नेटवर्क 18 के ग्रुप एडिटर इन चीफ राहुल जोशी जी,
नेटवर्क 18 से जुड़े हुए सभी पत्रकार साथी,
मैनेजमेंट से जुड़े लोग,
यहां उपस्थित अन्य महानुभाव,
नेटवर्क 18 के दर्शकगण और मेरे प्रिय साथियों,
अभी कुछ देर पहले ही मुझे राष्ट्रीय समर स्मारक को देश को समर्पित करने का सौभाग्य मिला है। ये भी संयोग देखिए कि इसके ठीक बाद राइजिंग इंडिया समिट में एक ऐसे विषय पर बोलने का अवसर मिल रहा है, जो मेरे हृदय के बहुत करीब है।
मैं नेटवर्क 18 टीम को ये विषय- Beyond Politics: Defining National Priorities तय करने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में, राष्ट्र निर्माण की दिशा क्या हो, एक राष्ट्र के तौर पर हमारी प्राथमिकता क्या हो, इस पर निरंतर मंथन बहुत आवश्यक है।
अब जब मैं मीडिया के साथियों के बीच हूं तो इस चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए आपका पसंदीदा तरीका ही अपनाउंगा। यानि पहले क्या था और अब क्या है। इसी से आपको भी साफ हो जाएगा कि पहले क्या प्राथमिकता थी, और अब क्या है। इसी से ये भी पता चलेगा कि राजनीति से अलग हटकर जब राष्ट्रनीति को प्राथमिकता दी जाती है, तो किस तरह के परिणाम निकलते हैं।
साथियों, वर्ष 2014 के पहले देश में स्थिति ये थी कि जो बढ़ना चाहिए था वो घट रहा था और जो घटना चाहिए था, वो बढ़ रहा था।
अब जैसे, महंगाई का ही उदाहरण लीजिए। हम सबको पता है कि महंगाई दर नियंत्रण में रहनी चाहिए। लेकिन असलियत क्या थी? पिछली सरकार में जरूरी वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे थे। महंगाई सुरसा की तरह मुंह खोल रही थी।
आप सभी को, विशेषकर न्यूज़रूम के प्रोड्यूसर्स को याद होगा कि महंगाई डायन खाए जात है, आपको कितनी बार अपने शोज़ में चलाना पड़ा था।
साथियों, आप ने तब खूब रिपोर्ट किया था कि महंगाई दर 10 प्रतिशत का आंकड़ा भी पार कर गई थी। लेकिन आज हमारी सरकार में महंगाई दर गिरकर 2-4 प्रतिशत के आसपास रह गई है। ये फर्क तब आता है जब राजनीति से हटकर राष्ट्रनीति को प्राथमिकता दी जाती है।
साथियों, यही स्थिति इनकम टैक्स को लेकर थी। मिडिल क्लास छूट के लिए निरंतर आवाज़ देता रहता था लेकिन राहत के नाम पर कुछ नहीं मिलता था। हमारी सरकार ने इनकम टैक्स पर छूट की सीमा पहले ढाई लाख रुपए तक की, फिर 5 लाख तक की आय के लिए टैक्स को 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत किया और इस बार तो 5 लाख तक की टैक्सेबल इनकम को ही टैक्स के दायरे से बाहर कर दिया है।
साथियों, अब GDP Growth की ही बात करूं तो आप पहले की सरकार और अब की सरकार, पहले की प्राथमिकता और अब की प्राथमिकता का फर्क, और स्पष्टता से समझ पाएंगे। आपको पता होगा कि अटल जी की सरकार ने वर्ष 2004 में यूपीए को 8 प्रतिशत विकास दर वाली अर्थव्यवस्था सौंपी थी। लेकिन वर्ष 2013-14 में जब यूपीए की विदाई हो रही थी, तब विकास दर 5 प्रतिशत के क़रीब पहुंच गई थी।
2014 में एक बार फिर हमने इस चुनौती को स्वीकार किया। आज एक बार फिर GDP Growth Rate को हमारी सरकार ने 7 से 8 प्रतिशत के बीच पहुंचा दिया है। वो बढ़े हुए को घटा के गए और हमने घटे हुए को फिर बढ़ा दिया। ये हमारी प्राथमिकता है।
