आज आपके समक्ष एक कहानी जो वर्तमान समाज मे प्रत्येक घर घर की कहानी है । काब्या आज की कहानी की नायिका है । काव्या अपने माता – पिता की एकलोती संतान है , इसका भरण पोषण माँ की आचॅल की छत्र छाया के संग अपने पिता के लाड प्यार स्नेह के संग पली बडी है । वह अपने जिद्ध / लगन की पक्की है , जिसके कारण जब काव्या को अपनी मॉ से थोडी से डॉट मिलती है , तो वह पिता की घोस दिखा कर माँ से अपनी मन की करने में अपनी शान समझती है । इस बात को लेकर काब्या के माता – पिता मे आये दिनो नोक – झोक होनी आम बात है ।
काव्या को लेकर माँ – पिता जी आप से अपने सगे सम्बधी से अपनी लाडली के हाथ पीले कर अपनी जिम्मेवारी पुरी कर अपनी जीवन के शेष दिनो को शांति से बिताने चाहते है । आज वह शुभ घडी आ गई , जिसका काव्या के माता – पिता को बेशव्री से इंतजार थी । उन्होने अपनी जिगर के टुकडे काव्या की शादी बडी घुमघाम से कार्तिक नामक के युवक से कर दी । काव्याअपने पति कार्तिक और सास ससुर के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। लेकिन कुछ ही दिनो कें बाद काब्या को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है।
काव्या एक स्वतंत्र विचारो व उन्मुक्त गगन मे स्वछन्द विचरण करने वालीपक्षी थी । वही सास पुराने ख़यालों की थी ।
काव्याऔर उसकी सास का आये दिन बातो – बातो झगडा होने लगी । दिन बीते, महीने बीते. साल भी बीत गया. न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न काव्या जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगी । काव्या को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी. काव्या के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी. एक दिन जब काय्या का अपनी सास से लड़ाई हुई और पति कार्तिक भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई। काव्या के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…” बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने अपनी लाडली काव्या के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – काव्या “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.”
लेकिन काव्या अपनी जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा …. पिता जी अब मैं किसी भी कीमत पर अपनी सास की मुँह देखना नहीं चाहती !” कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?” “क्या करना होगा ?”, कव्या ने पूछा. पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर काव्या के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है।
कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी. लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई.”
पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति कातिक को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा ! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी।
यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?”
काव्या ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा. उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई.
ससुराल आते ही अगले ही दिन से काव्या ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया। साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया. अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती। रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती। सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।
कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया. बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी।
धीरे-धीरे चार महीने बीत गए. काव्या नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी। किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था. सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी. पहले जो सास काव्या को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे काव्याकी तारीफों के पुल बाँधने लगी थी। बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी। छठा महीना आते आते काव्या को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी। जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी।
इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती … ! वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!”
पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर प्रेम रूपी हाजमे का चूर्ण दिया था … !!!” आप भी अपनी लाडली”बेटी को सही रास्ता दिखाये, जब आप उसे विदाई की डोली मे बैठते समय दुआ देते है । बाबुल की दुआये साथ लिये जा , जा तुझे सुखी संसार मिले , साथ ही उपाहर स्वरूप अच्छे , संस्कार के साथ प्रेम की सौगात भी दे , माँ बाप का पूर्ण फर्ज अदा करे”