत की विविधता, भारत के अनेकता में एकता के जो सूत्र है, उसकी सबसे बड़ी ताकत इस सदन में नजर आती है और वो समय-समय पर ये reflect भी होती रहती है। उसी प्रकार से उन विविधताओं के साथ हम जब आगे बढ़ते हैं तब, इस सदन का एक और लाभ भी है कि हर किसी के लिए चुनावी अखाड़ा पार करना बहुत सरल नहीं होता है, लेकिन देश हित में उनकी उपयोगिता कम नहीं होती है। उनका अनुभव, उनका सामर्थ्य उतना ही मूल्यवान होता है। तो ये एक ऐसी जगह है कि जहां इस प्रकार के सामर्थ्यवान महानुभाव, भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के अनुभवी लोग, उनका लाभ देश के राजनीतिक जीवन को, देश के नीति-निर्धारण के अंदर उनका बहुत बड़ा लाभ मिलता है और समय-समय पर मिला है। वैज्ञानिक हों, खेल जगत के लोग हों, कला जगत के लोग हों, कलम के धनी हों, ऐसे अनेक महानुभावों का लाभ जिनके लिए चुनावी अखाड़े से निकल करके आना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन इस व्यवस्था के कारण हमारी इस बौद्धिक संपदा की भी एक richness हमें इससे प्राप्त हुई है।
और इन 250 सत्रों में और मैं मानता हूं इसका सबसे बड़ा उदाहरण बाबा साहेब अम्बेडकर स्वयं हैं। क्योंकि किसी न किसी कारण से उनको लोकसभा में पहुंचने नहीं दिया गया। लेकिन यही तो राज्यसभा थी जहां बाबा साहेब अम्बेडकर के कारण देश को बहुत लाभ मिला और इसलिए हम इस बात पर गर्व करते हैं कि ये सदन है जहां से देश को बाबा साहेब अम्बेडकर जैसे अनेक महापुरुषों का हमें बहुत ही लाभ मिला। ये भी देखा गया है कि एक लंबा कालखंड ऐसा था कि जहां विपक्ष जैसा कुछ खास नहीं था, विरोध भाव भी बहुत कम था- ऐसा एक बहुत बड़ा कालखंड रहा है। और उस समय जो शासन व्यवस्था में जो लोग बैठे थे उनका वो एक सौभाग्य रहा कि उनको इसका बहुत बड़ा सौभाग्य भी मिला जो आज नहीं है। आज डगर-डगर पर संघर्ष रहते हैं, डगर-डगर पर विरोध भाव व्यक्त रहता है। लेकिन उस समय जबकि विरोध पक्ष न के बराबर था, इस सदन में ऐसे बहुत ही अनुभवी और विद्वान लोग बैठे थे कि उन्होंने शासन व्यवस्था में कभी भी निरंकुशता नहीं आने दी। शासन में बैठे हुए लोगों को सही दिशा में जाने के लिए प्रेरित करने के कठोर काम इसी सदन में हुए हैं। ये एक यानी कितनी बड़ी सेवा हुई है, इसका हम गर्व कर सकते हैं और ये हम सबके लिए स्मरणीय है।
आदरणीय सभापति जी, हमारे प्रथम उप-राष्ट्रपति जी डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने इस सदन के संबंध में जो बात कही थी, मैं उसको आपके सामने प्रस्तुत करना चाहूंगा। डॉक्टर राधाकृष्णन जी ने कहा था, इसी चेयर पर बैठकर उन्होंने कहा था और वो आज भी उतना ही उपयुक्त है। और आप आदरणीय प्रणब मुखर्जी की बात का उल्लेख करते हों या स्वयं अपना दर्द व्यक्त करते हों, ये सारी बातें उसमें हैं और उस समय राधा कृष्णन जी ने कहा था- हमारे विचार, हमारा व्यवहार, और हमारी सोच ही दो सदनों वाली हमारी संसदीय प्रणाली के औचित्यको साबित करेगी। संविधान का हिस्सा बनी इस द्विसदनीय व्यवस्था की परीक्षा हमारे कामों से होगी। हम पहली बार अपनी संसदीय प्रणाली में दो सदनों की शुरूआत कर रहे हैं। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम अपनी सोच, सामर्थ्य और समझ से देश को इस व्यवस्था का औचित्य साबित करें।