साथियों, यही हाल भारत की Global Standing का रहा। हम सब पढ़ते आए थे कि इक्कीसवीं सदी भारत की सदी है। लेकिन यूपीए सरकार में क्या हुआ? भारत को 2013 तक आते-आते दुनिया के ‘Fragile Five’ देशों में पहुंचा दिया गया। आज एक बार फिर सरकार के दृढ़ निश्चय और सवा सौ करोड़ देशवासियों के परिश्रम के बल पर भारत ‘Fastest Growing Major Economy’ बन गया है।
साथियों, Ease of Doing Business की रैंकिंग में भी पिछली सरकार ने जाते जाते देश का नाम डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। ये कांग्रेसी संस्कृति का ही परिणाम था कि साल 2011 के 132वें नंबर से फिसलकर भारत की रैंकिंग 2014 में 142 तक चली गई। आप सोचिए कि उस समय देश में बिजनेस का कैसा वातावरण बना दिया गया था। इस रैंकिंग में सुधार करके देश को 77वें स्थान पर पहुंचाने का काम हमारी सरकार ने किया है।
साथियों, पिछली सरकार के दौरान ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस में देश की रैंकिंग इसलिए भी फिसल रही थी, क्योंकि भ्रष्टाचार का ग्राफ आसमान छू रहा था। स्पेक्ट्रम से लेकर submarine तक, और Coal से लेकर CWG तक, कुछ भी भ्रष्टाचार से छूटा नहीं था। उस दौर में हर संस्था चाहे वो सुप्रीम कोर्ट हो, CAG हो, मीडिया हो, हर जगह सरकारी भ्रष्टाचार की फाइलें खुल रही थीं।
आज स्थिति ये है कि राजनीतिक विरोध के लिए विपक्ष के हमारे साथी छद्म तरीके से कोर्ट जाते हैं और वहां से उनको फटकार लगती है और सरकार को Appreciation मिलता है। सरकारी संस्कारों में ये सार्थक बदलाव बीते हमारी सरकार के दौरान आया है।
भाइयों और बहनों, राजनीति से अलग, हमारी सरकार की प्राथमिकताएं कैसे अलग रहीं, कैसे हम एक योजना से दूसरी को जोड़ते हुए आगे बढ़ रहे हैं और उससे सिस्टम कैसे Smooth और Transparent हो रहा है, इसके एक और उदाहरण पर मैं आपसे विस्तार से बात करना चाहता हूं।
आपको याद होगा कि जब हमने चार साल पहले जनधन योजना शुरू की थी, तो कितना मजाक उड़ाया गया था। कुछ लोग कहते थे कि गरीबों का बैंक खाता खुलवाकर हमने कौन सा तीर मार लिया। कई लोगों ने तो यहां तक कहा कि जिनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है, वो बैंक में खाता खुलवाकर क्या करेंगे?
ऐसी ही मानसिकता की वजह से हमारे देश में आजादी के इतने वर्षों बाद भी, आधे से ज्यादा लोगों के पास बैंक खाते नहीं थे। अब आज हमारी सरकार के प्रयासों की वजह से देश में 34 करोड़ से ज्यादा लोगों के बैंक खाते खुले हैं।
साथियों, जनधन अकाउंट खुलने के बाद हमने उन्हें आधार नंबरों से जोड़ा, कोशिश की, कि ज्यादा से ज्यादा अकाउंट मोबाइल नंबर से भी जुड़ जाएं। इधर हम देश में जनधन खाते खोल रहे थे, उधर उन सरकारी योजनाओं को भी खंगाला जा रहा था, जिसमें लाभार्थियों को पैसे दिए जाने का प्रावधान था। पहले ये पैसे कैसे मिलते थे, कौन बीच में उन्हें पचा जाता था, ये भी आपको पता है।
