-अनुपमा जलानी
सितंबर या अक्टूबर में एक ऐसा उत्सव मनाया जाता है जो महाराष्ट्र में बहुत प्रसिद्ध है परंतु
आजकल इसे हर राज्य में मनाया जा रहा है। इस उत्सव में सबसे प्रसिद्ध हिंदू धर्म के देवता
की पूजा की जाती है। इस उत्सव में उस देवता की पूजा की जाती है जिनका नाम हर कार्य को
करने से पहले लिया जाता है यानी कि गणेश जी की। यह वहों उत्सव है जिसे हम गणेश चतुर्थी
के नाम से जानते हैं और यह उत्सव सबसे लंबा चलने वाले उत्सवों में से एक हैं यानी कि पूरे
10 दिन चलने वाला उत्सव।
वैसे हम जब इस उत्सव के बारे में कुछ सोचते हैं या किसी से इस उत्सव के बारे में कुछ पूछते
हैं कि गणेश चतुर्थी क्या है तो हमारे दिमाग में गणेश चतुर्थी को लेकर एक ही छवि बनती है
कि गणेश चतुर्थी मतलब बहुत सारे मोदक, गणेश जी की बड़ी मूर्तियां, बड़े-बड़े पंडाल और ढोल-
काशें आदि।
वैसे यह त्यौहार महाराष्ट्र में सबसे बड़े उत्सवों में से एक है परंतु कोविड-19 के चलते पिछले 2
वर्षों से लोग इस उत्सव को उतनी उत्साहा से नहीं बना पा रहे हैं। इस बार तो पुलिस द्वारा
कोविड-19 के अधिक मामले होने के कारण इस उत्साह के एक दिन पहले ही यानी की गुरुवार
को महाराष्ट्र में धारा 144 भी लगा दी गई जोकी 10 सितंबर से लेके 19 सितंबर रहेगी ताकि
भीड़ इकट्ठा ना हो और कोविड-19 के मामले और अधिक ना बढ़े। महाराष्ट्र सरकार ने अपने
पूरे राज्य में गणेश जी के पंडाल के भौतिक दर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया है और यह कहा है
कि सारे पंडालों को र्सिफ ऑनलाइन प्रसारण की अनुमति हैं। इसके साथ ही इस बार महाराष्ट्र
सरकार ने विशाल सामाजिक समारोह और भगवान गणेश की विशाल मूर्तियों पर भी प्रतिबंध
लगा दिया है। उन्होंने एक अधिसूचना जारी करते हुए कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर गणेश जी
की मूर्तियों की ऊंचाई 4 फीट और घरेलू पूजाओं के लिए गणेश जी की मूर्तियों की लंबाई 2
फिट तक होगी। इसके अलावा और भी कई राज्यों के सरकारों ने इस बार गणेश चतुर्थी के
उत्सव को मनाने के लिए कढ़े नियम जारी किए हैं।
कोविड-19 के आने से ना केवल हमारे देश की अर्थव्यवस्था बल्कि त्योहारों, उत्सवों और कई कार्यों में
बदलाव और कमी आई है। जैसे कोविड-19 के आने के बाद कई लोगों को इस त्यौहार या उत्सव में ढोल
बजाने का मौका नहीं मिला पा रहा हैं और ना ही कई लोगों की गणेश जी की मूर्तियों की इतनी बिकरी हो पा
रहे हैं। इसके साथ ही एक ढोल वाले मंडली का कहना है कि उनके मंडली के सभी लोग पूर्ण वैक्सीनेट होने के
बाद भी वह लोग ढोल बजाने नहीं जा रहे हैं क्योंकि वह लोग कोई जोखिम नहीं लेना चाहते और सरकार
उन्हें सड़क के किनारे ढोल बजाने की अनुमति नहीं दे रही हैं।