रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों, उनके नेटवर्क और वित्त पोषण को समाप्त करने तथा सीमापार आवाजाही को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का आह्वान किया ताकि सतत क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में चल रही छठी आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक प्लस (एडीएमएम प्लस) को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री ने सीमापार अपराधों को सबसे अधिक जघन्य बताते हुए कहा कि कुछ देश आतंकवाद का अपने राजनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए उपयोग करते हैं जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा कमजोर हो जाती है।
यह बहुत बुरा काम हो जाता है जब कोई देश आतंकवादियों की मदद करता है, प्रोत्साहन देता है, शस्त्र देता है, वित्त पोषण करता है और आश्रय प्रदान करता है। राज्यों और गैर राज्यों के कर्ताओं के बीच परस्पर संबंधों द्वारा हिंसा फैलाने से यह खतरा और भी बदतर हो जाता है। राज्य प्रायोजित आतंकवाद की मौजूदगी न केवल दुखदायी कैंसर जैसी है बल्कि यह सतत सुरक्षा का एक बड़ा कारण भी है।
एडीएमएम प्लस की थीम सतत सुरक्षा पर जोर देते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि सुरक्षा तभी प्रभावी होती है जब वह निरंतर हो, टिकाऊ हो और क्षेत्र में सभी के हितों का ध्यान रखा जाता हो। उन्होंने अधिक सहयोगी, समान और परामर्श वाले प्रतिमान की जरूरत पर जोर दिया ताकि स्थायी समाधान प्राप्त करने के लिए व्यापक और जटिल सुरक्षा चुनौतियों से निपटा जा सके। श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत का इंडो-पेसिफिक विजन सतत सुरक्षा के विचार पर आधारित है। इसमें स्वतंत्र, खुली, समावेशी और कानून आधारित इंडो-पेसिफिक पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इसके अलावा इसमें सभी की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाता है। उन्होंने कहा कि निरंतरता से मतलब है- विवादों का शांतिपूर्ण समाधान, बल के उपयोग की धमकी से बचना तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करना। हमारे क्षेत्र में जो रहते हैं और जिनका इसमें हित है उनके लिए यह क्षेत्र खुला रहना चाहिए ताकि सभी के हितों का स्वागत हो। इंडो-पेसिफिक में सुरक्षा के लिए हमारा दृष्टिकोण सतत रूप में परिभाषित है क्योंकि इसमें सभी की सुरक्षा पर जोर दिया गया है।
दक्षिणी चीन सागर के लिए आचार संहिता पर बातचीत के बारे में उन्होंने यह उम्मीद जाहिर की कि इन वार्ताओं के परिणाम समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र समझौता सहित सभी संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप होंगे और नेवीगेशन और फ्लाइट की स्वतंत्रता को बढ़ावा देंगे। इन वार्ताओं के पक्ष में ना आने वाले राज्यों के अधिकारों की रक्षा की जरूरत पर जोर देते हुए उन्होंने उम्मीद जताई कि बल के उपयोग या चुनौती या क्षेत्र के सैन्यकरण के बिना स्थिति स्थिर रहेगी। कोरियाई प्रायद्वीप के विकेन्द्रीकरण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि भारत दक्षिण और पूर्वी एशिया को जोड़ने वाले प्रसार मार्ग सहित सभी संबंधित मुद्दों का निपटान बातचीत के माध्यम से आगे बढ़ाने के लिए तत्पर हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत ने सभी एडीएमएम प्लस तंत्रों में सक्रिय भाग लिया है और इनकी सफलता में योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि भारत और म्यामां ने मिलिट्री मेडिसन (ईडब्ल्यूजी-एमएम) के बारे में विशेषज्ञों के कार्यसमूह के तीसरे चक्र की सह अध्यक्षता की है। उन्होंने अगले चक्र में भारत-इंडोनेशिया विशेषज्ञ कार्य समूह पर मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) के लिए भारत की उत्सुकता को भी व्यक्त किया।