भाइयों और बहनों, हम एक-एक करके योजनाएं खंगालते गए और उन्हें जनधन खातों से जोड़ते गए। आज स्थिति ये है कि सरकार की सवा चार सौ से ज्यादा योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में ट्रांसफर हो रहा है।
हमारी सरकार के दौरान करीब-करीब 6 लाख करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने सीधे लाभार्थियों के खाते में भेजे हैं। और मुझे ये कहते हुए गर्व है कि पहले की तरह 100 में से सिर्फ 15 पैसे नहीं, बल्कि पूरे पैसे लाभार्थियों को मिल रहे हैं।
सरकार के इन प्रभावों का भ्रष्टाचार औऱ कालेधन पर क्या प्रभाव पड़ा है, ये भी आपको जानना जरूरी है।
साथियों, जनधन अकाउंट, आधार और मोबाइल को जोड़ने का नतीजा ये हुआ कि एक के बाद एक करके कागजों में दबे हुए फर्जी नाम सामने आने लगे। आप सोचिए, अगर आपके ग्रुप में या चैनल में 50 लोग ऐसे हो जाएं जिनकी हर महीने सैलरी जा रही हो, लेकिन वो हकीकत में हो ही नहीं, तो क्या होगा।
अब यहां HR वाले लोग कहेंगे कि हमारे यहां ऐसा हो ही नहीं सकता। लेकिन साथियों, पहले की सरकारों ने, देश में जो व्यवस्था बना रखी थी, उसमें एक-दो नहीं 8 करोड़ ऐसे फर्जी नाम थे, जिनके नाम पर सरकारी लाभ ट्रांसफर किया जा रहा था।
साथियों, सरकार के इस प्रयास से एक लाख 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा गलत हाथों में जाने से बच रहे हैं। और जब मैं ये कहता हूं कि 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपए बच रहे हैं, तो ये भी सोचिए कि पहले यही पैसे किसी और के पास जा भी तो रहे थे।
साल दर साल ये पैसे उन बिचौलियों के पास जा रहे थे, उन लोगों के पास जा रहे थे, जो इसके हकदार नहीं थे। अब ये सारी लीकेज हमारी सरकार ने बंद कर दी है।
साथियों, बैंक अकाउंट, Data और टेक्नॉलॉजी की यही ताकत आज दुनिया की सबसे बड़ी वेलफेयर स्कीम्स का मजबूत आधार बन रही हैं।
आज जिस आयुष्मान भारत योजना के तहत देश के लगभग 50 करोड़ गरीबों को जो 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज दिया जा रहा है, उसमें भी लीकेज की गुंजाइश नहीं है। इलाज का पूरा पैसा सीधे अस्पताल के अकाउंट में जाता है। जिसके लाभार्थी आधार नंबर से लैस हैं और उनका चुनाव 2015 में पब्लिश किए गए Socio-economic Survey के आधार पर किया गया है।
करीब-करीब हर वेलफेयर स्कीम के लिए यही तरीका अपनाया जा रहा है, जिससे बेईमानी और लीकेज दोनों पर लगाम लगी है।
आपकी जानकारी में है कि कल ही हमारी सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत की है। देश के लगभग 12 करोड़ किसान परिवारों को उसकी छोटी-छोटी जरूरत पूरा करने के लिए, जैसे चारा खरीदने के लिए, बीज खरीदने के लिए, कीटनाशक खरीदने के लिए, खाद खरीदने के लिए सरकार साल भर में लगभग 75 हजार करोड़ रुपए, सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर करने जा रही है। इस योजना में भी लीकेज संभव नहीं है।
अब सोचिए, किसी को चारा घोटाला करना हो तो कैसे करेगा? क्योंकि अब तो सीधे मोबाइल पर मैसेज आता है, कच्ची-पक्की पर्ची का तो सारा इंतजाम ही मोदी ने खत्म कर दिया है। इसलिए ही तो मुझे पानी पी-पी कर गाली दी जाती है !!!
