“”कोयल कू कू वाले बोल””

“”कोयल कू कू वाले बोल””
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कोयल कू कू वाले बोल,
गाकर हमे समंझाती है,
तू बन जा इंसान रे बंदे,
वो हमको बतलाती है।
एक दिन गई मैं बाजार,
बैठा तिलक लगाएं दुकानदार,
1 किलो में 800 ग्राम तोलता,
ॐ जय जगदीश हरे बोलता।
हाथ जोड़ता बारम्बार
भोले की करता जय जय कार,
हल्दी में पीली मिट्टी का घोल
खुल गई उसकी जल्दी पोल,
कोयल हो गई डावा डोल,
कोयल कू कू वाले बोल,
वो हमको गाकर समंझाती है,
तू बन जाए इंसान रे बंदे,
वो हमको बतलाती है।।
एक दिन गई मंदिर वो,
देखता है पुजारी उसको ,
कितना प्रभु से मांग रही है,
करती पूजा कितनी है,
कितनी दक्षिणा डाल रही है,
एक मंदिर,दूजा मस्जिद की,
बाहर सीढ़ियों पर बैठे है,
दोनों आपसे में है ऐंठे है,
करते आपस मे पंगा,
एक बोले अल्लहा हु अकबर,
दूजा बोले जी श्री राम,
हो गया आपस मे दंगा,
एक करे मुझमे वजू,
दूसरा करे आचमन मुझमे,
यह सोच दुखी हो गई गंगा,
चली दुखी होकर कोयल,
सुनकर उनके जहरीले बोल,
यह जीवन अनमोल,
क्यो करते झोलमझोल,
कोयल कू कू वाले बोल,
वो हमको गाकर समंझाती है।।
बन जा इंसान तू बंदे,
यह हमको बतलाती है,
वो किसी की रिपार्ट लिखाने,
चली गई वो एक दिन थाने,
बैठा दरोगा मूंछ पनाये,
थोड़ा थोड़ा कुछ भन्नाए,
हवालात में कुछ लोग बिठाए,
क्या करना है जल्दी बताओ,
तुमको जेल की हवा खिलाऊँ
अंटी से निकालोगे जल्दी से,
या फिर तुम्हे घर छोड़ के आऊं
सिपाई डंडा दिखाकर,
बोला पर्स जल्दी से खोल,
सुनकर हो गई डावांडोल,
कोयल कू कु वाले बोल,
गाकर हमे समंझाती हैं,
तू बन जा इंसान रे बंदे,
वो हमको बतलाती है।
कोयल गई एक दिन अदालत,
किया वकील करने को वकालत।
वकील को मोटा पेट,
पहले से बैठा एक शेठ।
तूने खाया माल बहुत है,
मोटी तेरी खाल बहुत है,
तुझको मैं जितवा दूंगा,
माल ऊपर तक भिजवा दूंगा,
फाइनल रिपार्ट भी लगवा दूंगा।
सुनकर कोयल की आंखे गोल,
कोयल कू कु वाले बोल,
गाकर हमे समंझाती है
तू बन जा इंसान रे बंदे,
वो हमको बतलाती है।
एक दिन गई नेता जी के घर,
देने उनको यह सब खबर,
बैठे गांधी टोपी पहने,
रिवाल्वर साइड में ताने,
डाल गले मे महंगे गहने,
पहलवान बैठे उनके दाहिने,
उनको कुछ समंझा रहे थे
एक भी बटन न दबे किसी का,
बूथ कैप्चरिंग के दांव बता रहे थे,
मुझको विधायक बनादो दोबारा,
हो जाएगी सबकी पो-बारहा,
फिर बजेंगे यहां पर ढोल,
बैठने को बोले नेताजी,
कोयल कर रही टॉलमाटोल
खुल गई सबकी पोल।
कोयल कू कु वाले बोल,
गाकर हमे समंझाती है,
तू बन जा इंसान रे बंदे,
वो हमको बतलाती है।।
लेखक
नरेंद्र राठी
सदस्य–अखिल भारतीय कांग्रेस
सदस्य–परामर्शदात्री समिति,उत्तर रेलवे
(भारत सरकार)