250 सत्र की यात्रा के बाद, अनुभव का इतना संपूर्ण होने के बाद वर्तमान की ओर आने वाली पीढ़ियों का दायित्व और बढ़ जाता है कि डॉक्टर राधाकृष्णन जी ने जो अपेक्षा की थी, कहीं हम उससे नीचे तो नहीं जा रहे हैं, क्या हम उन अपेक्षाओं को पूरा कर रहे हैं, या बदलते हुए युग में हम उन अपेक्षाओं को भी और अच्छा value addition कर रहे हैं, ये सोचने का समय है। और मुझे विश्वास है कि सदन की वर्तमान पीढ़ी भी और आने वाली पीढ़ी भी डॉक्टर राधाकृष्णन जी की अपेक्षाओं को पूर्ण करने के लिए निरंतर प्रयास करती रहेगी और उसे आने वाले दिनों में देश को…।
अगर अब, जैसा अभी आदरणीय सभापति जी ने कहा, अगर हम पिछले 250 सत्रों की विवेचना करें तो कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक बिल यहां पास हुए हैं जो एक प्रकार से देश के कानून बने, देश के जीवन को चलाने का आधार बने हैं। और मैं भी पिछले अगर पांच साल का हिसाब-किताब देखूं तो मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि ऐसी अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी बनने का अवसर मुझे भी मिला है। विद्ववतापूर्ण हर किसी के विचार सुनने कामुझे सौभाग्य मिला है और कई बातों को नए सिरे से देखने का अवसर इसी सदन से मिला है। और इसके लिए मैं खुद लाभान्वित हुआ हूं, और मैं सबका आभारी भी हूं और ये अगर हम चीजों को अगर सीखें, समझें तो बहुत कुछ मिलता है और वो मैंने यहां अनुभव किया है। तो मेरे लिए आप सबके बीच कभी-कभी आ करके सुनने का मौका मिलता है, वो अपने-आप में एक सौभाग्य है।
अगर हम पिछले पांच साल की ओर देखें, यही सदन है जिसने तीन तलाक का कानून होगा कि नहीं होगा, हरेक को लगता था यहीं पर अटक जाएगा, लेकिन इसी सदन की maturity है कि उसने एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण women empowerment का काम इसी सदन में किया गया। हमारे देश में आरक्षण का विरोध करके हर पल संघर्ष के बीज बोए गए हैं। उसमें से तनाव पैदा करने के भरसक प्रयास भी किए गए हैं। लेकिन ये गर्व की बात है कि इसी सदन ने सामान्य वर्ग के गरीब परिवार का दस प्रतिशत आरक्षण का निर्णय किया, लेकिन देश में कहीं तनाव नहीं हुआ, विरोध भाव पैदा नहीं हुआ, सहमति का भाव बना, ये भी इसी सदन के कारण संभव हुआ है।
इस प्रकार से हम जानते हैं जीएसटी- लंबे अर्से से जो भी कोई, शासन में जिसकी जिम्मेदारी है, हरेक ने मेहनत की। कमियां हैं, नहीं है, सुधरनी चाहिए-नहीं सुधरनी चाहिए- ये सारी debate चलती रही लेकिन One Nation One Tax System की ओर इसी सदन ने सर्व-सम्मति बना करके देश को दिशा देने का काम किया है और उसी के कारण एक नए विश्वास के साथ विश्व में हम अपनी बात रख पा रहे हैं।
देश की एकता और अखंडता- इसी सदन में 1964 में जो वादे किए गए थे कि एक साल के भीतर-भीतर इस काम को कर दिया जाएगा, जो नहीं हो पाया था; वो धारा 370 और 35(ए) इसी सदन में और देश को दिशा देने का काम इस सदन में पहले किया बाद में लोकसभा ने किया है और इसलिए ये सदन अपने-आप में देश की एकता-अखंडता के लिए इतने महत्वपूर्ण निर्णय के अंदर इतनी जो भूमिका अदा की है, वो अपने आप में। और ये भी एक विशेषता है कि इस सदन इस बात के लिए जिस बात को याद करेगा कि संविधान के अंदर धारा 370 आई, उसको introduce करने वाले मिस्टर एन गोपालास्वामी, वो इस सदन के पहले नेता थे, फर्स्ट लीडर थे वो, तो उन्होंने इसको रखा था और इसी सदन ने उसको निकालने का काम भी बड़े गौरव के साथ करके- वो एक घटना अब एक इतिहास बन चुकी है, लेकिन यहीं पर हुआ है।
