@हेमंत चौकियाल
“69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में नॉन फीचर फिल्म श्रेणी में 17अक्टूबर 2023को “पताल टी” के सिनेमेटोग्राफर बिट्टू रावत उर्फ सतीश कुमार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मूर्मू द्वारा बेस्ट सिनेमेटोग्राफर का पुरस्कार दिया गया। फिल्म” पताल टी” के बारे में फिल्म कब, कहाँ, कैसे बनाई गई की विस्तृत जानकारी दे रहे हैं – उत्तराखंड (रूद्रप्रयाग) से हेमंत चौकियाल”
19 और 20अगस्त 2023 को जब हिमालयन कल्चरल सेंटर ” निम्बूवाला के थिएटर से दर्शक “पताल टी” देखकर बाहर निकल रहे थे तो उनके चेहरों पर व्याप्त प्रसन्नता बता रही थी कि फिल्म निर्माता टीम की मेहनत जाया नहीं गई है, क्योंकि इससे पहले पताल टी को विदेशी मंचों पर अच्छी खासी सराहना मिल चुकी थी। अब इंतजार था तो भारतीय दर्शकों और समीक्षकों का। टीम को विशेषकर उतर भारतीय दर्शकों के साथ-साथ हिमालय से लगे जन जीवन से जुड़े दर्शकों की प्रतिक्रियाओं का भी खासा इंतजार था क्योंकि फिल्म की केन्द्रीय कहानी हिमालय जन जीवन की एक लोक कथा पर ही केंद्रित थी, जिसे शब्दों से जादा भावों और भावनाओं में पिरोकर फिल्माया गया था। 19और 20अगस्त 2023 को दर्शकों द्वारा विभिन्न मीडिया संस्थानों को दी गई टिप्पणियों से ऐसे लगा कि फिल्म निर्माण के दौरान टीम द्वारा उठाई गई तकलीफों का प्रतिफल मिल गया। ये कहना है फिल्म के निर्देशक सन्तोष रावत का।
69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2023 में उत्तराखंड की इस शार्ट फिल्म ने धीरे-धीरे ही सही पर समीक्षकों, दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाने के साथ-साथ उत्तराखंड से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में जुड़े लोगों और इस क्षेत्र में अपनी भविष्य की संभावनाओं को तलाश रहे युवाओं में बेस्ट सिनेमेटोग्राफी का राष्ट्रीय एवार्ड हासिल कर एक नया जोश तो भर ही दिया है।
नई दिल्ली के विज्ञान भवन से 69वें राष्ट्रीय फिल्म फेयर पुरस्कार समारोह से पताल टी के लिए बेस्ट सिनेमेटोग्राफर का पुरस्कार लेकर गृहक्षेत्र चोपता जाखणी लौटने पर बिट्टू रावत उर्फ सतीश कुमार सहित पूरी टीम का विभिन्न स्थानों पर अभिनंदन किया गया।सिनेमेटोग्राफर के गृह क्षेत्र चोपता तथा जाखणी में स्थानीय लोगों द्वारा बिट्टू रावत सहित पताल टी की पूरी टीम का सामूहिक नागरिक अभिनंदन किया गया। यह पहला मौका है जब उत्तराखंड की किसी फिल्म को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। वक्ताओं का कहना था कि यह जिले के साथ ही पूरे प्रदेश के लिए भी गौरव की बात है कि ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं ने अपनी मेहनत से नई इबारत लिखी है।
रूद्रप्रयाग के प्रोडक्शन हाउस यू के 13 के बैनर तले पताल टी के निर्देशक सन्तोष रावत और मुकुंद नारायण जब अपनी इस पहली ही फिल्म को लेकर बुसान इन्टरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पहुंचे थे तो यह उनके लिए बिल्कुल नया अनुभव था क्योंकि इस 39वें बुसान फिल्म फेस्टिवल में उत्तराखंड की यह पहली फिल्म नामित हुई थी।फिल्म को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी खूब सराहा गया।
बिट्टू रावत ने बताया कि इस फिल्म का पहला शूट रूद्रनाथ की पहाड़ियों पर फिल्माया गया। इसके बाद निर्देशन सन्तोष रावत और कहानी की मांग पर 8 युवाओं ने 20दिनों की मेहनत के दौरान 300 किलोमीटर की यात्रा कर 13हजार से 17हजार फीट की ऊँचाई पर सर्द हवाओं के बीच फिल्म की शूटिंग पूरी की।
