आपसी प्रतिस्पर्धा, कार्यस्थल के तनाव ईष्र्या, द्वेष शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न पुरूष सहकर्मियों द्वारा की गई व्यूह रचनायें स्त्रियों को बार-बार तोड़ रहे है। फलतः वह ऐसे स्थान की तलाश करने लगी है जहां वह इन दम घोंटू परिस्थितियों से बाहर निकलकर राहत की सांस ले सके। इसी प्रवृत्ति के कारण आज कुछ लोग मानसिक सुकून पाने की चाहत में बिना विवाह संस्कार के साथ-साथ रहने लगे हैं और समाज में एक नये प्रकार का सम्बन्ध सहजीवन ( लिव इन रिलेशनशिप ) अस्तित्व में आ गया है। इस सम्बन्ध में स्त्री पुरूष साथ-साथ रहते हैं लेकिन उनके बीच वैवाहिक सम्बन्ध नहीं होता है। महानगरों में यह सम्बन्ध काफी प्रचलन में है। इस तरह के सम्बन्ध में जब तक यह रिश्ता सामान्य रूप से मधुर रहता है तभी तक अस्तित्व में रहता है कलह की स्थिति में दोनों बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के अलग हो जाते है।
भारतीय कानून व्यवस्था में इस प्रकार के सम्बन्ध को मान्यता प्राप्त नहीं है लेकिन वर्तमान कानून में कोई भी व्यस्क एक दूसरे की सहमति से आपस में शारीरिक सम्बन्ध स्थापित कर सकते है। यह कानूनन अवैध भी नहीं है। अर्थात सर्वोच्च न्यायालय भी विवाह के बिना स्त्री पुरूष के साथ रहने को अपराध नहीं मानता। सहजीवन महानगरों में समय के साथ निरन्तर बढ़ता जा रहा है। साथ ही इस सम्बन्ध के पक्ष और विपक्ष में निरन्तर बहस हो रही है प्रगतिवादी विचारधारा के समर्थक इस रिश्ते को विवाह के विकल्प के रूप में मान्यता दे रहे है। उनका मानना है यह रिश्ता आज की भौतिकवादी संस्कृति की देन न होकर हमारे आदिवासी समाज में ‘ घोटुल ’ नामक परम्परा के रूप प्राचीन काल से ही समाज का अंग रहा है। इस परम्परा में विवाह के योग्य युवक युवती कुछ समय के लिये साथ-साथ रहते है यदि वह एक दूसरे का पसन्द करने लगते है!