हमारे संविधान निर्माताओं ने हमको जो दायित्व दिया है, हमारी प्राथमिकता है कल्याणकारी राज्य, लेकिन उसके साथ एक जिम्मेदारी है- राज्यों का कल्याण। यानी भारत as such हम कल्याणकारी राज्य के रूप में काम करें लेकिन at the same time हम लोगों का दायित्व है- राज्यों का भी कल्याण। और ये दोनों मिल करके, राज्य और केन्द्र मिल करके ही देश को आगे बढ़ा सकते हैं और उस काम को करने में इस सदन ने क्योंकि ये राज्य का representation पूरी ताकत के साथ करते हैं, बहुत बड़ी भूमिका निभाई है और हमारी संवैधानिक संस्थाओं को ताकत देने का भी हमने काम किया है। हमारा संघीय ढांचा, हमारा देश के विकास के लिए अहम शर्त है और राज्य और केंद्र सरकारें मिल करके काम करें, तभी प्रगति संभव होती है।
राज्यसभा इस बात को सुनिश्चित करती है कि देश में केंद्र और राज्य सरकारें प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं। लेकिन हम प्रतिभागी बन करके, सहभागी बन करके देश को आगे ले जाने का काम करते हैं। यहां जिन विचारों का आदान-प्रदान होता है, उसका जो अर्क है, जो यहां के प्रतिनिधि अपने राज्य में ले जाते हैं, अपने राज्य की सरकारों को बताते हैं। राज्य की सरकारों को उसके साथ जुड़ने के लिए प्रेरित करने का काम जाने-अनजाने भी सतर्क रूप में हमें करने की आवश्यकता होती है।
देश का विकास और राज्यों का विकास- ये दो अलग चीजें नहीं हैं। राज्य के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है और देश के विकास का नक्शा राज्यों के विकास के विपरीत होगा, तो भी राज्य विकास नहीं कर पाएंगे। और इन बातों को ये सदन सबसे ज्यादा प्रतिबिम्बित करता है, जीवंतता के साथ प्रतिबिम्बित करता है। बहुत सी नीतियां केंद्र सरकार बनाती है। उस नीतियों में राज्यों की अपेक्षाएं, राज्यों की स्थिति, राज्यों का अनुभव, राज्यों की रोजमर्रा की दिक्कतें- उन बातों को सरकार के नीति-निर्धारण में बहुत ही सटीक तरीके से कोई ला सकता है तो ये सदन ला सकता है, इस सदन के सदस्य लाते हैं। और उसी का लाभ federal structure को भी मिलता है। सब काम एक साथ होने वाले नहीं हैं, कुछ काम इस पांच साल होंगे तो कुछ अगले पांच साल होंगे, लेकिन दिशा तय होती है और वो काम यहां से हो रहा है, यह अपने-आप में…।
आदरणीय सभापति जी, 2003 में जब इस सदन के 200 साल हुए थे, तब भी एक समारंभ हुआ था और तब भी सरकार एनडीए की थी और अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे। तो उस 200वें सत्र के समय आदरणीय अटलजी का जो भाषण था, बड़ा interesting था। उनका बात करने का अपना एक लहजा था। उन्होंने कहा था कि हमारे संसदीय लोकतंत्र की शक्ति बढ़ाने के लिए second chamber मौजूद है और उन्होंने ये भी चेतावनी दी थी कि second house को कोई secondary house बनाने की गलती न करें। ये चेतावनी अटलजी ने दी थी कि second house को कभी भी secondary house बनाने की गलती न करें।
अटलजी की उन बातों को जब मैं पढ़ रहा था तो मुझे भी लगा कि इसको आज के संबंध में कुछ नए तरीके से अगर प्रस्तुत करना है तो मैं कहूंगा कि राज्यसभा second house है, secondary house कभी भी नहीं है और भारत के विकास के लिए इसे supportive house बने रहना चाहिए।
जब हमारी संसदीय प्रणाली के 50 साल हुए तब अटलजी का एक भाषण हुआ था, संसदीय प्रणाली के 50 साल पर और उस भाषण में बड़े कवि भाव से उन्होंने एक बात बताई थी। उन्होंने कहा था- एक नदी का प्रवाह तभी तक अच्छा रहता है जब तक कि उसके किनारे मजबूत होते हैं। और उन्होंने कहा था कि भारत का संसदीय जो प्रवाह है वो हमारा जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया है- एक किनारा लोकसभा है, दूसरा किनारा राज्यसभा है। ये दो मजबूत रहेंगे, तभी जा करके लोकतांत्रिक परम्पराओं का प्रवाह बहुत ही सटीक तरीके से आगे बढ़ेगा। ये बात आदरणीय अटलजी ने उस समय कही थी।