विदित हो कि 17अक्टूबर को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में बिट्टू रावत को सर्वश्रेष्ठ सिनेमेटोग्राफर का रजत कमल प्रदान कर सम्मानित किया गया। सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा स्थापित संगठन फिल्म महोत्सव निदेशालय प्रतिवर्ष इन पुरस्कारों को प्रदान करता है।राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने से पहले पताल टी को इतावली प्रीमियर 28वें डेल्ला लेसिनिया फिल्म फेस्टिवल के लिए चुना गया, जहाँ फिल्म ने 10 फिल्मों में अपनी जगह बनाकर, पताल टी की टीम में एक नई उम्मीद पैदा की। इसके बाद 53वें इप्फी गोवा फिल्म फेस्टिवल में इंडियन पैनोरमा के नॉन फिक्शन कैटगरी में फिल्म का प्रदर्शन हुआ। फिल्म के निर्देशक सन्तोष रावत ने बताया कि फिल्म के सहायक सिनेमेटोग्राफर दिव्याशुं रौतेला की भी यह पहली फिल्म है, उन्होंने भी फिल्म में आशा से बढ़कर, बेहतरीन काम किया है। दिव्याशुं रौतेला से भी टीम को बहुत उम्मीदें हैं। फिल्म के निर्देशक सन्तोष रावत, डायरेक्टर प्रोड्यूसर मुकुंद नारायण एसोशियेट प्रोड्यूसर रजत बर्त्वाल, असिस्टेंट डायरेक्टर आयुष वशिष्ठ, साउन्ड डिपार्टमेंट के रसूल पुकट्टी, सिनेमेटोग्राफर बिट्टू रावत उर्फ सतीश कुमार, लाइन प्रोड्यूसर रमेश रावत, साउंड डिपार्टमेन्ट के अर्जुन रावत, एक्सिक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेन्द्र रौतेला सहित बहुत से लोगों की सराहनीय भूमिकाएं रही हैं। सम्मान समारोह के इस आयोजन में मातबर सिंह नेगी,प्रमोद सिंह, गिरीश नेगी, ग्राम प्रधान गुड्डू लाल, बिट्टू रावत के पिता यशपाल सिंह रावत, माता सुरमा देवी, बहिन मधु व मोनिका, भाई अमित सिंह, बिट्टू रावत की धर्मपत्नी ममता देवी, साक्षी देवी, रमेश रावत, महिला मंगल दल अध्यक्षा जा़खणी, ग्राम प्रधान मयकोटी, पूर्व जिला पंचायत सदस्य लक्ष्मण सिंह बर्त्वाल, भाजपा मण्डल अध्यक्ष त्रिलोचन भट्ट, पूर्व प्रधान जाखणी विनोद रावत, जीत सिंह मेवाल सहित स्थानीय जन प्रतिनिधि और ग्रामीण उपस्थित थे। चोपता के सम्मान सम्मान समारोह का संचालन ग्राम प्रधान मयकोटी अमित प्रदाली तथा जाखणी में आयोजित समारोह का संचालन खेम सिंह नेगी ने किया।
क्या है पताल टी की कहानी
फिल्म की कहानी के बारे में बात करते हुए फिल्म के लेखक और निर्देशक दशज्यूला पट्टी के क्यूड़ी गाँव निवासी सन्तोष रावत ने बताया कि यह फिल्म भोटिया जनजाति की एक लोक कथा को आधार बनाकर फिल्माई गई है। “पताल ती” नाम का क्या अर्थ है? के बारे में सन्तोष रावत ने बताया कि भोटिया भाषा में “पताल ती”का अर्थ होता है पवित्र जल। यह तीन पीढ़ी के लोगों की अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं, आस्था, विश्वास और समर्पण की कहानी है। फिल्म के एक्सिक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेन्द्र रौतेला ने फिल्म के बारे में बताया कि फिल्म में एक पोता अपने दादा के जीवन के अन्तिम समय में उनकी हिमालय के एक पवित्र तालाब से पवित्र जल पीने की इच्छा करना और पोते द्वारा दादा की ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश और प्रकृति के साथ सहजीविता का संवेदनशील मानवीय संघर्ष इस फिल्म का रहस्य और रोमांच है। वे बताते हैं कि पूरी फिल्म में कैमरे का कमाल, प्राकृतिक रोशनी और कलाकारों की बिना संवाद की अदाकारी इसे अद्भुत बनाती है।
इस फिल्म को बनाने का ख्याल कैसे आया?
