दो संस्कृत विद्वानों को दिया गया संस्कृत साहित्य सम्मेलन का एक एक लाख रुपये का पुरस्कार

 

  binod Takiawala

नई दिल्ली, 17 जनवरी, 2019 – महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित संस्कृत साहित्य सम्मेलन के वार्षिक सम्मान समारोह में आज देश के प्रख्यात संस्कृत विद्वानों को नयी दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के सभागार में सम्मानित किया गया।  भोपाल के डा. राधावल्लभ त्रिपाठी को डा. गिरधारीलाल गोस्वामी संस्कृत गौरव सम्मान के तहत एक लाख रु का पुरस्कार दिया गया। पंजाब के प्रोफेसर शशिप्रभा कुमार को डा. गिरधारीलाल गोस्वामी संस्कृत श्री सम्मान के तहत एक लाख रु का पुरस्कार दिया गया। दिल्ली के डा. रामनारायण द्विवेदी को डा. गिरधारीलाल गोस्वामी संस्कृत भूषण सम्मान के तहत 51 हजार रु का पुरस्कार दिया गया।

संस्कृत साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष श्रीमती शीला दीक्षित ने पुरस्कार प्रदान करते हुये कल देर शाम बताया कि पिछले वर्ष मालवीयजी के शताब्दी समारोह में सम्मान राशि दोगुना करने का निर्णय लिया गया था। उन्होंने ने कहा कि आज सम्मानित संस्कृत विद्वानों ने इस भाषा के प्रचार प्रसार और इसे अधिक समृद्ध बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। श्रीमती शीला दीक्षित ने संस्कृत साहित्य सम्मेलन के प्राण वायु रहे स्वर्गीय डा. गिरधारी लाल गोस्वामी की सेवाओं के महत्वपूर्ण योगदान का स्मरण करते हुये उन्हें  अपने समय में इस भाषा का सबसे बड़ा विद्वान बताया। सम्मेलन के अध्यक्ष श्रीमती शीला दीक्षित ने कहा कि संस्कृत भाषा भारत की ओर से समुचित विश्व और मानवता के एक अनुपम उपहार है। यह न केवल सभी भाषाओं की जननी है अपितु  इसमें साहित्य, विज्ञान, आयुर्वेद, खगोल शास्त्र, अंतरिक्ष, ज्योतिष का अपार भंडार संरक्षित है। यह भाषा कंप्यूटर के लिये भी बेहद उपयुक्त है। उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्य सम्मेलन आने वाले समय में भी संस्कृत की सेवा में तल्लीन रहेगा। श्रीमती दीक्षित ने सम्मेलन के महासचिव श्री रमाकांत गोस्वामी के सहयोग की सराहना करते हुये कहा कि वह संस्कृत के देशभर में प्रसार के लिये निरंतर प्रयासरत रहते हैं।

 

इग्नयू के कुलपति प्रोफेसर नागेश्वर राय समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के कुलपति प्रोफेसर रमेश कुमार पांडे, श्री रमाकांत गोस्वामी, पूर्व मंत्री डा. योगानंद शास्त्री और श्री वेद प्रकाश शर्मा तथा बड़ी संख्या में संस्कृतविद और प्रतिष्ठित महानुभावों ने इस भाषा के महत्व पर अपने विचार रखे।