नई दिल्ली – मोदी सरकार पार्ट 2 के पहले कैबिनेट विस्तार में जो सबसे चौंकाने वाला नाम सामने आया ओ था रेल मंत्री बने अश्विनी वैष्णव का।1994 बैच के पूर्व आईएएस अधिकारी रहे अश्विनी वैष्णव को राज्यसभा सांसद बने महज कुछ साल ही हुआ था कि 2021 की कैबिनेट रिसफ़ल में ना केवल उनको कैबिनेट मंत्री बनाया गया पर रेल, संचार, और आईटी जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों के विभाग भी दिए गए। ऐसा लगा कि सरकार उनके ब्यूरोक्रेसी से लेकर निजी क्षेत्र में काम करने के अनुभव का फायदा लेगी। जो जी बीते 2014 से अबतक 3 मंत्रियों कार्यशैली से नहीं मिल पाया था।
रेलवे के जिस ब्यूरोक्रेसी के जाल को जाल को तोड़ने के लिए केंद्र के ब्यूरोक्रेट को मंत्री बनाया था कुछ दिनों में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव भी भारतीय रेलवे की भूलभुलैया के चक्कर में उलझकर रेलवे के रिटायर्ड अधिकारी सुधीर कुमार को अपना सलाहकार नियुक्त किया। और फिर शुरू हुआ एक नया तिकड़मी जाल बुनने का।।जिसमें रेल मंत्री पूरी तरह से फंसते चले गए। और आज पूरी तरह से उसके गिरफ्त में आ चुके है। जहाँ रेलवे बोर्ड की महत्वपूर्ण नियुक्ति से लेकर महत्वपूर्ण निर्णयों में उनके सलाहकार की सीधी दखल देखी जा सकती है। मौजूदा समय में रेलवे बोर्ड में बैठा हरेक अधिकारी डायरेक्टर या इनडायरेक्ट तौर पर सलाहकार से जुड़ा रहा है।।
पहले बात करते हैं खुद रेल मंत्री के सलाहकार रहे सुधीर कुमार की भारतीय रेलवे के एक विद्युत सेवा अधिकारी सुधीर कुमार कुछ साल पहले रेलवे बोर्ड के अतिरिक्त सदस्य के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे। सुधीर कुमार रेलवे सर्किलों में अपने मूल विभाग यानी इलेक्ट्रिकल के प्रति अत्यधिक पूर्वाग्रह वाले अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं। सुधीर कुमार और मौजूदा मंत्री के साथ रिलेशन तब स्थापित किए जब वैष्णव निजी क्षेत्र में काम कर रहे थे और उन्हें अपनी कंपनी के लिए रेलवे अधिकारियो से सम्बंध बनाना जरूरी था। बतौर निजी क्षेत्र के प्रतिनिधि के तौर पर सुधीर कुमार से उनकी मुलाकात होती रही है। जब वैष्णव को रेल मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया तो उन्होंने सुधीर कुमार को अपना सलाहकार नियुक्त करने में कोई समय नहीं लगाया। लेकिन सुधीर कुमार ने इस भरोसे को धोखा दिया और मंत्री को अपने साथियों से घेर लिया, प्रभावी ढंग से यह सुनिश्चित किया कि मंत्री के पास किसी भी तरह की जानकारी इन्हीं के माध्यम से जाए।
अपने खुद के अलावा मंत्री सेल की महत्वपूर्ण पदों पर हुई नियुक्ति में भी उनका योगदान रहा। आइये एक एक कर के बताते है कि किसे अपने लोगो को सुधीर कुमार में सेल में नियुक्ति दिलाई।
रेलवे बोर्ड में ईडी के पद पर पदस्थापित जितेंद्र सिंह की नियुक्ति/रेल मंत्री के ईडीपीजी के पद पर । रेल मंत्री की प्रमुख फाइलें ईडीपीजी के माध्यम से रूट की जाती हैं। सुधीर कुमार के साथ लिंक — रेलवे बोर्ड के ट्रांसफॉर्मेशन सेल में निदेशक थे जब सुधीर कुमार सेल में प्रिंसिपल एक्सक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में उनके बॉस थे। जितेंद्र सिंह मंत्री ऑफिस जॉइन करने के लिए बतौर जॉइंट सेक्रेटरी के पद को समय से पहले छोड़ कर रेलवे में एक बार फिर ईडीपीजी के रूप में जॉइन किया। बतौर रेलवे अधिकारी जितेंद्र सिंह 23 साल से ज्यादा का समय दिल्ली की पोस्टिंग में रहे है।