भाइयों और बहनों, जिस-जिस के लिए मैंने लूट के रास्ते बंद किए हैं, वो मुझसे आजकल इतना स्नेह दिखा रहा है कि पूछिए मत। एक मंच पर इकट्ठा होकर, इतनी गालियां शायद ही किसी को दी गईं हों।
साथियों, इनके लिए मोदी को गालियां देना प्राथमिकता है, मेरे लिए प्राथमिकता है कि देश का ईमानदार टैक्सपेयर, जो इतनी मेहनत करता है, परिश्रम करता है, उसके द्वारा सरकार को मिली एक एक पाई का सही इस्तेमाल हो।
हमारे यहां किस तरह जनता के पैसे को जनता का न समझने की परंपरा अरसे तक हावी रही है, आप भी जानते हैं। अगर ऐसा न होता तो सैकड़ों योजनाएं दशकों तक अधूरी न रहतीं, अटकती-भटकती न रहतीं।
इसलिए ही हमारी सरकार, योजनाओं में देरी को आपराधिक लापरवाही से कम नहीं मानती। मैं आपको सिर्फ 2-3 उदाहरण देता हूं कि पहले के दशकों में कैसे काम हुआ है और कैसे इसका प्रभाव लोगों के जीवन पर और टैक्सपेयर के पैसे पर पड़ा है।
साथियों, यूपी में एक सिंचाई परियोजना है, बाणसागर के नाम से। ये योजना करीब-करीब 4 दशक पहले शुरु हुई थी। उस समय अनुमान लगाया गया था कि 300 करोड़ रुपए में इसका काम पूरा हो जाएगा। लेकिन ये लटकी रही, अटकी रही। 2014 में हमारी सरकार बनने के बाद इस पर फिर से काम शुरू करवाया गया। तब तक इसकी लागत राशि बढ़कर 3 हजार करोड़ रुपए हो गई।
ऐसा तो था नहीं कि पहले की सरकारों को कोई काम करने से रोक रहा था, मना कर रहा था। तब 300 करोड़ रुपए की तंगी हो, ये भी मैं नहीं मानता। दरअसल काम समय से पूरा हो, इसकी भीतर से ही इच्छा नहीं थी। सोच यही थी कि ठीक है, देर होती है तो होती रहे, मेरा क्या नुकसान है।
एक और डैम परियोजना है, झारखंड की मंडल डैम। ये भी चार दशक से अधूरी थी। जब इसकी शुरुआत की गयी तो इसकी लागत थी सिर्फ 30 करोड़ और अब ये बांध करीब 2400 करोड़ रुपये खर्च करके पूरा किया जा रहा है। यानि ये परियोजना लटकने की 80 गुना कीमत देश का ईमानदार करदाता चुका रहा है।
भाइयों और बहनों, आप लोग घोटाले की खबरें सुनते थे, तो अलर्ट हो जाते थे। अच्छी बात है। लेकिन देश में इस तरह की सैकड़ों परियोजनाओं में देरी की वजह से, देश का जो लाखों करोड़ रुपए, आप जैसे ईमानदार करदाता का जो पैसा लगातार बर्बाद हो रहा था, उसकी किसे परवाह थी? इस पैसे को सम्मान देना हमारी सरकार की प्राथमिकता थी और इसलिए ही सरकारी व्यवस्था में लेट-लतीफी की संस्कृति को बदलने का मैंने पहले दिन से प्रयास किया है।
मैं एक-एक राज्य के मुख्य सचिव को लेकर बैठा हूं, एक-एक मंत्रालय के सचिव को लेकर बैठा हूं कि कुछ भी हो, लेकिन योजनाओं में देरी नहीं होनी चाहिए, जनता का पैसा बर्बाद नहीं होना चाहिए। साथियों, 12 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की पुरानी योजनाओं की समीक्षा मैंने खुद की है।
साथियों, जितने भी प्रोजेक्ट्स की प्रगति के माध्यम से समीक्षा की गई, उनमें से अधिकतर पूर्वी भारत की हैं, नॉर्थ ईस्ट की हैं। ये भी हमारी सरकार की प्राथमिकताओं का एक और बड़ा हिस्सा रहा है। पूर्वी भारत को नए भारत की विकास का ग्रोथ इंजन बनाना, सबका साथ, सबका विकास के हमारे विजन का महत्वपूर्ण पहलू है।
आपने अनेक बार ये रिपोर्ट किया है कि कैसे पूर्वी और उत्तर पूर्वी भारत में दशकों बाद पहली बार रेल पहुंच रही है, पहली बार एयरपोर्ट बन रहे हैं, पहली बार बिजली पहुंच रही है।
साथियों, हमारा पूरा प्रयास है कि समाज या देश का वो हर वर्ग, जो खुद को किसी न किसी वजह से उपेक्षित महसूस कर रहा था, उसके पास पहुंचा जाए, उसकी चिंता दूर करने का प्रयास किया जाए।
सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण का फैसला हो या फिर श्रमिकों के लिए पेंशन की ऐतिहासिक योजना,
घुमंतु समुदाय के लोगों के लिए वेलफेयर डवलपमेंट बोर्ड बनाने का फैसला हो या फिर देश के करोड़ों मछुवारों के लिए एक अलग डिपार्टमेंट, हम सबका साथ-सबका विकास के मंत्र पर काम कर रहे हैं।
देश के हर व्यक्ति, हर वर्ग, हर कोने तक विकास और विश्वास की रोशनी पहुंचाने की हमारी प्राथमिकता ही न्यू इंडिया के नए आत्मविश्वास का कारण बन रही है।
इस आत्मविश्वास के बीच, मैं आपसे उस विषय पर भी बात करना चाहूंगा, जो आपका बहुत फेवरेट विषय रहा है। ये विषय है रोजगार।
मुझे बताया गया है कि नेटवर्क 18 में साल 2014 के बाद से एक भी व्यक्ति को नौकरी नहीं मिली है? राहुल जी, ये जानकारी सही है ना?