सन्तोष रावत का कहना था कि वर्ष 2008 में संयोगवशात उनका रुझान फिल्मों की जानकारी लेने की ओर गया।बहुत सी देशी – विदेशी फिल्मों को देखते हुए उन्हें लगा कि यह भी कला की ही तरह फिल्म के माध्यम से अपनी बात और भावनाओं को एक बड़े वर्ग तक पहुँचाने का एक सशक्त माध्यम है । अब फिल्मों को देखने का उनका नजरिया बदल गया। फिल्मों को देखते देखते वे स्वयं ही स्वयं के लिए फिल्म का समालोचक बन कर उसकी समीक्षा करने लगे। यहीं से उनके मन में भाव पैदा होने लगे कि यदि वे इस फिल्म को बनाते तो ऐसा ऐसा….. बनाता ।
2015 में दिल्ली, मुंबई और दक्षिण भारत की फिल्म इंडस्ट्री का कुछ अनुभव लेकर वापस, उत्तराखंड आया तो घूम घूम कर यहाँ की सभ्यता, संस्कृति और लोक में बिखरी कथा – कहानियों के बारे में उसकी ऐतिहासिकता प्रमाणिकता, पौराणिकता के साथ साथ उसकी सांस्कृतिक तथ्यों को जानने समझने के उद्देश्य से भ्रमण प्रारंभ किया।
इसी बीच कोरोना काल में इस भोटिया कहानी पर फिल्म बनाने की योजना बन गई।
यूं बनी पताल टी
फिल्म के सिनेमेटोग्राफी रूद्रप्रयाग जनपद के चोपता जाखणी निवासी बिट्टू रावत ने बताया कि 2अक्टूबर 2020 को इस फिल्म का पहला शूट रूद्रनाथ (गोपेश्वर) की पहाड़ियों पर फिल्माया गया। इससे पहले टीम ने फिल्म में दिखाये जाने वाले प्राकृतिक दृश्यों की तलाश और चयन के लिए रूद्रप्रयाग के चोपता, बणियाकुण्ड, सारी, देवरियाताल, मनसूना, राऊँलेंक, गौण्डार सहित गोपेश्वर, मण्डल, रूद्रनाथ, नीति, मलारी, कोसा घाटी के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण करने के बाद अंततः रूद्रनाथ और नीति घाटी के प्राकृतिक दृश्यों को कहानी की मांग के अनुसार फाइनल किया गया था।
8 युवाओं की टीम ने 20दिनों की मेहनत और 300 कि०मी० की यात्रा के साथ साथ 14 हजार से 17हजार फीट की ऊंचाई पर फिल्माए गये दृश्यों ने फिल्म को जीवंत बनाते हुए, पताल टी को वह पहली फिल्म बनाया जिसे राष्ट्रीय सिनेमा में महत्व दिया गया।
कैसी रही पहले सफर बुसान की यात्रा
रूद्रप्रयाग के प्रोडक्शन हाउस स्टूडियो यूके13 के बैनर तले सन्तोष रावत और मुकुंद नारायण जब अपनी इस पहली ही फिल्म को लेकर बुसान इन्टरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पहुँचे तो यह उनके लिए सपना जैसा अलग ही अनुभव था। क्योंकि 39वें बुसान फिल्म फेस्टिवल में उत्तराखंड से पहली बार कोई फिल्म नामित हुई थी।
कहाँ कहाँ प्रदर्शित हुई है फिल्म
बुसान में दुनिया के 111 देशों से आई 2548 फिल्मों में से चयनित 40 शार्ट फिल्मों को दिखाने के लिए “पताल ती “को 14वें स्थान पर चुना गया था।इसके बाद इस फिल्म को इतावली प्रीमियर 28वें डेल्ला लेसिनिआ फिल्म फेस्टिवल के लिए चुना गया, जहाँ फिल्म ने 10 फिल्मों में अपनी जगह बनाकर, एक नई उम्मीद पैदा की। इसके बाद 53वें इफ्फी गोवा फिल्म फेस्टिवल में इंडियन पैनोरमा के नॉन फिक्शन कैटगरी में फिल्म का प्रदर्शन हुआ तो मानो टीम को अपनी मेहनत की सार्थकता पर गर्व हुआ। यहां फिल्म निर्माण की पूरी टीम को समान क्रेडिट के योग्य चुना गया, जो निर्माता – निर्देशक को भी सकून देने वाले पल थे जब उनके सहकर्मियों- जिनमें लाइन प्रोड्यूसर रमेश रावत, कैमरा टीम के दिव्याशुं रौतेला, साउंड डिपार्टमेंट के अर्जुन रावत सहित दो लोग सम्मिलित थे।
दक्षिण कोरिया, रूस सहित 6 अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शन के बाद जब फिल्म इण्डियन पैनोरमा गोवा के लिए चयनित हुई तो न केवल पूरी टीम की साख दांव पर थी बल्कि ये फिल्म ऐसी सीढ़ी पर खड़ी थी जहां से उत्तराखंड की शार्ट फिल्मों के भविष्य के साथ साथ, यहां से इस क्षेत्र में उतरने वाले युवाओं के भविष्य पर मानो फिल्म दस्तक दे रही थी क्योंकि कम से कम संवादों के साथ मैसेज को बिना बोले दर्शकों तक अपनी बात पहुंचाना बड़े जोखिम की बात भी थी, लेकिन संतोष और टीम के लिए संतोष की बात यह रही कि सोशल मीडिया, प्रिन्ट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया से मिल रही प्रतिक्रियाओं ने टीम को चैन की सांस के साथ-साथ सकून भी दिया।
