दो दशक पहले भारत की संसद पर हुए हमले ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को झकझोड़ कर रख दिया था… पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश ए मोहम्म़द के आतंकियों द्वारा किए गए इस हमले ने सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को इस बात पर सोचने के लिए मजबूर किया कि आखिर इनके लिए कौन सी पुख्ता रणनीति अपनाई जाए… दो दशक बाद भी पाकिस्तान में इस हमले का खाका खींचने वाले आतंकियों के मुखिया आजाद घूम रहे हैं… बीस साल पहले आज ही के दिन यानी 13 दिसंबर को लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले संसद पर आतंकी हमला हुआ था… जैश -ए-महम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के 5 आतंकी संसद भवन के परिसर तक पहुंचने में कामयाब रहे थे… उस दौरान संसद में शीतकालीन सत्र चल रहा था… संसद के दोनों सदन कुछ देर के लिए स्थगित हुए थे… अटल बिहारी वाजपेयी और सोनिया गांधी संसद भवन से जा चुके थे… हालांकि, लालकृष्ण आडवाणी समेत 100 अन्य लोग संसद भवन में ही थे… तभी एक सफेद एंबेसडर कार में आए पांच आतंकियों ने संसद भवन में गोलियों की बौछार कर दी थी… इस दौरान एक आतंकवादी ने संसद भवन के गेट के पास खुद को बम से उड़ा लिया था… हमला होते ही सुरक्षाबलों ने मोर्चा संभाला और आतंकियों को मार गिराया था… इस आतंकी हमले में सबसे पहले कांस्टेबल कमलेश कुमारी यादव शहीद हुई थीं… इसके अलावा संसद के एक माली, संसद भवन में सुरक्षा सेवा के दो कर्मचारी और दिल्ली पुलिस के 6 जवान शहीद हो गये थे… इस आतंकी हमले के पीछे मोहम्मद अफजल गुरु, एसए आर गिलानी और शौकत हुसैन सहित पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई शामिल थे…