कार्यकारी निदेशक के पद पर पदस्थापित उमेश बलौंदा की नियुक्ति/रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष से संबद्ध निगमित समन्वय. अध्यक्ष द्वारा अनुमोदित मुख्य फाइलें ईडी सीसी के माध्यम से भेजी जाती हैं। सुधीर कुमार के साथ लिंक — रेलवे बोर्ड के परिवर्तन प्रकोष्ठ में निदेशक / कार्यकारी निदेशक थे जब सुधीर कुमार परिवर्तन प्रकोष्ठ में प्रधान कार्यकारी निदेशक के रूप में उनके बॉस थे।
कार्यपालक निदेशक विद्युत (सामान्य) का पद पूर्व मंत्री के कार्यकाल के दौरान सरेंडर किया गया था लेकिन हाल ही में पुनर्जीवित किया गया था और मंझर हुसैन को किया गया था। सभी प्रमुख नीतिगत निर्णय जो हजारों करोड़ की निविदाओं को प्रभावित कर सकते हैं, इस अधिकारी के माध्यम से किए जाएंगे। सुधीर कुमार के साथ लिंक — रेलवे बोर्ड के विद्युत विकास प्रकोष्ठ में निदेशक थे जब सुधीर कुमार कार्यकारी निदेशक विद्युत विकास के रूप में उनके बॉस थे।
एके चंद्रा कार्यकारी निदेशक मैकेनिकल इंजीनियर को रेलवे बोर्ड में 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बावजूद उनके पद को अपग्रेड करके पदोन्नति दी गई थी। सुधीर कुमार के साथ लिंक — रेलवे बोर्ड के परिवर्तन प्रकोष्ठ में कार्यकारी निदेशक थे जब सुधीर कुमार परिवर्तन प्रकोष्ठ में प्रधान कार्यकारी निदेशक के रूप में उनके बॉस थे।
वीके त्रिपाठी की इस साल की शुरुआत में रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में सुनीत शर्मा की रिटार्यड होने के बाद कि गई। इनके लिए तमाम रूल्स एंड सीनियोरिटी को नजरअंदाज पर
तीन अधिकारियों की एक कमेटी बनाई गई, जिसने विनय त्रिपाठी को रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष और सीईओ के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की, भले ही वह केवल 6 महीने दूर जून 2022 में सेवानिवृत्त होने वाले थे।
सेवानिवृत्ति के बाद एक और छह महीने की नियुक्ति विनय त्रिपाठी के कार्यकाल में जोड़ दी गई है। रेलवे के इतिहास में कभी भी सीआरबी के रूप में नियुक्ति के लिए किसी का पक्ष लेने के लिए इस तरह के तरीके नहीं अपनाए गए हैं। फिर, यह पता चला कि इस नियुक्ति का भी सुधीर कुमार के साथ संबंध था। लिंक —- त्रिपाठी कानपुर इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव शेड में मंडल विद्युत अभियंता थे, जब सुधीर कुमार कई साल पहले वरिष्ठ मंडल विद्युत अभियंता के रूप में इसका नेतृत्व कर रहे थे। इसके बाद त्रिपाठी और सुधीर कुमार ने पिछले 3 दशकों में उत्कृष्ट तालमेल का आनंद लेना जारी रखा।
यह जानना कोई रॉकेट साइंस नहीं है कि रेल भवन में सत्ता के लीवर को वास्तव में कौन नियंत्रित करता है। वैष्णव वास्तव में सुधीर कुमार के हाथ की कठपुतली से अधिक नहीं है। मंत्री के कक्ष और सभापति कार्यालय में सुधीर कुमार के आदमियों से पूरी तरह से घिरे हुए, मंत्री अपने पैरों के नीचे जमीन खिसकने से पूरी तरह अनजान हैं, ।
गौरतलब हैं कि मौजूदा समय में रेलवे में 10 जोनों के महाप्रबंधक के पद खाली है वही रेलवे बोर्ड में दो मेंबर्स का भी पोस्ट खाली है। इधर सुधीर कुमार की वजह से हाल ही में दर्जनों रेलवे ऑफिसर से समय से पहले वीआरएस लिया है।