“”श्रद्धायें तब ही बच पाएँगी””

मात पिता को धिक्कार कर,

और उन्हें दुत्कार कर,

दिल के टुकड़े हजार कर,

सीमा रेखा पार कर,

दरिन्दे से प्यार कर,

“श्रद्धा” तुने क्या पाया,

जीवन व्यर्थ गंवाया,

35 टुकड़ों में पाया,

क्या तुमसे ये ही आशा थी,

यही प्यार की परिभाषा थी,

शायद समझ ना पाई तु,

ममतामयी दुलार को,

निस्वार्थ,निश्चल प्यार को,

माँ,बापू के उर लग जाएँगी,

बताई राह पर चल पाएँगी,

“श्रद्धा” उन पर लाएँगी,

श्रद्धायें तब ही बच पाएँगी। ।।

लेखक

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नरेंद्र राठी

सलाहकार-श्री हरीश रावत (पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड)

संबद्ध-श्री राज बब्बर(सांसद राज्य सभा)

सदस्य – अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी