उपराष्ट्रपति श्री एम.वेंकैया नायडू ने बच्चों को परिवर्तन के वाहक और बदलाव लाने वाले भावी नेता बनने के लिए सशक्त और समर्थ बनाने की दिशा में कदम उठाने का आज आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों, सामाजिक संगठनों और अभिभावकों का दायित्व है कि वे हमारी भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित, संरक्षित, न्यायपूर्ण और निष्पक्ष विश्व का निर्माण करें।
संसद में यूनिसेफ द्वारा आयोजित ‘भारत के प्रत्येक बच्चे के लिए राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन’ को संबोधित करते हुए श्री नायडू ने सभी सांसदों से अनुरोध किया कि वे कानून निर्माता और नागरिक होने के नाते बाल-कल्याण को प्राथमिकता देने और सार्थक बाल-केन्द्रित नीतियां विकसित करने की दिशा में अपना अभियान जारी रखने का संकल्प लें तथा ये सुनिश्चित करें कि देश के प्रत्येक बच्चे को सुरक्षित और परिपूर्ण बचपन मिल सके। उन्होंने सांसदों से किसी भी परियोजना को शुरू करते समय अपने निर्वाचन क्षेत्र के बच्चों के कल्याण को मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में ग्रहण करने को कहा।
शिक्षा को बच्चों का उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करने की कुंजी करार देते हुए उपराष्ट्रपति ने सभी को खासतौर पर दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वालों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने पर विशेष ध्यान देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “हमारे पास“ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ”होनी चाहिए। हमारे पास “किफायती, उपयुक्त शिक्षा” होनी चाहिए। हमारे पास ऐसी “शिक्षा होनी चाहिए, जो बच्चों को 21 वीं सदी की योग्यताओं की क्षमता प्रदान करती हो।”
उन्होंने कहा कि भाषा सीखने और राष्ट्र के इतिहास और संस्कृति को समझने को शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। उन्होंने घर में बोली जाने वाली भाषा पर विशेष ध्यान देने का आह्वान किया। श्री नायडू ने कहा कि बच्चों को अपनी मातृभाषा या जिस भाषा को सीखने की इच्छा हो, उसकी उपेक्षा या अनदेखी किए बिना अधिक से अधिक भाषाएं सीखने में सक्षम बनाने की तत्काल आवश्यकता है।
बाल अधिकारों से संबंधित समझौते के अनुच्छेद 30 का उल्लेख करते हुए श्री नायडू ने कहा कि इससे बच्चों को “अपने परिवारों की भाषा और रीति-रिवाजों को सीखने और उनका उपयोग करने का अधिकार मिलता है, चाहे वे देश के अधिकांश लोगों द्वारा साझा की जाती हों या नहीं।”
खुशहाल बचपन सुनिश्चित करने के लिए बच्चों के अधिकारों की रक्षा, उनका सम्मान करने और उन्हें पूरा करने को महत्वपूर्ण बताते हुए उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि परिवारों को शिक्षित करना और सामान्य समुदाय विशेष रूप से बच्चों को उनके अधिकारों के बारे में समर्थ बनाना बेहद महत्वपूर्ण है।
बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य को परिपूर्णतायुक्त जीवन की मुकम्मल पूर्व शर्त बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि पोषण पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने सरकार द्वारा चलाए जा रहे पोषण अभियान जैसे पोषण संबंधी अभियानों को का दायरा बढ़ाने और विस्तार करने का आह्वान किया।
दुनिया भर में बच्चों के साथ होने वाले शोषण, क्रूरता, दुर्व्यवहार, अपराध, तस्करी और भेदभाव की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने बच्चों को खतरे में डालने वाले इन भयावह खतरों को युद्धस्तर पर दूर करने की आवश्यकता पर जोर दिया। “हमें प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा सुनिश्चित करने से शुरूआत करनी चाहिए। कोई भी बच्चा पीछे नहीं छूटना चाहिए।”
बाल अधिकारों पर संधि को इतिहास में सबसे व्यापक रूप से प्रमाणित मानवाधिकार संधि बताते हुए श्री नायडू ने कहा कि यह सभी बच्चों की मौलिक मानवीय गरिमा और उनके कल्याण तथा विकास सुनिश्चित करने की तात्कालिकता को मान्यता देती है।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि संसद के दोनों सदनों ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इस अवसर पर केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद, मानव संसाधन विकास, संचार, इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री श्री धोत्रे संजय शामराव, राज्यसभा सदस्य श्रीमती वंदना चव्हाण और संयोजक, पार्लमेन्टेरीअन्स ग्रुप फॉर चिल्ड्रन, यूनिसेफ इंडिया डॉ. यास्मीन अली हक सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।