खैर हैरान मत होइए। मैं जवाब का सवाल बताने की कोशिश आप साथियों को कर रहा था।
भाइयों और बहनों,
जरा सोचिए भारत जब सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन गया है तो क्या ये संभव है कि बिना नौकरी को सृजित किए ये हो जाए?
जब देश में एफडीआई All-Time High है तो क्या ये संभव है कि नौकरियां पैदा नहीं हो रही हों?
जब कई अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट कह रही हैं कि भारत सबसे तेजी से गरीबी हटा रहा है तो क्या ये संभव है कि बिना नौकरी के लोग गरीबी से बाहर आ रहे हों?
जरा सोचिए जब देश में पहले की तुलना में कई गुना रफ्तार से सड़क बनाने का काम चल रहा है, रेल मार्गों के विस्तार का काम हो रहा है।
गरीबों के लिए लाखों मकान बनाने से लेकर नए पुल, नए बांध, नए हवाई अड्डे जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर के दूसरे प्रोजेक्ट पर रिकॉर्ड कार्य हो रहा है। पर्यटन के क्षेत्र में निवेश बढ़ रहा है, तो क्या ये संभव है कि इन सारी गतिविधियों से रोजगार पैदा नहीं हुए हों?
आपने अपने आसपास के माहौल में डॉक्टर, इंजीनियर या चार्ट्ड एकाउंटेंट को आगे बढ़ते देखा होगा। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के आंकड़ों के अनुसार, पिछले चार वित्तीय वर्षों के दौरान सिस्टम में 6 लाख Professionals जुड़े। इनमें से प्रत्येक प्रोफेशनल्स को सपोर्ट स्टाफ की भी जरूरत पड़ी होगी। ऐसे में हम अनुमान लगा सकते हैं कि इन्हीं प्रोफेशनल्स ने पिछले 4 वर्षों में लाखों लोगों को रोजगार दिया है।
यही नहीं सड़क पर दौड़ने वाली गाड़ियां भी एक नई तस्वीर दिखाती हैं। कोई मुझे बता रहा था कि आपके फिल्म सिटी, नोएडा में पहले जहां आधी से अधिक जगह खाली रह जाती थी, अब वहां गाड़ियों की पार्किंग की जगह भी नहीं बची।
कहने का मतलब ये है कि पिछले 5 वर्षों में ट्रांसपोर्ट सेक्टर में जबरदस्त बूम आया है। कमर्शियल वाहनों की ही बात करें तो पिछले साल ही भारत में लगभग साढ़े 7 लाख गाड़ियां बिकी हैं। क्या ये मुमकिन है की नौकरियों के बिना इतनी commercial गाड़ियाँ बिक रही है?