फिल्म को लेकर कैसा रहा अब तक का अनुभव
अब तक के विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फिल्म के प्रदर्शन को लेकर हुए अनुभवों पर बात करते हुए सन्तोष और मुकुन्द बताते हैं कि –
यह हमारे लिए भी नया अनुभव था कि क्या उत्तराखंड, भारत और भारत से बाहर के हिन्दी भाषी लोगों के अलावा अन्य भाषा भाषी लोगों की फिल्म के बारे में क्या राय बनती है? उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं कि अन्य लोगों को भी फिल्म वैसे ही समझ आयी जैसा हम समझाना चाहते थे या जैसे हम कहना चाहते थे।
सन्तोष और मुकुन्द ने बताया कि लोग इस बात से भी आश्चर्य चकित थे कि कैसे 17 हजार फीट की ऊँचाई पर जाकर फिल्मांकन किया गया होगा।
सन्तोष का कहना था कि इस बार हम यह जानने के लिए ही बुसान गये थे कि दुनिया के सिनेमा और भारतीय सिनेमा में क्या क्या समानताएं या असमानताएं हैं और क्या उत्तराखंड में रहकर सीमित संसाधनों के साथ हम कुछ विशेष कर सकते हैं? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि हमारे लिए यह बहुत प्रसन्नता की बात रही कि दर्शकों ने फिल्म की पटकथा, प्राकृतिक दृश्यों और सिनेमेटोग्राफी की खूब सराहना करते हुए इसे पसंद किया और 69वें राष्ट्रीय फिल्म फेयर एवार्ड 2023 के लिए फिल्म को बेस्ट सिनेमेटोग्राफी का एवार्ड दिया जा रहा है।
फिल्म में पहली बार असिस्टेंट सिनेमेटोग्राफर के रूप में काम कर रहे युवा दिव्याशुं रौतेला ने फिल्म निर्माण के दौरान अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि रूद्रनाथ, नीति, गमशाली के प्राकृतिक दृश्य किसी भी देशी-विदेशी लोकेशन को टक्कर दे सकते हैं, बशर्ते कि आप फोटोग्राफी के प्राथमिक गुर जानते हों।
हाशिये पर बैठे युवा में उम्मीद जगा गई है ये टीम
फिल्म और इसकी अब तक की यात्रा से इस फिल्म के निर्देशक और लेखक सन्तोष रावत और उनकी टीम ने हाशिए पर उपेक्षित पड़े, भूले-बिसरे हताश, निराश युवाओं में एक आस तो जगा ही दी है कि केवल नौकरी के भरोसे बैठकर, और सरकारों को कोसते हुए ही सपनों को जंग लगाने से कहीं जादा जरूरी है कि अपने परों को फैलाते हुए अपने सपनों में रंग भरने की शुरूआत की जाय।
फिल्म की क्या हैं खाश बातें
फिल्म के सिनेमेटोग्राफर बिट्टू रावत ने कहा कि जूरी और दर्शकों को यह जानकर भी आश्चर्य हुआ कि इस फिल्म के निर्माण से जुड़े सभी 8 लोग स्थानीय हैं और अभी तक किसी के पास भी फिल्म निर्माण का कोई बड़ा अनुभव नहीं था, फिर भी टीम ने बहुत ही सराहनीय और उम्दा काम करते हुए हर फेस्टिवल में अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर जगह बनाई, जो स्वयं ही इस बात का प्रमाण है कि फिल्म में पूरी टीम वर्क के साथ बेहतरीन काम किया है।
इस राष्ट्रीय पुरस्कार से पहले भी “पताल टी” ने कई फिल्म फेस्टिवल में हिस्सा लेकर लोगों का दिल जीता और फिल्म निर्माण व इससे जुड़े व्यवसाय में कैरियर बनाने वाले युवाओं में एक आशा भरी उम्मीद तो पैदा कर ही दी है।आशा की जा सकती है कि नई शिक्षा नीति में वर्णित व्यावसायिक शिक्षा के महत्व को भी यह फिल्म तथा इससे जुड़े युवा कारगर ढंग से समझाने में फी सफल रहे। इस टीम से निकट भविष्य में भी पूरे उत्तराखंड की उम्मीदें बढ़ गई हैं।
(लेखक वरिष्ठ शिक्षक और वरिष्ठ साहित्यकार हैं।)