मूल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने और गैर जरूरी मसलों पर बहस की कला बखूबी जानते..!!

लोकतंत्र के मंदिर में अपराधियों की आमद..!!

आखिर कब होंगा सुधार..??

मताधिकार लोकतंत्र का आधारभूत तत्त्व है! इसका वास्तविक अर्थ तभी है जब चुनाव में निष्पक्षता हो अक्सर अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकने के दावे तो किए जाते हैं पर हकीकत में ऐसा नहीं हो पाता यही वजह है कि 2004 के मुकाबले 2019 में बयासी प्रतिशत अधिक सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं! ऐसा नहीं कि इन सारे तथ्यों से हमारे राजनीतिक दल अनजान हैं! पर इन समस्याओं का निराकरण किसी नेता या राजनीतिक दल की प्राथमिकता में नहीं है!अब तक जो चुनाव सुधार हुए भी हैं व सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता और चुनाव आयोग की तत्परता के कारण संभव हो पाए हैं! पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने आठ राजनीतिक दलों पर इसलिए जुर्माना लगाया कि उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवारों के आपराधिक ब्योरे सार्वजानिक करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया था! इस पर तल्ख टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक व्यवस्था के अपराधीकरण का खतरा बढ़ता जा रहा है! इसकी शुद्धता के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को कानून निर्माता बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए!
इस मसले पर देश में संसद से सड़क तक गंभीर बहस होनी चाहिए थी मगर इसे एक आम फैसले की तरह लिया गया! हमारे राजनेता मूल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने और गैर जरूरी मसलों पर बहस की कला बखूबी जानते हैं! अपराध और चुनाव का संबंध बड़ा पुराना है!सत्तर और अस्सी के दशक में जब जातिवादी राजनीति का प्रभाव बढ़ने लगा तब जातिवाद के सहारे उभरने का प्रयास कर रहे नेताओं ने अपने जाति विशेष के अपराधियों का इस्तेमाल बूथ लूटने मतदाताओं को डराने धमकाने विरोधी दलों के प्रत्याशियों की हत्या कराने आदि में किया जाता था! फिर ये अपराधी राजनीतिक दलों और नेताओं की जरूरत बनते गए!
इन अपराधियों ने भी अपने राजनीतिक रिश्तों का इस्तेमाल करके अपनी समांतर सत्ता स्थापित कर ली! फिर इन अपराधियों को लगने लगा कि जब व किसी को चुनाव जितवा सकते हैं तो खुद भी जीत सकते हैं इससे उनको कानूनी संरक्षण भी मिल जाएगा! फिर नब्बे के दशक में इन अपराधियों ने स्वयं लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ताल ठोंकनी शुरू कर दी! शुरू में क्षेत्रीय दलों ने इन्हें अधिक प्रश्रय दिया इसके दो कारण थे पहला समाजवाद के परोक्ष प्रभाव में जातिवादी राजनीति का तेजी से उभार! ऐसे में जाति विशेष के अपराधी इन दलों के प्रभाव प्रसार में विशेष लाभकारी सिद्ध हुए !जो काम भाषणों वादों धन वितरण प्रसिद्ध व्यक्तित्व या फिल्मी सितारे नहीं कर पाते थे वह आसानी से बंदूक के बल पर हो जाता था!जब क्षेत्रीय दलों ने यह तरीका अपनाया तो राष्ट्रीय दलों ने भी असामाजिक तत्वों को झाड़ पोंछ कर अपने यहां भर्ती करना शुरू कर दिया! नतीजा यह हुआ कि धड़ल्ले से हर राजनीतिक दल के मार्फत गुंडे और माननीय बनने लगे!सबसे आश्चर्यजनक जेल से चुनाव लड़ने का अधिकार है! अगर सजायाफ्ता लोग चुनाव लड़ सकते हैं तो फिर देश के सारे कैदियों को मतदान का अधिकार दे दिया जाना चाहिए! आज तक किसी भी पार्टी ने इस विषय पर कोई गंभीर विचार नहीं किया बल्कि उच्चतम न्यायालय के फैसले का सर्वदलीय बैठक में वामपंथी और दक्षिणपंथी सभी दलों ने एक स्वर में विरोध किया था! बात न्यायपालिका द्वारा अपने अधिकारों के अतिक्रमण तक पहुंच गई थी कोई भी इन अपराधियों को संसद और विधानसभा जाने से रोकने के मूल मुद्दे पर बात करने को तैयार नहीं था!इन अपराधियों को पोसने वाली पार्टियों के पास एक सरल तर्क होता है कि ये मुकदमे फर्जी और विरोधियों की साजिश हैं! इस तरह समय के साथ लोकतंत्र के मंदिर में अपराधियों की आमद बढ़ती गई।