अब प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को ही लीजिए। मैंने मीडिया में ही इससे जुड़ी एक से बढ़कर एक प्रेरित करने वाली कहानियां देखी हैं। इसमें से कई लाभार्थियों से तो मैं खुद मिला हूं, उनकी सफलता की कहानियां मैंने खुद जानी हैं। किस प्रकार उन्होंने लोन लेकर अपना रोजगार शुरू किया और आज दर्जनों को रोजगार दे रहे हैं।
साथियों, इस योजना के तहत 15 करोड़ से अधिक उद्यमियों को 7 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का लोन दिया गया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इनमें से 4 करोड़ से ज्यादा युवा उद्यमी ऐसे हैं, जिन्होंने अपने बिजनेस के लिए पहली बार लोन लिया है। क्या ये संभव है कि इतनी बड़ी संख्या में छोटे उद्यमियों को लोन दिया गया हो और उससे लोगों को रोजगार नहीं मिला हो?
साथियों, रोजगार को लेकर सरकार को EPFO से भी एक व्यापक जानकारी मिलती है। जहां तक EPFO की बात है तो करोड़ों लोगों का पैसा कट रहा है, अंशदान जमा हो रहा है तब जाकर ये आंकड़े आते हैं। ऐसा नही है की हज़ार – 10 हज़ार लोगों का सर्वे करके आँकड़े बताए जा रहे हो। सितंबर, 2017 से नवंबर, 2018 के बीच हर महीने लगभग 5 लाख subscribers, ईपीएफओ से जुड़े हैं। इसी प्रकार Employee State Insurance Corporation यानि ESIC से हर महीने करीब 10 से 11 लाख subscribers जुड़े हैं।
अगर हम इसे EPFO के आंकड़ों से 50 प्रतिशत overlap भी मानें, तब भी formal workforce में हर महीने लगभग 10 लाख लोग शामिल हुए हैं। यानि 1 करोड़ 20 लाख नौकरियां प्रति वर्ष।
साथियों, बीते 4 वर्षों में विदेशी पर्यटकों की संख्या में क़रीब 45 प्रतिशत की ऐतिहासिक वृद्धि हुई है। पर्यटन से होने वाली विदेशी मुद्रा की कमाई भी बीते 4 वर्षों में 50 प्रतिशत बढ़ गई है। इतना ही नहीं भारत के एविएशन सेक्टर में भी ऐतिहासिक बढ़ोतरी हुई है। पिछले वर्ष 10 करोड़ से अधिक लोगों ने हवाई सफर किया। क्या इन सबसे रोजगार के अवसर सृजित नहीं हुए हैं?
इन आंकड़ों से यह साफ पता चलता है कि देश में हर क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं और लोगों को नौकरियां मिली हैं।
हो सकता है कि कइयों को मोदी की बात न माननी हो। लेकिन ये भी तो याद रखिए कि पश्चिम बंगाल सरकार कह रही है कि पिछले साल उसने नौ लाख नौकरियां सृजित की हैं। और 2012 से 2016 तक अ़ड़सठ लाख नौकरियां दी हैं। कर्नाटक सरकार कहती है कि पिछले पांच साल में 53 लाख नौकरियां दी हैं।
क्या ये संभव है कि पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में नौकरियों के अवसर बन रहे हैं लेकिन भारत में नहीं बन रहे?
साथियों, रोजगार को लेकर मैं मानता हूं कि अभी भी देश में काफी कुछ करना बाकी है, लेकिन जिस दिशा में और जिस तेजी से हम आगे बढ़ रहे हैं, मुझे पूरा विश्वास है कि जॉब्स को लेकर भी भारत पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल बनकर उभरेगा।
साथियों, इस न्यू इंडिया को बनाने में, सशक्त करने में मीडिया की, आप सभी की भूमिका भी बहुत अहम है। सरकार की, सिस्टम की कमियों को उजागर करना आपका स्वभाविक अधिकार है, लेकिन देश में सकारात्मकता के माहौल को और सशक्त करना भी आप सभी की ज़िम्मेदारी है।
मैं आपको साधुवाद देता हूं कि आपने अपनी सकारात्मक भूमिका को जिम्मेदारी के साथ निभाया भी है। समाज और व्यवस्था से जुड़े सुधारों के बारे में आपने पूरी ईमानदारी के साथ जन-जागृति का काम किया है।
मुझे विश्वास है कि New India के Rise में आपकी ये भूमिका और सशक्त रहने वाली है और मजबूत होने वाली है।
अंत में, आप सभी को इस समिट के आयोजन के लिए और यहां पर मुझे फिर आमंत्रित करने के लिए बहुत-बहुत आभार।
धन्यवाद !!!