ये एक बात निश्चित है कि भारत federal structure है, विविधताओं से भरा हुआ है, तब ये भी अनिवार्य शर्त है कि हमें राष्ट्रीय दृष्टिकोण से ओझल नहीं होना है। राष्ट्रीय दृष्टिकोण को हमें हमेशा केंद्रवर्ती रखना ही होगा। लेकिन हमें राष्ट्रीय दृष्टिकोण के साथ क्षेत्रीय जो हित है इसका संतुलन भी बहुत सटीक तरीके से बनाना पड़ेगा, तभी जा करके हम उस भाव को, उस संतुलन के द्वारा आगे बढ़ा पाएंगे। और ये काम सबसे अच्छे ढंग से कहीं हो सकता है तो इस सदन में हो सकता है, यहां के माननीय सदस्यों के द्वारा हो सकता है और मुझे विश्वास है कि वो काम करने में हम निरंतर प्रयासरत हैं।
राज्यसभा एक प्रकार से checks and balance का विचार उसके मूल सिद्धांतों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। लेकिन checking और clogging, इसके बीच अंतर बनाए रखना बहुत आवश्यक होता है। Balance and blocking, इसके बीच भी हमें बैलेंस बनाए रखना बहुत आवश्यक होता है। एक प्रकार से हमारे अनेक महानुभाव ये बात बार-बार कहते हैं कि भई सदन चर्चा के लिए होना चाहिए, संवाद के लिए होना चाहिए, विचार-विमर्श के लिए होना चाहिए। तीखे से तीखे स्वर में विवाद हो, कोई उससे नुकसान होने वाला नहीं है, लेकिन आवश्यक है कि रुकावटों के बजाय हम संवाद का रास्ता चुनें।
मैं आज, हो सकता है मैं जिनका उल्लेख कर रहा हूं, इसके सिवाय भी लोग होंगे, लेकिन मैं दो दलों का आज मैं उल्लेख करना चाहूंगा- एक एनसीपी और दूसरा बीजेडी। और किसी का नाम छूट जाए तो मुझे क्षमा करना, लेकिन मैं दो का उल्लेख कर रहा हूं। इन दोनों दलों की विशेषता देखिए- उन्होंने खुद ने discipline तय किया है कि हम well में नहीं जाएंगे और मैं देख रहा हूं कि एक बार भी उनके एक भी सदस्य ने नियम को तोड़ा नहीं है। हम सभी राजनीतिक दलों को सीखना होगा कि including my party. हम सबको सीखना होगा कि ये नियम का पालन करने के बावजूद भी न एनसीपी की राजनीतिक विकास यात्रा में कोई रुकावट आई है और बीजेडी की राजनीतिक विकास यात्रा में रुकावट आई है। मतलब well में न जा करके भी लोगों के दिल जीत सकते हैं, लोगों का विश्वास जीत सकते हैं। ये और इसलिए मैं समझता हूं including treasury bench हम लोगों ने ऐसी जो उच्च परम्पराएं जिन्होंने निर्माण की हैं, उनका कोई राजनीतिक नुकसान नहीं हुआ है, क्यों न हम उनसे कुछ सीखें। हमारे सामने वो मौजूद हैं और मैं चाहूंगा कि हम भी वहां बैठे तो हमने भी वो काम किया है। और इसलिए मैं इस सारे सदन के लिए कह रहा हूं कि हम एनसीपी, बीजेडी- दोनों ने जो ये बहुत उत्तम तरीके से इस चीज को discipline follow किया, ये जो कभी न कभी इसकी चर्चा भी होनी चाहिए, उनका धन्यवाद करना चाहिए। और मैं मानता हूं आज जब 250 सत्र कर रहे हैं तो ऐसी उत्तम जो घटना है, उसका जिक्र होना चाहिए और लोगों के ध्यान में लानी चाहिए।
मुझे विश्वास है कि सदन की गरिमा की दिशा में जो भी आवश्यक है उसको करने में सभी सदस्य अपनी भूमिका अदा करते रहते हैं। आपकी वेदना, व्यथा प्रकट होती रहती है। हम सब कोशिश करेंगे, इस 250वें सत्र पर हम सब संकल्प लेंगे, विशेष करके हम लोग भी लेंगे ताकि आपको कम से कम कष्ट हो, आपकी भावनाओं का आदर हो और आप जैसा चाहते हैं वैसा ही ये सदन चलाने में हम आपके साथी बन करके सारे discipline को follow करते हुए करने का प्रयास करें।
इस संकल्प के साथ मैं फिर एक बार इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। और जिन्होंने यहां तक पहुंचाया है, उन सबका धन्यवाद करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।